Sunday, April 20, 2025

भारत में तेजी से बढ़ रहा आइसक्रीम का क्रेज, सर्दी हो या गर्मी कभी कम नहीं होती इसकी दीवानगी

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इन दिनों चिलचिलाती धूप से राहत पाने के लिए लोग आइसक्रीम का सहारा ले रहे हैं। यह एक ऐसा डिजर्ट है जो न सिर्फ गर्मी से राहत दिलाता है बल्कि जुबान को भी खूब लुभाता है। पिछले कुछ समय से देशभर में इसका क्रेज तेजी से बढ़ गया है। यही वजह है कि सर्दी हो या गर्मी लोग हर मौसम में इसे खाना पसंद करते हैं।

अलग-अलग स्वादों, बनावटों और रूपों में मिलने वाली आइसक्रीम कभी पर्याप्‍त नहीं होती। थोड़ी और की जिज्ञासा मन में बनी ही रहती है। कभी ड‍ेजर्ट के रूप में परोसी जाने वाली यह आइसक्रीम आज अपने आप में ही ढेरों स्‍वाद और जायकों के साथ अकेली ही पर्याप्‍त है। कभी सोचा है कि आइसक्रीम को आपकी टेस्‍ट बड्स को सजाने में कितनी मेहनत लगती होगी।

इस काम में जुटे इंड‍ियन आइसक्रीम मैन्‍यूफैक्‍चरर एसोस‍िएशन के अध्‍यक्ष सुधीर शाह बताते हैं कि हम देश के बड़े हिस्‍से तक देसी और अंतरराष्‍ट्रीय फ्लेवर की आइसक्रीम पहुंचा पा रहे हैं। यह संख्‍या 500 से ज्‍यादा है। यही वजह है कि आज भारत दुनिया में सबसे ज्‍यादा फ्लेवर की आइसक्रीम तैयार कर पा रहा है। गुणवत्ता, टेक्‍स्‍चर और स्‍वाद ही है, जिनका हमें ध्‍यान रखना होता है।

जैसा मौसम वैसी आइसक्रीम

गर्मियां शुरू हो चुकी हैं, तो यह वो समय होता है, जो हमें नए-नए फ्लेवर्स के साथ एक्‍सपेर‍ि‍मेंट करने का मौका देता है। मौसम के हिसाब से आने वाले फलों को सही से रिफाइंड करके उन्‍हें आइसक्रीम के जरिए लोगों तक पहुंचाया जाता है। आइसक्रीम की बेहतर बात यह है कि इसमें हम भारतीयों को उनके ही बचपन का स्‍वाद कहीं न कहीं से अवश्‍य मिल जाता है।

अब मौसम है गर्मी का तो आम, जामुन, लीची, नार‍ियल पानी से तैयार होने वाली आइसक्रीम से लेकर आइसएप्‍पल के स्‍वाद वाली आइसक्रीम भी बाजार में देखने को मिल जाएगी। वहीं जैसा त्‍योहार, उसी जैसे अतरंगी अंदाज वाली आइसक्रीम भी लोगों को लुभाती है। इस बारे में सुधीर शाह बताते हैं, ‘अभी गणपत‍ि बप्‍पा के स्‍वागत में हम मोदक आइसक्रीम लाएंगे, तो वहीं बीते दिनों ईद थी, तो हमने खजूर से बनी आइसक्रीम को खास ईद के लिए तैयार किया और लोगों ने खूब पसंद भी किया।’

पांच गुना बढ़ी खपत

आइसक्रीम के दीवानों के लिए क्‍या गर्मी और क्‍या सर्दी। चिलचिलाती धूप हो या कड़कती ठंड, जो आइसक्रीम के शौकीन हैं, उन्‍हें मौसम भी डिगा नहीं पाता। आइसक्रीम का जादू ही ऐसा है। इस जादू को बरकरार रखने में काफी मेहनत और लगातार बेहतर करने का प्रयास ही इसे आगे बढ़ाता है। इस बात को और पुष्‍ट‍ि से रखते हुए सुधीर शाह कहते हैं, ‘14 साल पहले जब हमने शुरुआत की थी, तो भारतीयों में आइसक्रीम सेवन का रुझान इतना था कि एक भारतवासी सिर्फ 100 मिलीलीटर आइसक्रीम ही खाता था, आज यह मात्रा 500 मिलीलीटर हो चुकी है।’ इस खपत को बढ़ाने में स्‍वाद के दीवानों का बड़ा योगदान तो है ही, साथ ही बदलती और विकस‍ित होती तकनीक ने भी इसे प्रभावित किया है।

बेस भी है मजेदार

आजकल बड़े से बड़े रेस्टोरेंट में लाइव कुकिंग का ट्रेंड है। आपके सामने ही आपकी पसंदीदा डिश को पूरा या उसके कुछ स्टेप पूरे किए जाते हैं। यह तरीका असल में डिश के प्रति आपके लगाव को बढ़ाता है और जब यह तैयार हो रहा होता है, तो इसको अपनी टेबल तब आने और इसका स्‍वाद चखने की जिज्ञासा भी बढ़ जाती है। प्रेजेंटेशन का यह तरीका आइसक्रीम इंडस्‍ट्री में भी जोर पकड़ रहा है। जहां आपकी आइसक्रीम को सिर्फ सजा-धजा कर नहीं परोसा जा रहा, बल्‍क‍ि प्रेजेंटेशन के लिए ही आज लगभग हर एरिया में आइसक्रीम पार्लर हैं, जहां लोग जाते हैं, अपनी पसंद की आइसक्रीम का चुनाव करते हैं, और वहां बैठकर ताजी आइसक्रीम कोन की खुशबू लेते हुए आइसक्रीम का स्‍वाद चखते हैं।

यह बहुत बड़ा ट्रेंड है, जो कंज्‍यूमर लेकर आए हैं। आइसक्रीम पार्लर में आइसक्रीम के दीवानों के सामने उनके पसंद के कोन को तैयार किया जाता है, किसी चीज को अपने सामने बनता देख उसके प्रत‍ि और जुड़ाव हो जाता है। आइसक्रीम में स्‍वाद तो हैं ही, मगर कोन का भी अपना फ्लेवर बाजार में उपलब्‍ध है। आज कोन में ही चॉकलेट, बटरस्‍कॉच, वनिला जैसे फ्लेवर पहले से ही मौजूद हैं। जिसके लिए लोग बड़ी आसानी से 100 रुपए से लेकर 150 रुपए भी खुशी-खुशी खर्च कर देते हैं, जबक‍ि पहले यह कीमत 10 रुपए से 50 रुपए तक सीमित होती थी।

हैप्पी हार्मोन बढ़ाती है आइसक्रीम

बच्‍चे हो या वयस्‍क, आइसक्रीम को लेकर सबकी पसंद एक समान ही होती है। आइसक्रीम कार्ट दिखते ही मन में लालच आ ही जाता है क‍ि एक आइसक्रीम तो खा ही सकते हैं। आइसक्रीम की पहली बाइट खुशी को दोगुना करने का काम करती है, क्‍योंक‍ि यह डोपामाइन हार्मोन को बढ़ाती है। इसके अलावा आइसक्रीम की रंगत और स्‍वाद की विविधता हमें खुशी दे जाती है। यह खुशी ही है, जो आइसक्रीम से जुड़ी हुई है, मनोचिकित्‍सक भी इस बात को स्‍वीकार करते हैं

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