नई दिल्ली: दिल्ली में अगले महीने विधानसभा चुनाव होने हैं. ऐसे में सुप्रीम कोर्ट ने राजनीति के अपराधीकरण को समाप्त करने पर एक बेहद महत्वपूर्ण टिप्पणी की है. सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस पंकज मिथल ने कहा कि, अब समय आ गया है कि भारत के नागरिक स्वच्छ भारत के हकदार हों, जिसका मतलब है स्वच्छ राजनीति. जज ने जोर देकर कहा कि जनता को साफ-सुथरी छवि वाले लोगों को चुनने का विकल्प दिया जाना चाहिए.
जस्टिस मिथल ने दिल्ली दंगों के आरोपी और एआईएमआईएम उम्मीदवार ताहिर हुसैन द्वारा दायर अंतरिम जमानत याचिका को खारिज करते हुए ये टिप्पणियां कीं. बता दें कि, 24 फरवरी, 2020 को उत्तर-पूर्वी दिल्ली में भड़की हिंसा में 53 लोग मारे गए थे. इस हिंसा में कई लोग घायल भी हुए थे. इस मामले में याचिकाकर्ता के खिलाफ आरोप न केवल दंगों से जुड़े हैं, बल्कि गृह मंत्रालय के अधिकारी की हत्या से भी जुड़े हैं.
बुधवार को जस्टिस मिथल की अध्यक्षता वाली दो सदस्यीय बेंच ने जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की मौजूदगी में हुसैन की जमानत याचिका पर खंडित फैसला सुनाया. जस्टिस अमानुल्लाह ने कहा कि उन्हें अंतरिम जमानत पर रिहा किया जा सकता है. न्यायमूर्ति अमानुल्लाह ने हुसैन को सीमित अवधि के लिए अंतरिम जमानत देते हुए कहा, “मैंने याचिकाकर्ता के खिलाफ आरोपों और सबूतों की जांच की है. इसमें कोई संदेह नहीं है कि वे गंभीर और निंदनीय हैं, लेकिन इस समय वे बिल्कुल आरोप ही हैं.”
दिल्ली पुलिस, जिसका प्रतिनिधित्व अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एस वी राजू और अधिवक्ता रजत नायर ने किया. उन्होंने हुसैन की अंतरिम जमानत का पुरजोर विरोध किया. न्यायमूर्ति मिथल ने अपने द्वारा लिखे गए फैसले में कहा कि हुसैन की ग्यारह मामलों में संलिप्तता, जिसमें वर्तमान मामला, पीएमएलए से संबंधित एक और 2020 के दिल्ली दंगों से संबंधित 9 मामले शामिल हैं, कानून का पालन करने वाले नागरिक के रूप में उनकी स्थिति को कमजोर और नष्ट करती है.
जस्टिस मिथल ने कहा कि, यह सही समय है कि भारत के नागरिक स्वच्छ भारत के हकदार हैं, जिसका अर्थ है स्वच्छ राजनीति. साफ सुथरी राजनीति के लिए यह जरूरी है कि, दागी छवि वाले लोग, विशेष रूप से जो हिरासत में हैं और जिन्हें जमानत नहीं दी गई है और जो विचाराधीन हैं, भले ही वे जेल से बाहर हों, उन्हें किसी न किसी तरह से चुनाव में भाग लेने से प्रतिबंधित किया जाए.
उन्होंने जोर देकर कहा कि भारत के लोगों को स्वच्छ छवि वाले लोगों को चुनने का विकल्प दिया जाना चाहिए. न्यायमूर्ति मिथल ने कहा कि हुसैन के खिलाफ मामले में मुकदमा प्रभावित हो सकता है क्योंकि अगर उन्हें चुनाव प्रचार के लिए जमानत पर रिहा किया जाता है तो वे गवाहों को प्रभावित करने या धमकाने का प्रयास कर सकते हैं. न्यायमूर्ति मिथल ने कहा कि यह भी सर्वविदित है कि अतीत में बड़ी संख्या में लोगों ने जेल में बैठकर चुनाव लड़ा है और प्रचार के उद्देश्य से रिहा हुए बिना ही जीत हासिल की है.
उन्होंने कहा कि, याचिकाकर्ता के मामले में उसे इस उद्देश्य के लिए अंतरिम जमानत देने के लिए कोई विशेष परिस्थिति नहीं है. अधिकांश समय, प्रचार पार्टी या उसके कार्यकर्ताओं द्वारा किया जाता है और यदि पार्टी में एक व्यक्ति या नेता या यहां तक कि उम्मीदवार को प्रचार करने से रोका जाता है, तो यह किसी भी तरह से कानूनी अधिकार को प्रभावित नहीं करता है. हालांकि, न्यायमूर्ति अमानुल्लाह ने कहा कि वे जस्टिस मिथल की राय से सहमत नहीं हैं.
जस्टिस अमानुल्लाह ने अपनी राय में कहा, “यह स्थापित कानून है कि कथित अपराध की गंभीरता और परिमाण, अपने आप में, जमानत से इनकार करने का आधार नहीं है… खासकर तब जब मुकदमा लंबा चलता है.” उन्होंने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 के तहत याचिकाकर्ता के अधिकारों की अनदेखी नहीं की जा सकती है और आज तक किसी भी अदालत ने याचिकाकर्ता को दोषी नहीं ठहराया है.
उन्होंने कहा, “पहले से हिरासत में बिताए गए कम समय और अन्य मामलों में जमानत मिलने के आधार पर, मेरा विचार है कि उचित शर्तें लागू होने पर याचिकाकर्ता को सीमित अवधि के लिए अंतरिम जमानत दी जा सकती है.” विभाजित फैसले का नतीजा यह है कि हुसैन अभी भी जेल में रहेंगे क्योंकि अंतरिम जमानत याचिका अब भारत के मुख्य न्यायाधीश को भेजी गई है ताकि मामले पर नए सिरे से फैसला करने के लिए तीन न्यायाधीशों की एक बड़ी पीठ का गठन किया जा सके.
4 जनवरी को, दिल्ली उच्च न्यायालय ने मुस्तफाबाद निर्वाचन क्षेत्र से एआईएमआईएम के टिकट पर नामांकन पत्र दाखिल करने के लिए हुसैन को हिरासत पैरोल दी थी. हालांकि, हाई कोर्ट ने 14 जनवरी से 12 फरवरी तक अंतरिम जमानत की उनकी याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया.