Tuesday, May 13, 2025

Vat Savitri Vrat 2025 में कौन से कार्य शुभ, कौन से वर्जित?

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व्रत सावित्री व्रत इस साल 26 मई 2025 को रखा जाएगा. इस किन कुछ कार्यों को करना वर्जित होता है. यहां जानें इस दिन किन कार्यों को करना मना होता है.

हिंदू धर्म में वट सावित्री व्रत का खास महत्व है. यह व्रत खासतौर पर विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और सुखी वैवाहिक जीवन के लिए रखती हैं. सावित्री-सत्यवान की कथा पर आधारित इस व्रत में स्त्रियां वट (बरगद) वृक्ष की पूजा करती हैं और पूरे दिन निर्जल उपवास रखती हैं. यह व्रत न केवल आस्था का प्रतीक है, बल्कि पत्नी के समर्पण और विश्वास का पर्व भी माना जाता है. उत्तर भारत में यह व्रत ज्येष्ठ अमावस्या के दिन मनाया जाता है, जो इस बार 26 मई 2025 को पड़ रही है. वहीं महाराष्ट्र, गुजरात और दक्षिण भारत में इसे उत्तर भारत की तुलना में लगभग 15 दिन बाद मनाया जाता है.

व्रत के दिन क्या करें और क्या न करें

व्रत वाले दिन महिलाएं प्रातः स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण करती हैं, आमतौर पर लाल रंग की साड़ी या परिधान पहने जाते हैं और सोलह श्रृंगार किया जाता है. यह व्रत पूरी तरह निर्जल होता है, यानी पानी तक ग्रहण नहीं किया जाता, इसलिए स्वास्थ्य का ध्यान रखते हुए ही व्रत रखें. इस दिन मन और व्यवहार दोनों को संयमित रखना बेहद जरूरी होता है. क्रोध, झगड़ा या किसी से कटु वचन बोलने से बचें और घर के बुजुर्गों का आशीर्वाद जरूर लें. वट वृक्ष की पूजा कर महिलाएं उसकी परिक्रमा करती हैं और कच्चे सूत (धागे) से उसे बांधती हैं.

पूजा कैसे करें?

पूजन विधि में वट वृक्ष की पूजा सबसे अहम मानी जाती है. कहा जाता है कि सावित्री ने वट वृक्ष के नीचे तप कर अपने पति सत्यवान को यमराज से वापस पाया था. इसलिए महिलाएं वट वृक्ष के नीचे बैठकर व्रत कथा सुनती हैं और पूजा करती हैं.

इस दिन पूजा के लिए कुछ विशेष सामग्रियां तैयार रखनी चाहिए, जैसे – एक डलिया या बांस की टोकरी जिसमें सारी पूजा सामग्री रखी जाए.

मिट्टी से बने सावित्री और सत्यवान की प्रतिमाएं.

दीया, घी या तेल (सरसों/तिल), रुई की बाती, माचिस. धूपबत्ती, फूल, केला व अन्य फल, पान-सुपारी.

लाल धागा (कलावा), कच्चा सूत (जिससे वृक्ष की परिक्रमा की जाती है).

लाल व अन्य कोई एक रंग की दो चुनरी या कपड़े (सफेद और काले से बचें).

बताशे, साबुत नारियल (छिलके सहित).
हल्दी, चंदन, कुमकुम, रोली, अक्षत. तांबे/पीतल/चांदी का कलश (स्टील से बचें).

बांस या बेंत का बना पंखा.

सुहाग सामग्री जैसे – काजल, मेहंदी, सिंदूर, आलता, चूड़ियां, बिंदी, नथ, पायल, बिछुए, लाल चुनरी, साड़ी आदि.

कुशा (दर्भा घास).

दक्षिणा (नकद रुपये या सिक्के).

पूजन के बाद महिलाएं सावित्री-सत्यवान की कथा सुनती हैं और अंत में परिवार की सुख-शांति व पति की लंबी उम्र की कामना करती हैं. यह व्रत महिलाओं के आत्मबल और श्रद्धा का अद्भुत प्रतीक है.

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