रांची: खेती की बढ़ती लागत से किसान परेशान हैं. ‘मानव श्रम’ की बढ़ती लागत के कारण धान की खेती अब किसानों के लिए घाटे का सौदा बन गई है. ऐसे में बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के ‘कृषि अभियंत्रण विभाग’ के वैज्ञानिकों ने धान रोपाई मशीन बनाने में सफलता हासिल की है जो न सिर्फ बेहद सस्ती है बल्कि बेहद उपयोगी भी है.
धान की रोपाई करने वाली इस मशीन का नाम ‘पैडी ट्रांसप्लांटर’ रखा गया है. कृषि अभियंत्रण विभाग के सहायक प्राध्यापक और इस परियोजना के नेतृत्वकर्ता डॉ. उत्तम कुमार बताते हैं कि बीएयू द्वारा निर्मित ‘पैडी ट्रांसप्लांटर’ का पेटेंट भी हो चुका है. अब बीएयू के नियमानुसार इस मशीन के बड़े पैमाने पर उत्पादन के लिए किसी प्रोफेशनल निर्माता से एमओयू होगा और उसके बाद यह किसानों तक पहुंचेगी.
उन्होंने बताया कि भारत सरकार से प्राप्त परियोजना के तहत चार साल में यह धान रोपाई मशीन तैयार की गई है. इसे बनाने में 15 हजार रुपये की लागत आई है. बीएयू की एक विशेष कमेटी है जो तय करती है कि किसानों को यह किस कीमत पर उपलब्ध होगा. डॉ. उत्तम कुमार कहते हैं कि बीएयू द्वारा निर्मित पैडी ट्रांसप्लांटर इस मायने में खास है कि यह किसानों द्वारा खेतों में उगाए गए पौधों की रोपाई करने में सक्षम है. यह मशीन किसानों का पैसा भी बचाएगी, क्योंकि परंपरागत तरीके से कृषि मजदूरों द्वारा धान के पौधों की रोपाई में ₹7500 प्रति हेक्टेयर का खर्च आता है, जबकि इस मशीन से रोपाई का खर्च घटकर ₹1500 प्रति हेक्टेयर रह जाता है
डॉ. उत्तम कुमार ने बताया कि धान की रोपाई के लिए अब तक बनी सभी मैनुअल या ऑटोमेटिक मशीनों में प्लास्टिक मैट का इस्तेमाल होता है, इसमें मिट्टी की मोटाई मात्र 02 सेमी होती है, ऐसे में पौधा अच्छे से विकसित नहीं हो पाता है. बीएयू द्वारा आविष्कृत धान रोपाई मशीन की खासियत यह है कि यह किसानों द्वारा उगाए गए धान के पौधों की सीधे खेत में रोपाई करती है. इसमें 12-12 वोल्ट की दो ड्राई बैटरियां लगी हैं. एक मशीन रोपाई का काम चलाती है और दूसरी मशीन को खेत में आगे बढ़ाती है. उन्होंने बताया कि एक बैटरी चार घंटे तक चल सकती है और 37 किलो वजन वाली इस मशीन से हर दिन 50 डिसमिल खेत में आसानी से धान की रोपाई की जा सकती है.