Sunday, February 2, 2025

तपकारा गोलीकांड: जब पुलिस ने ग्रामीणों पर चलाई थी गोलियां, आठ लोग हुए थे शहीद, आज भी जारी है आंदोलन

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खूंटी: तपकारा गोलीकांड की आज 24वीं बरसी है. आज ही के दिन 2 फरवरी 2001 को तपकारा गोलीकांड हुआ था. ग्रामीण इस दिन को काले अध्याय के रूप में याद करते हैं. घटना को 24 साल हो गए हैं, लेकिन आज भी घटना का हर मंजर लोगों के दिलो-दिमाग में ताजा है. ग्रामीण समेत कई नेता आज तपकारा शहीद स्थल पर पहुंचेंगे और आंदोलनकारियों को श्रद्धांजलि देंगे.

इस श्रद्धांजलि सभा में उनके परिवार के सदस्य भी मौजूद रहेंगे. हर साल 2 फरवरी को कोयल कारो जनसंगठन आंदोलनकारियों की शहादत की याद में शहीद दिवस कार्यक्रम का आयोजन करता है. इस दौरान अनुष्ठान और प्रार्थना भी होती है. इसमें आसपास के दर्जनों गांवों के लोग जुटकर शहीदों को याद करते हैं.

आंदोलन में आठ लोग हुए थे शहीद

2 फरवरी 2001 को कोयल कारो जनसंगठन के नेतृत्व में हजारों ग्रामीणों ने जलविद्युत परियोजना के विरोध में तोरपा के तपकारा ओपी का घेराव किया था. इस दौरान पुलिस ने प्रदर्शन कर रहे ग्रामीणों की भीड़ पर फायरिंग कर दी. इस घटना में आठ ग्रामीण शहीद हो गए, जिनमें बोदा पाहन, जमाल खान, प्रभुसहाय कंडुलना, सोमा जोसेफ गुड़िया, लुकास गुड़िया, सुरसेन गुड़िया, सुंदर कंडुलना और समीर डहंगा शामिल थे. वहीं करीब 35 लोग घायल भी हुए. जबकि पांच लोग विकलांगता की जिंदगी जी रहे हैं. तब से लेकर अब तक हर साल 2 फरवरी को कोयल कारो जनसंगठन के बैनर तले हजारों ग्रामीण तपकारा शहीद स्थल पर जुटते हैं और इस दिन को ग्रामीण शहीद दिवस के रूप में मनाते हैं.

जलविद्युत परियोजना के खिलाफ शुरू हुआ था आंदोलन

कोयल कारो जनसंगठन जलविद्युत परियोजना इलाके की सूरत और सीरत बदलने के लिए काफी थी, लेकिन 36 साल तक ग्रामीणों के लगातार संघर्ष और आंदोलन के चलते आखिरकार इस परियोजना को घुटने टेकने पड़े. इसके लिए ग्रामीणों को अपने आठ साथियों की जान कुर्बान करनी पड़ी. ग्रामीणों के अनुसार इस परियोजना से करीब 256 गांवों का अस्तित्व खत्म हो जाता और उनकी पहचान भी खत्म हो जाती.

जलविद्युत परियोजना की परिकल्पना वर्ष 1953 में की गई थी. कोयल और कारो नदियों के संगम पर दो बड़े बांध बनाकर बिजली उत्पादन की योजना बनाई गई थी. अवधारणा के संचालन के दस साल बाद तत्कालीन बिहार राज्य विद्युत बोर्ड ने परियोजना को एनएचपीसी को सौंप दिया. एनएचपीसी ने इसे तेजी से आगे बढ़ाया, लेकिन कोयल कारो जनसंगठन के तीव्र आंदोलन के कारण परियोजना ठप हो गई. अंतत: सरकार ने इस पर रोक लगा दी, लेकिन आज भी ग्रामीणों का आंदोलन जारी है. क्योंकि सरकार ने परियोजना को स्थगित करने की बात को सरकारी गजट में शामिल नहीं किया है.

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