Sunday, February 2, 2025

Makhana Board: मखाना बोर्ड पर एक्सपर्ट बोले- बिचौलिया राज खत्म होगा, किसानों के लिए वरदान साबित होगा जलजमाव

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Budget 2025 : केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने सदन में आम बजट पेश करते हुए मखाना बोर्ड के गठन की घोषणा की है। देश में मखाना का 80 से 90 फीसदी उत्पादन बिहार में होता है। बोर्ड के गठन से मखाना उत्पादक किसानों को सीधा लाभ मिलने की उम्मीद है।

कभी जंगली फसल के तौर पर पहचानी जाने वाली मखाना की गिनती अब सुपर फूड में होती है। आयुर्वेदिक दवा, स्नैक्स, स्टार्च सहित कई अन्य उत्पादों के लिए मखाना का इस्तेमाल होता है। इस सुपर फूड की खेती से बिहार के करीब डेढ़ लाख किसान जुड़े हुए हैं। देश में मखाना के कुल उत्पादन का 80 से 90 फीसदी हिस्सा केवल बिहार का है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2022-23 में बिहार में करीब 35324 हैक्टेयर जमीन पर मखाना की खेती हुई। मखाना खेती का क्षेत्र लगातार बढ़ रहा है। अकेले कोसी-सीमांचल के क्षेत्र में ही करीब 55 हजार किसान मखाना की खेती करते हैं। बिहार सरकार ने बागवानी मिशन के तहत मखाना खेती को पिछले कुछ वर्षों में बढ़ावा दिया है। जीआई टैगिंग के बाद बिहार का मखाना ग्लोबल हो चुका है और विदेशों में निर्यात भी हो रहा है। हालांकि बिचौलियों की वजह से मखाना किसानों को उचित मूल्य की समस्या रहती थी। शनिवार को केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने लोकसभा में आम बजट पेश किया। इस दौरान उन्होंने मखाना बोर्ड के गठन की घोषणा की। जिससे मखाना किसानों के साथ ही विशेषज्ञों में भी उत्साह है।

एक्सपर्ट बताते हैं बोर्ड के गठन का सीधा लाभ मखाना उत्पादक किसानों को मिलेगा। केंद्र सरकार ने पहली बार मखाना को इतना फोकस दिया है। बोर्ड के गठन से उत्पादन, उत्पादकता, प्रोसेसिंग और मार्केटिंग में लाभ मिलेगा। मखाना उत्पादकों के लिए भी एफपीओ का गठन होगा। निर्यात बढ़ेगा और उचित मूल्य भी मिलेगा। भोला पासवान शास्त्री कृषि महाविद्यालय पूर्णिया के मखाना अनुसंधान परियोजना के प्रधान अन्वेषक डॉ अनिल कुमार बताते हैं कि बिहार में 9.12 लाख हैक्टेयर जलजमाव वाला क्षेत्र है, जहां मखाना खेती की संभावना है। वर्ष 2012 में बिहार में 12 से 15 हजार हैक्टेयर जमीन में मखाना की खेती होती थी। सरकार की पहल पर अब यह दायरा बढ़ रहा है। आपको बता दें कि पूर्णिया के भोला पासवान शास्त्री कृषि महाविद्यालय को बिहार सरकार ने मखाना फसल तथा जलजमाव क्षेत्र के विकास के लिए राज्य स्तरीय नोडल केंद्र का दर्जा दिया है।

बिहार के मधुबनी ने पहली बार दुनिया को बताया मखाना का महत्वभोला पासवान शास्त्री कृषि महाविद्यालय पूर्णिया के मखाना अनुसंधान परियोजना के प्रधान अन्वेषक डॉ अनिल कुमार बताते हैं कि खाद्य सुरक्षा के मद्देनजर पूरे विश्व के वैज्ञानिक नई वनस्पतियों की खोज में जुटे हैं। उच्च गुणवत्ता वाले प्रोटीन और स्टार्च की वजह से मखाना एक उत्तम खाद्य है और कई रोगों में गुणकारी होने की वजह से इसे सुपर फूड की श्रेणी में रखा गया है। 17वीं शताब्दी में बिहार के मधुबनी जिले में पहली बार मखाना की खेती हुई और विश्व को इसके महत्व से अवगत कराया गया।

बिहार के इन जिलों में मुख्य रूप से होती है मखाना की खेतीडॉ अनिल के अनुसार कुछ साल पहले तक बिहार के मधुबनी के अलावा दरभंगा, सीतामढ़ी, सहरसा, सुपौल, मधेपुरा, अररिया, पूर्णिया, कटिहार और किशनगंज जिले में ही व्यापक रूप से मखाना की खेती होती थी। लेकिन हाल के वर्षों में पश्चिमी चंपारण और खगड़िया जिले में भी मखाना खेती हो रही है।फिलहाल पूर्णिया में तैयार की गई उत्तम किस्म की बीज (सबौर-1) से अब उत्तर प्रदेश के कुशीनगर, छत्तीसगढ़ के धमतरी और मणिपुर के इंफाल में भी मखाना खेती हो रही है।

बोर्ड के गठन से खत्म होगी बिचौलियों की मनमानीमखाना के खेतों का क्षेत्रफल जैसे-जैसे बढ़ रहा है, उत्पादन में भी उसी अनुपात में वृद्धि हो रही है। हालांकि इसका लाभ किसानों से अधिक बिचौलिए उठा रहे हैं। इसके अलावा कुछ चुनिंदा लोगों का मखाना उद्योग पर एकाधिकार है। एक्सपर्ट बताते हैं कि बोर्ड के गठन से मखाना किसानों को एक प्लेटफार्म मिलेगा। इससे बिचौलियों की भूमिका समाप्त होगी। वही एफपीओ गठन कर किसान अपने उत्पाद का उचित मूल्य निर्धारण कर सकेंगे और वैल्यू एडिशन कर मखाना उत्पादों की बिक्री भी सुलभ होगी। जब उत्पादन बढ़ेगा और उचित मूल्य मिलेगा तो नए किसान भी जुड़ेंगे। किसान सबल होंगे।शोक नहीं, समृद्धि का प्रतीक बन सकती है कोसीनेपाल से बिहार में प्रवेश कर जल प्रलय के लिए मशहूर कोसी नदी को बिहार का शोक कहा जाता है। नदी तो हर साल बरसात के समय तटबंध के बीच तबाही मचाती ही है। लेकिन नदी की उपधारा और सीपेज का पानी अपने पूरे बहाव क्षेत्र में हजारों एकड़ जमीन में जलजमाव के कारण किसानों को रुलाती है।भोला पासवान शास्त्री कृषि महाविद्यालय पूर्णिया के मखाना अनुसंधान परियोजना के प्रधान अन्वेषक डॉ अनिल कुमार बताते हैं कि जलजमाव के इस क्षेत्र को शोक नहीं, वरदान बनाने के लिए वैज्ञानिकों की टीम काम में जुटी है। इन इलाकों में मखाना खेती की अपार संभावना है। राज्य सरकार का इस ओर ध्यान केंद्रित कराया गया है। लेकिन अब जबकि पहली बार केंद्र सरकार भी मखाना खेती को प्रोत्साहित करने जा रही है, काम को गति मिलेगी। कोसी नदी शोक नहीं, समृद्धि का प्रतीक बनेगी।

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