बरेली। खो-खो विश्व कप के पहले संस्करण में भारत की पुरुष और महिला टीमों ने जीत हासिल कर इतिहास रच दिया है। इस जीत ने न केवल खेल प्रेमियों को खुशी दी है, बल्कि खो-खो के भविष्य को भी एक नई दिशा मिली है। हालांकि, शहर में इस खेल के प्रति रुचि और बुनियादी सुविधाओं का अभाव चिंता का सबब बना हुआ है। शहर के स्पोर्ट्स स्टेडियम में इस खेल के लिए न तो कोच हैं, न ही जरूरी सुविधाएं। ऐसे में शहर की प्रतिभाएं दम तोड़ रहीं हैं।
शहर के माध्यमिक स्कूलों में खो-खो का प्रशिक्षण दिया जाता है। स्कूलों की अपनी टीम भी है, लेकिन मूलभूत सुविधाओं का अभाव यहां भी है। न तो इनडोर स्टेडियम है, न ही मैट की व्यवस्था। खिलाड़ी खुले में अभ्यास करते हैं और उनके चोटिल होने का खतरा बना रहता है। उन्हें उच्च स्तर का प्रशिक्षण भी नहीं मिल पाता।
खिलाड़ी सार्थक मिश्रा के मुताबिक शहर में खो-खो की स्थिति दयनीय है। अभ्यास करने के लिए कोई सुविधा नहीं। खिलाड़ी सुरेंद्र सिंह ने बताया कि खुले मैदान पर अभ्यास करने से चोटिल होने का खतरा रहता है। मैट की सुविधा न होने से अभ्यास में दिक्कत होती है।
भारत की दोनों टीमों को जीत की बधाई। हम कोशिश करेंगे कि खो-खो को लेकर शहर में जागरूकता बढ़े और खिलाड़ियों को सही मंच मिले। इसके प्रचार-प्रसार के लिए प्रयास किए जाएंगे। – नईम अहमद, जिला क्रीड़ा सचिव
खेल निदेशालय की ओर से कोच की नियुक्ति हो जाए तो हम जल्द ही स्टेडियम में खिलाड़ियों का प्रशिक्षण शुरू कर सकते हैं। इससे शहर के खिलाड़ियों को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी प्रतिभा दिखाने का मौका मिलेगा। – जितेंद्र यादव, आरएसओ