जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने रमेश बघेल नामक याचिकाकर्ता की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की। रमेश बघेल ने छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है।
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि एक बेटे को अपने पिता को दफनाने के लिए सुप्रीम कोर्ट आना पड़ रहा है, ये बेहद दुखद है। जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने रमेश बघेल नामक याचिकाकर्ता की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की। रमेश बघेल ने छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। दरअसल उच्च न्यायालय ने रमेश के पिता को, जो कि एक ईसाई पादरी थे, गांव के कब्रिस्तान में दफनाने की इजाजत देने से इनकार कर दिया था।
सुप्रीम कोर्ट ने जताई नाराजगी
सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि ‘एक व्यक्ति को, जो उस गांव में रहा, उसे मृत्यु के बाद गांव के कब्रिस्तान में दफनाने क्यों नहीं दिया जा रहा है? शव बीती 7 जनवरी से मोर्चरी में रखा हुआ है। ये कहते हुए दुख हो रहा है कि एक व्यक्ति को अपने पिता को दफनाने के लिए सुप्रीम कोर्ट आना पड़ रहा है। न तो पंचायत, न ही राज्य सरकार या उच्च न्यायालय कोई भी इस समस्या को सुलझा नहीं सका। हम उच्च न्यायालय की टिप्पणी से भी हैरान हैं कि इससे कानून व्यवस्था खराब होती।’
सॉलिसिटर जनरल की दलील- कानून व्यवस्था को हो सकता है खतरा
बघेल ने याचिका में कहा है कि गांव के लोगों ने उसके पिता को दफनाने का आक्रामक तरीके से विरोध किया। राज्य सरकार की तरफ से अदालत में पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट को बताया कि गांव में ईसाईयों के लिए कोई कब्रिस्तान नहीं है और शव को गांव से 20 किलोमीटर दूर एक कब्रिस्तान में दफनाया जा सकता है। बघेल की तरफ से अदालत में पेश हुए वरिष्ठ वकील कॉलिन गोंजाल्वेस ने दलील दी कि उसके परिवार के अन्य सदस्यों को गांव के ही कब्रिस्तान में दफनाया गया है, लेकिन मृतक ईसाई है, इसलिए उसे दफनाने की इजाजत नहीं दी जा रही है। इस पर तुषार मेहता ने कहा कि मृतक का बेटा गांव के ही कब्रिस्तान में पिता के शव को दफनाने पर अड़ा है और इससे आदिवासी हिंदू और आदिवासी ईसाई समुदाय के बीच वैमनस्य पैदा हो सकता है। मेहता ने कहा कि इस मामले पर भावनाओं के आधार पर फैसला नहीं लिया जाना चाहिए और वे इस पर बहस के लिए तैयार हैं।