Jharkhand News राज्य में कृषि वानिकी को बढ़ावा देने के लिए फलों के उत्पादन की नीति बनाई जा रही है। नाशपाती की बागवानी संताल परगना और हजारीबाग में करने की योजना है। बीजों को प्रसंस्करित और उपयोगी बनाया जाएगा। रांची और इसके आसपास वाटर एपल की खेती शुरू हुई है जिससे किसानों को लाभ होगा और राजस्व में वृद्धि होगी।
रांची। राज्य में कृषि वानिकी को बढ़ावा देने के लिए महंगे फलों के उत्पादन की नीति बनाई जा रही है। अभी लातेहार जिले के कुछ क्षेत्र में नाशपाती की खेती होती है।
नाशपाती की बागवानी को अब संताल परगना के साथ हजारीबाग जिले में भी करने की योजना बनाई जा रही है। राज्य के पर्यावरण के अनुकूल बनाने के लिए बीजों को प्रसंस्करित और उपयोगी बनाना होगा।
केंद्रीय बीज प्रमाणन बोर्ड ने इसके लिए राज्य सरकार के संबंधित विभाग के साथ काम प्रारंभ किया है। राज्य कृषि विज्ञान केंद्र में वानिकी संकाय के प्रोजेक्ट प्रमुख संजय पांडे का कहना है कि पलामू स्थित चियांकी में सेब के पौधे पहले लगाए गए थे।
अब नई प्रजाति के पौधों को किसी भी जलवायु में लगने लायक बनाया गया है। उन्होंने बताया कि वाटर एपल, नाशपाती, सेब जैसे फलों के लिए पर्यावरण के साथ मिट्टी भी मायने रखती है।
रांची और इसके आसपास वाटर एपल की खेती प्रारंभ हुई है। इसके फल अंतर्राष्ट्रीय गुणवत्ता के हैं। अब इनका व्यवसायिक उत्पादन होगा तो किसानों की आमदनी भी बढ़ेगी और राजस्व में भी वृद्धि होगी।
पपीते की खेती से किसानों को हो रहा फायदा
राज्य में पपीते की खेती लंबे समय से हो रही है। हालांकि इसे वानिकी से अलग रखा गया है। उच्च उत्पादकता वाले पौधों से किसानों को लाभ भी हो रहा है।
कृषि वानिकी के तहत राज्य में काजू का उत्पादन भी हो रहा है। काजू के प्रसंस्करण के लिए राज्य में कई प्लांट भी लगाए गए है।