नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को उत्तराखंड के अधिकारियों से एक पंजीकृत वक्फ संपत्ति को ध्वस्त करने के संबंध में अवमानना कार्रवाई शुरू करने की मांग वाली याचिका पर जवाब मांगा. जस्टिस बी आर गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने अवमानना याचिका पर सुनवाई की.
याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने दलील दी कि 1982 में धार्मिक स्थल को वक्फ संपत्ति के रूप में पंजीकृत किया गया था. सिब्बल ने जोर देकर कहा कि केंद्र द्वारा सुप्रीम कोर्ट के समक्ष दिए गए बयान के बावजूद इस स्थान को ध्वस्त कर दिया गया.
दलीलें सुनने के बाद, पीठ ने याचिका पर जवाब के लिए उत्तराखंड सरकार के अधिकारियों को नोटिस जारी करने का निर्णय लिया और मामले की अगली सुनवाई 15 मई को निर्धारित की.
जस्टिस गवई ने कहा, “हम इसे उन मामलों (वक्फ संशोधन अधिनियम, 2025 से संबंधित) के साथ रखेंगे.” शीर्ष अदालत वक्फ संशोधन अधिनियम, 2025 को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर 15 मई को सुनवाई करने वाली है.
अवमानना याचिका अधिवक्ता फुजैल अहमद अय्यूबी के माध्यम से दायर की गई है. याचिका में कहा गया है कि दरगाह हजरत कमाल शाह को 1982 में सुन्नी सेंट्रल बोर्ड ऑफ वक्फ, लखनऊ के साथ वक्फ संपत्ति के रूप में पंजीकृत किया गया था, और यह 150 से अधिक वर्षों से धार्मिक महत्व का एक प्रतिष्ठित स्थल था.
बिना नोटिस के दरगाह को ध्वस्त किया गया…
याचिका में आरोप लगाया गया है कि देहरादून में एक दरगाह को वक्फ संशोधन अधिनियम, 2025 को चुनौती देने के मामले में 17 अप्रैल को केंद्र सरकारी की ओर से शीर्ष अदालत के समक्ष दिए गए आश्वासन के बावजूद 25-26 अप्रैल की मध्यरात्रि में बिना किसी नोटिस के ध्वस्त कर दिया गया.
याचिका में कहा गया है कि 17 अप्रैल के आदेश में दर्ज आश्वासन के बावजूद प्रतिवादियों या कथित अवमाननाकर्ताओं ने सुनवाई का अवसर दिए बिना या कोई नोटिस दिए बिना ही रात के अंधेरे में दरगाह को गिरा दिया.
याचिका में सुप्रीम कोर्ट के 13 नवंबर, 2024 के फैसले का भी हवाला दिया गया है, जिसमें पूरे देश के लिए दिशा-निर्देश निर्धारित किए गए थे और कार्रवाई से पहले कारण बताओ नोटिस और पीड़ित पक्ष को जवाब देने के लिए 15 दिन का समय दिए बिना संपत्तियों को ध्वस्त करने पर रोक लगाई गई थी.