नई दिल्ली: भारतीय चुनाव आयोग (ECI) ने लगभग 20 साल पुराने एक ऐसे मुद्दे को सुलझा लिया है, जिसमें एक जैसे इलेक्शन फोटो आइडेंटिटी कार्ड (EPIC) नंबर रियल वोटर्स को गलती से जारी कर दिए गए थे. 2005 से ऐसे मामलों में अलग-अलग EROs द्वारा एक जैसी सीरीज का इस्तेमाल किया गया था.
वोटर लिस्ट को साफ-सुथरा बनाने के अपने प्रयास में चुनाव आयोग ने इस मुद्दे को सुलझाया. बता दें कि कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस सहित कई विपक्षी दलों ने ईपीआईसी नंबरों में दोहराव का मुद्दा उठाया था. इसके बाद ईसीआई ने विपक्षी दलों द्वारा उठाए गए मामले पर ध्यान दिया और इसे हल करने का आश्वासन दिया.
पूरी चुनावी डेटाबेस की खोज
ईसीआई सूत्रों ने ईटीवी भारत को बताया कि लंबे समय से लंबित इस समस्या को हल करने के लिए, सभी 36 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के सीईओ और भारत भर के सभी 4123 विधानसभा क्षेत्रों के ईआरओ द्वारा सभी 10.50 लाख मतदान केंद्रों में 99 करोड़ से अधिक मतदाताओं के पूरी चुनावी डेटाबेस की खोज की गई. औसतन प्रति मतदान केंद्र लगभग 1,000 मतदाता हैं.”
सूत्रों ने बताया कि क्षेत्र स्तर पर वेरिफिकेशन के दौरान पाया गया कि ऐसे समान EPIC नंबर धारक विभिन्न विधानसभा क्षेत्रों और विभिन्न मतदान केंद्रों के वास्तविक मतदाता थे. उन्होंने कहा कि ऐसे सभी मतदाताओं को नए नंबरों के साथ नए ईपीआईसी कार्ड जारी किए गए हैं.
2005 में हुई उत्पत्ति
उन्होंने मंगलवार को कहा, “इस मुद्दे की उत्पत्ति 2005 से पता चली है, जब विभिन्न राज्य/केंद्र शासित प्रदेश डीसेंट्रलाइज तरीके से विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रवार अलग-अलग अल्फ़ान्यूमेरिक सीरीज का उपयोग कर रहे थे. निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन के बाद 2008 में इन सीरीज को फिर से बदलना पड़ा. इस अवधि के दौरान, कुछ विधानसभा क्षेत्रों ने गलती से पुरानी सीरीज का उपयोग करना जारी रखा.
सूत्रों ने आगे बताया, “प्रत्येक मतदाता का नाम मतदान केंद्र की मतदाता सूची में है, जहां वह सामान्य निवासी है. समान संख्या का ईपीआईसी होने से ऐसा कोई भी व्यक्ति किसी अन्य मतदान केंद्र पर मतदान करने में सक्षम नहीं हो सकता.” उन्होंने कहा कि समान ईपीआईसी जारी होने से किसी भी चुनाव के परिणामों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ सकता.