नई दिल्ली: सीमा पार हमलों के बाद बढ़े तनाव और पाकिस्तान की आर्थिक और सैन्य नीतियों के बारे में बढ़ती चिंताओं के बीच भारत ने इंटरनेशन मॉनेटरी फंड (IMF) के एक महत्वपूर्ण मतदान से दूर रहने का फैसला किया. इसमें एक्स्टेंडेड फंड फैसिलिटी (EFF) के तहत पाकिस्तान को लगभग 1 बिलियन अमरीकी डॉलर के वितरण को मंजूरी दी गई.
IMF और पाकिस्तान ने 39 महीने के 7 बिलियन अमरीकी डॉलर के लोन प्रोग्राम की पहली द्विवार्षिक समीक्षा पर 25 मार्च को एक स्टाफ-लेवल समझौता किया था, जिसमें कार्बन लेवी की शुरूआत, इलेक्ट्रेसिटी ट्रैरिफ में समय पर संशोधन, पानी की कीमतों में वृद्धि और ऑटोमोबाइल क्षेत्र के उदारीकरण सहित कई सुधारों पर सहमति व्यक्त की गई थी.
भारत ने पाकिस्तान के खराब ट्रैक रिकॉर्ड और राज्य स्पोंसर्ड सीमा पार आतंकवाद के लिए ऋण वित्तपोषण निधि के दुरुपयोग की संभावना को लेकर मामले में IMF कार्यक्रमों की प्रभावशीलता पर चिंता जताई थी. नई दिल्ली ने पाकिस्तान को 2.3 बिलियन अमरीकी डॉलर के नए ऋण देने के IMF के प्रस्ताव का विरोध करते हुए कहा कि उनका दुरुपयोग राज्य प्रायोजित सीमा पार आतंकवाद के वित्तपोषण के लिए किया जा सकता है.
भारत ने आईएमएफ के बोर्ड में अपना विरोध दर्ज कराया, जिसकी शुक्रवार को हुई बैठक में विस्तारित निधि सुविधा (EFF) लोन प्रोग्राम की समीक्षा की गई और पाकिस्तान के लिए एक नए रीसाइलेंस एंड सस्टेनेबल फैसिल्टी (RSF) लोन प्रोग्राम पर भी विचार किया गया. हालांकि मतदान से दूर रहना निष्क्रिय प्रतीत हो सकता है, लेकिन यह एक सुनियोजित कूटनीतिक संदेश था जो सिद्धांत और नीति दोनों पर आधारित था.
IMF का वोटिंग सिस्टम
आईएमएफ एग्जिक्यूटिव बोर्ड में 25 निदेशक शामिल हैं, जो सभी 190 सदस्य देशों का प्रतिनिधित्व करते हैं. यह या तो व्यक्तिगत रूप से या समूहों में काम करते हैं. मतदान शक्ति प्रत्येक सदस्य के वित्तीय योगदान (कोटा) पर आधारित होती है, न कि संयुक्त राष्ट्र की तरह एक-देश-एक-मत पर. उदाहरण के लिए यूएस के पास 16 प्रतिशत से अधिक वोट हैं.
अधिकांश आईएमएफ निर्णय सर्वसम्मति से लिए जाते हैं. हालांकि, जब मतदान होता है तो सदस्य केवल पक्ष में या मतदान से परहेज कर सकते हैं. प्रस्ताव को ‘नहीं’ वोट या पूरी तरह से अस्वीकार करने के लिए कोई औपचारिक तंत्र नहीं है. इसलिए मतदान से दूर रहना, आईएमएफ की प्रक्रियागत सीमाओं के भीतर विरोध का संकेत देने के लिए उपलब्ध सबसे मजबूत साधन बन जाता है.
भारत ने वोटिंग में क्यों भाग नहीं लिया ?
भारत का भाग न लेना न्यूट्रेलिटी नहीं था. यह IMF प्रोटोकॉल में निहित एक कूटनीतिक फटकार थी. नई दिल्ली के इस निर्णय के पीछे क्या कारण थे इनमें IMF सहायता का लगातार दुरुपयोग, आतंकवाद और वैश्विक मानदंड शामिल हैं.
IMF सहायता का लगातार दुरुपयोग
भारत ने IMF सहायता पर पाकिस्तान की आदतन निर्भरता की ओर इशारा किया. पिछले पांच साल में IMF की ओर से पाकिस्तान के वित्तीय कुप्रबंधन के लिए चार बेलआउट मिले , जो इसकी पुरानी प्रकृति को दर्शाते हैं. भाग न लेने से भारत ने संरचनात्मक जवाबदेही के बिना निरंतर वित्तपोषण की विश्वसनीयता पर सवाल उठाया.
अर्थव्यवस्था पर पाकिस्तानी सेना की पकड़
भारत ने पाकिस्तान के आर्थिक शासन में सेना की भूमिका पर कड़ी आपत्ति जताई. पाकिस्तानी सेना सैन्य-संचालित समूहों के माध्यम से अर्थव्यवस्था के बड़े हिस्से को नियंत्रित करती है और राजकोषीय निर्णयों पर उसका बहुत बड़ा प्रभाव है. भारत ने तर्क दिया कि यह ट्रांसेपेरेंसी, सिविलियन कंट्रोल और IMF द्वारा संचालित सुधारों की प्रभावशीलता को कमजोर करता है.
आतंकवाद और वैश्विक मानदंड
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि भारत ने ऐसे राज्य को वित्तपोषित करने का विरोध किया जो सीमा पार हमलों के लिए जिम्मेदार आतंकवादी समूहों को पनाह और समर्थन देता है. भारत ने तर्क दिया कि ऐसे राज्य को वित्तीय सहायता प्रदान करना अंतरराष्ट्रीय मानदंडों का उल्लंघन करता है और एक तटस्थ संस्था के रूप में IMF की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचा सकता है.
संघर्ष के बीच कूटनीतिक संकेत
भारत का यह निर्णय हाल ही में हुए आतंकी हमलों के बाद भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव बढ़ने के बीच आया है. मतदान में भाग न लेने से नई दिल्ली ने आईएमएफ प्रक्रिया को पटरी से उतारे बिना एक कड़ा संदेश दिया – एक ऐसा कदम जो सीधे टकराव से बचता है, लेकिन फिर भी तीखी अस्वीकृति दर्ज करता है.
भारत की स्थिति बनाम आईएमएफ की आम सहमति
भारत के मतदान में भाग न लेने के बावजूद लोन को मंजूरी दे दी गई . यह व्यापक अंतरराष्ट्रीय आम सहमति को दर्शाता है, जो संभवतः पाकिस्तान के चूक करने पर क्षेत्रीय अस्थिरता की आशंकाओं से प्रेरित है.