गुजरात के निष्कासित आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट को सुप्रीम कोर्ट से बड़ा झटका लगा है. आजीवन कारावास की सजा निलंबित करने की मांग ठुकराई.
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को जमानत देने से इनकार कर दिया तथा 1990 के हिरासत में हुई मौत के एक मामले में गुजरात के निष्कासित आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट को दी गई आजीवन कारावास की सजा को निलंबित करने से भी इनकार कर दिया.
यह आदेश न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने सुनाया. पीठ की ओर से आदेश सुनाने वाले न्यायमूर्ति मेहता ने कहा कि अदालत आवेदक संजीव भट्ट को जमानत पर रिहा करने के पक्ष में नहीं है.
पीठ ने कहा कि हम यह स्पष्ट करते हैं कि यहां की गई टिप्पणियां केवल जमानत के लिए प्रार्थना तक ही सीमित हैं और अपीलकर्ता और सह-अभियुक्तों की अपीलों पर इसका कोई असर नहीं होगा. आवेदक संजीव भट्ट द्वारा जमानत दिए जाने की मांग को खारिज किया जाता है और अपील की सुनवाई में तेजी लाई जाती है. विस्तृत आदेश बाद में दिन में अपलोड किया जाएगा.
शीर्ष अदालत ने इस साल फरवरी में अपना आदेश सुरक्षित रख लिया था. भट्ट ने गुजरात हाईकोर्ट के जनवरी 2024 के फैसले को चुनौती देते हुए याचिका दायर की थी. इसमें दोषसिद्धि और सजा के खिलाफ उनकी अपील खारिज कर दी गई थी.
यह घटना नवंबर 1990 में प्रभुदास माधवजी वैष्णानी नामक व्यक्ति की मौत से संबंधित है. आरोप है कि पीड़ित की मौत हिरासत में यातना के कारण हुई थी और जिस समय यह घटना हुई, उस समय भट्ट जामनगर के सहायक पुलिस अधीक्षक थे. भट्ट ने अन्य अधिकारियों के साथ मिलकर भारत बंद के दौरान दंगा करने के आरोप में वैष्णानी सहित लगभग 133 लोगों को हिरासत में लिया था.