आदिवासी समुदाय का प्रसिद्ध दो दिवसीय पत्ता मेला पर्व संपन्न हो गया है. मधेपुरा जिले के अरार संथाली टोले में मनाया जाने वाला यह पर्व देवाधिदेव महादेव को समर्पित होता है, जो हर वर्ष 20 अप्रैल की रात से शुरू होकर 21 अप्रैल को समाप्त होता है.
आदिवासी समुदाय का दो दिनों तक चलने वाले महत्वपूर्ण पत्ता मेला पर्व संपन्न हो गया है. अरार संथाली टोले में आदिवासी समुदाय का यह पर्व स्वर्गीय दुर्गा मुर्मू के नाम से मनाया जाता है. पहले इस पर्व के पुजारी भगत स्वर्गीय दुर्गा मुर्मू हुआ करते थे. दुर्गा मुर्मू की मृत्यु के बाद उनका पोता श्यामलाल मुर्मू पुजारी भगत का काम कर रहे हैं. पत्ता मेला पर्व में भोले शंकर की पूजा की जाती है.
दूर-दूर से साथी की तलाश में आते हैं लोग
इस त्योहार के दौरान 25 से 30 फीट ऊंचा मोटा खंभा लगाया जाता है और उसी के बगल में उतना ही ऊंचा एक मचान बनाया जाता है. प्रत्येक वर्ष 20 अप्रैल की रात से यह मेला शुरु होता है और दूसरे दिन 21 अप्रैल को इसका समापन होता है. इस मेले में दूरदराज से आदिवासी समुदाय के अविवाहित लड़के, लड़की रात भर मेले में घूमकर अपने पसंद की जोड़ी की तलाश करते हैं.

कैसे शुरू होती है शादी की तैयारी
मेले में किसी लड़की के पसंद आने पर लड़का उसे पान देता है. यदि लड़की पान स्वीकार कर खा लेती है तो समझा जाता है कि दोनों एक-दूसरे को पसंद हैं और शादी की तैयारी शुरू कर दी जाती है.
बिना कलछुल के हाथ से बनाते हैं पकवान
पर्व की अंतिम रात प्रसाद के रूप में पूड़ी, पकवान बनाया जाता है. भक्त खुलते हुए तेल और घी में बगैर किसी छांछ और कलछुल के हाथ से ही पकवान बनाते हैं. 21 अप्रैल की सुबह भगत पान, प्रसाद फूल सहित फुलडाली लेकर लंबे खंभे पर हर-हर महादेव करते हुए चढ़कर नाच-गान करते हैं और नीचे आ जाते हैं. लोगों ने बताया कि महादेव की कृपा से ही इतना जोखिम भरा पूजा पाठ सफल होता है. इस पर्व के दौरान भगत पांच दिन तक उपवास भी रखते हैं.
