Sunday, April 20, 2025

लातेहार जिले के गांवों में सरहुल त्योहार को धूमधाम से मनाया गया. लोगों ने कहा इस त्योहार से रिश्तों में खटास दूर होती है.

Share

लातेहार: सरहुल का त्योहार आदिवासियों के लिए सबसे बड़े त्योहारों में से एक है. सरकारी सरहुल के बाद प्रत्येक गांव में अलग-अलग दिन सरहुल मनाया जाता है. गांव के सरहुल की सबसे अच्छी परंपरा यह है कि इस दिन ग्रामीणों की सभी पुरानी दुश्मनी खत्म हो जाती है. इस दिन सभी लोग अपने पुराने बैर को भूल जाते हैं. रिश्ते नातों में आए खटास को भी सरहुल खत्म कर देता है.

दरअसल, सरकारी सरहुल के बाद लातेहार जिले के प्रत्येक आदिवासी बहुल गांव में अलग से पारंपरिक सरहुल का त्यौहार मनाया जाता है. जिस दिन गांव में सरहुल होता है, उस दिन ग्रामीण कई परंपराओं को मानते हैं. सरहुल के एक दिन पहले गांव की बेटियां जिनका विवाह दूसरे गांव में हो गया हो, वह भी अपने मायके आ जाती हैं. इसके अलावा अन्य रिश्तेदार भी गांव में पहुंचते हैं. सरहुल के दिन सरना पूजा के बाद ही गांव में ग्रामीण कोई दूसरा कार्य करते हैं.

इस संबंध में नेवाड़ी पंचायत के मुखिया अमरेश उरांव ने कहा कि गांव का सरहुल गांव के लिए सबसे बड़ा उत्सव होता है. उन्होंने कहा कि सरहुल के उत्सव का सबसे बड़ा महत्व यह है कि इस दिन ग्रामीण अपने सभी पुरानी दुश्मनी को मिटा लेते हैं. मुखिया ने कहा कि इस दिन गांव में सरना पूजा के बाद आने वाले मौसम का अनुमान भी लग जाता है. वहीं ग्रामीण संतोष उरांव ने कहा कि सरहुल के दिन गांव में रहने वाले ग्रामीणों के रिश्तेदार भी पहुंचते हैं और एक साथ मिलकर सरहुल का त्योहार मनाते हैं.


सामाजिक दूरियों को मिटाता है सरहुल का त्योहार

पांडेयपुरा पंचायत के मुखिया संजय उरांव ने बताया कि सरहुल के त्योहार की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इस दिन सामाजिक दूरियां लगभग खत्म हो जाती हैं. उन्होंने कहा कि वर्तमान में जैसा परिवेश हो गया है, उस परिवेश में लोगों का मिलना जुलना काफी कम हो गया है. लोग मोबाइल पर बात कर रिश्तेदारी निभा लेते हैं. लेकिन सरहुल का त्योहार एक ऐसा त्योहार है, जिसमें ग्रामीणों के रिश्तेदार गांव पहुंचते हैं. लगभग डेढ़ महीने तक अलग-अलग गांव में लोगों का आना-जाना और मिलना जुलना लगातार चलता है, जिससे सामाजिक एकता की भावना भी जागृत होती है.

मुखिया संजय उरांव ने कहा कि सरहुल के दिन जब तक सरना पूजा नहीं होता, तब तक गांव में दूसरा कोई कार्य नहीं होता है. सरहुल के दिन सरना पूजा होने के बाद से ग्रामीण खेती बाड़ी की शुरुआत भी करते हैं. सरहुल का त्योहार पुरानी परंपराओं को संरक्षित करने के साथ-साथ लोगों में एकता की भावना को भी जागृत करता है.

SARHUL FESTIVAL IN LATEHAR

Read more

Local News