पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम होने से आपको फैटी लिवर रोग होने का अधिक खतरा होता होता है. डॉक्टरों से जानें कैसे और क्या है इसका इलाज?
उम्र के हर पड़ाव के साथ महिलाओं के शरीर में कई तरह के बदलाव देखने को मिलते हैं. लेकिन कम उम्र में अनदेखी और बढ़ती उम्र के साथ लापरवाही के कारण महिलाएं अपने शरीर में होने वाली तकलीफों और छोटी-मोटी परेशानियों को नजरअंदाज करने लगती हैं, जैसे कि पेल्विक या पेट के निचले हिस्से में दर्द, असामान्य डिस्चार्ज और मासिक धर्म संबंधी समस्याएं आदि. ऐसे में आज इस खबर के माध्यम से जानें कि नॉन-अल्कोहलिक फैटी लिवर और पीसीओएस के बीच क्या संबंध है?
लिवर ट्रांसप्लांट फिजिशियन और गैस्ट्रोएंटेरोलॉजिस्ट, रूबी हॉल क्लिनिक पुणे के हेपेटोलॉजिस्ट, डॉ. पवन हंचाले के मुताबिक, पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम ( PCOS ) में एंड्रोजन का लेवल हाई होता है, जो मेटाबोलिज्म संबंधी गड़बड़ी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. बता दें, एंड्रोजन एक पुरुष हार्मोन है, जब इसका लेवल बढ़ता है, तब महिलाओं में अनियमित मासिक धर्म, मुंहासे, और शरीर पर अधिक बाल जैसे लक्षण दिखने लगते हैं. PCOS में एंड्रोजन की अधिकता का एक प्रमुख परिणाम इंटरनल ऑर्गन के आसपास शरीर में फैट का जमाव (फैट एकम्यूलेशन) होना है, जो इंसुलिन रेजिस्टेंस और अन्य हेल्थ प्रॉब्लम्स के रिस्क को बढ़ाता है.
इस प्रकार की चर्बी (फैट एकम्यूलेशन) मेटाबॉलिकली एक्टिव होती है और एडिपोनेक्टिन के लो लोवल से जुड़ी होती है. बता दें, एडिपोनेक्टिन एक हार्मोन है जो इंसुलिन संवेदनशीलता को बढ़ाता है. दोनों का एक साथ प्रभाव इंसुलिन रेजिस्टेंस के विकास में योगदान देता है, इस स्थिति में शरीर की कोशिकाएं इंसुलिन के प्रति खराब रिस्पांस करती हैं.
पीसीओएस और नॉन-अल्कोहलिक फैटी लिवर रोग के बीच क्या संबंध है?
इंसुलिन प्रतिरोध (Insulin Resistance) पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम (PCOS) और नॉन-अल्कोहलिक फैटी लिवर डिजीज (NAFLD) के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, क्योंकि ये दोनों स्थितियां अक्सर एक साथ पाई जाती हैं और इंसुलिन प्रतिरोध इन दोनों के विकास में एक मेन फैक्टर है. वहीं, NAFLD के गंभीर रूप, जैसे NASH, सिरोसिस और हेपेटोसेलुलर कार्सिनोमा, इंसुलिन रेजिस्टेंस से जुड़े होते हैं, जो मोटापे और टाइप 2 डायबिटीज से भी संबंधित हैं. जब शरीर में इंसुलिन प्रतिरोध होता है, तो पैंक्रियाज अधिक इंसुलिन बनाने की कोशिश करता है, जिससे फैट, खासकर लिवर में, जमा हो जाती है. समय के साथ यह हेपेटिक स्टेटोसिस (फैटी लिवर) NASH (गैर-अल्कोहलिक स्टीटोहेपेटाइटिस) में विकसित हो सकता है, जो कि एक गंभीर स्थिति है जिसमें लिवर में सूजन और क्षति होती है. इंसुलिन प्रतिरोध पीसीओएस और NAFLD/NASH दोनों में एक आम मेटाबॉलिक कारण है, जो लिवर में फैट जमाव, सूजन और लॉन्ग टर्म लीवर डैमेज का कारण बन सकता है.
हाल के वर्षों में, महिलाओं के स्वास्थ्य पर चर्चा अब प्रजनन संबंधी चिंताओं से आगे बढ़कर मोटापे और इंसुलिन प्रतिरोध जैसी मेटाबॉलिक समस्याओं पर भी केंद्रित हो गई है, जो महिलाओं के समग्र स्वास्थ्य को प्रभावित करती हैं. ऐसा ही एक क्षेत्र जो ध्यान आकर्षित कर रहा है, वह है पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम (पीसीओएस) और नॉन-अल्कोहलिक फैटी लिवर डिजीज (एनएएफएलडी) के बीच संबंध. हालांकि ये अलग-अलग स्थितियां लग सकती हैं, लेकिन दोनों ही इंसुलिन प्रतिरोध से जुड़ी हैं, जो एक सामान्य अंतर्निहित कारक है, इसलिए ये दोनों स्थितियां इंसुलिन प्रतिरोध से प्रेरित हैं.
बीडीआर फार्मास्यूटिकल्स के तकनीकी निदेशक डॉ. अरविंद बैडिगर ने कहा कि पीसीओएस अनियमित मासिक धर्म, मुंहासे और बांझपन के लिए जाना जाता है, लेकिन यह चयापचय और लिवर हेल्थ को भी प्रभावित करता है, जिससे डायबिटीज और हार्ट डिजीजी का खतरा बढ़ सकता है. इंसुलिन प्रतिरोध पीसीओएस (पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम) का एक प्रमुख लक्षण है, जो हार्मोनल असंतुलन के साथ-साथ लिवर में वसा के संचय को भी बढ़ावा देता है, जिससे फैटी लिवर रोग होता है. यह पीसीओएस वाली महिलाओं को एनएएफएलडी विकसित करने के लिए अतिसंवेदनशील बनाता है. यह समय के साथ एक साइलेंट किलर की तरह बढ़ सकता है.
हार्मोन और मेटाबॉलिज्म को मैनेज करना जरूरी
पीसीओएस और फैटी लिवर दोनों के मैनेजमेंट के लिए लाइफस्टाइल में बदलाव जरूरी है. संतुलित आहार, रेगुलर फिजिकल एक्टिविटी और वजन कम करने से इंसुलिन संवेदनशीलता में काफी सुधार कर सकता है, मासिक धर्म चक्र को रेगुलेट कर सकता है और लीवर की चर्बी को कम कर सकता है. हालांकि, कई महिलाओं के लिए, केवल जीवनशैली में बदलाव पर्याप्त नहीं हो सकते हैं, क्योंकि कुछ स्वास्थ्य समस्याएं या स्थितियां अधिक जटिल होती हैं और चिकित्सा हस्तक्षेप की आवश्यकता होती हैं.
डॉ. अरविंद बैडिगर के मुताबिक, पीसीओएस के लिए आमतौर पर निर्धारित मेटफॉर्मिन न केवल इंसुलिन प्रतिरोध में सुधार करता है बल्कि लिवर की चर्बी को कम करने में भी मददगार है. इसी तरह, इनोसिटोल सप्लीमेंट, मौखिक गर्भनिरोधक और एंटी-एंड्रोजन लिवर के स्वास्थ्य को डायरेक्ट तौर से लाभ पहुंचाते हुए हार्मोन को संतुलित करने में मदद करते हैं.
फार्मास्युटिकल इंडस्ट्रीज (PCOS) और (NAFLD) के दोहरे बोझ को तेजी से पहचान रहा है, अनुसंधान और कॉम्बिनेशन थेरेपी के डेवलपमेंट में इन्वेस्ट कर रहा है जो हार्मोनल इंबैलेंस और metabolic dysfunction दोनों को संबोधित करते हैं. पीसीओएस से पीड़ित महिलाओं के
लिए तैयार किए गए Innovative drug delivery systems, हार्मोन मॉड्यूलेटर और इंसुलिन सेंसिटाइजर धीरे-धीरे इलाज प्रोटोकॉल को बदल रहे हैं.