हजारीबाग: गणतंत्र दिवस के अवसर पर फिट इंडिया कार्यक्रम के अंतर्गत पद्मश्री उदय देशपांडे के नेतृत्व में विनोबा भावे विश्वविद्यालय में पहली बार भारतीय पारंपरिक खेल मल्लखंभ का आयोजन किया गया.
हजारीबाग के विनोबा भावे विश्वविद्यालय के विवेकानंद सभागार में शुक्रवार के दिन मल्लखंभ खेल को लेकर विशेष कार्यशाला आयोजित की गयी. मल्लखंभ खेल का प्रदर्शन करने के लिए रियलिटी शो के विजेता आकाश सिंह और उनकी सहयोगी साक्षी मांजरेकर पहुंचीं. कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के तौर पर मल्लखंभ के पितामह कहे जाने वाले पद्मश्री से सम्मानित उदय देशपांडे भी सम्मिलित हुए. इस देसी खेल को देखकर विश्वविद्यालय के छात्र-छात्राओं के साथ-साथ बीएसएफ मेरु कैंप के जवान भी आश्चर्यचकित हो गए.
कार्यक्रम के दौरान पद्मश्री उदय देशपांडे ने कहा मल्लखंभ देश का अपना खेल है. 12 सदी पहले इसकी शुरुआत भारत में हुई थी. आज यह 56 देशों तक पहुंच चुका है. मल्लखंभ न केवल एक खेल है, बल्कि शरीर और मन को मजबूत करने वाला अनुशासन है. यह एक मात्र ऐसा खेल है जिसमें रीढ़ की हड्डी का भी व्यायाम होता है.
मल्लखंभ एक प्रकार का पारंपरिक जिम्नास्टिक है. जिसमें योग, जिम्नास्टिक और मार्शल आर्ट का समायोजन देखने को मिलता है. कार्यक्रम के दौरान उन्होंने विश्वविद्यालय के छात्र-छात्राओं को न केवल मल्लखंभ की जानकारी दी बल्कि इसके साथ ही उन्होंने नई पीढ़ी को इस पारंपरिक खेल से जुड़ने के लिए भी जागरूक किया.
लोग खड़े होकर कलाकारों की सराहना कर रहे थे. दर्शक भी बताते हैं कि विश्वविद्यालय में ऐसा पहली बार अनोखा कार्यक्रम किया गया है. इस प्रकार के पारंपरिक खेलों का प्रदर्शन विश्वविद्यालय में लगातार होना चाहिए.
विश्वविद्यालय के कुलपति पवन कुमार पोद्दार भी मल्लखंभ खेल के माहिर माने जाते हैं. इस प्रकार का कार्यक्रम विश्वविद्यालय में लगातार होते रहना चाहिए. दर्शकों ने पहली बार ऐसा कार्यक्रम अपनी नजरों के सामने देखा है. उनका कहना था कि केवल टीवी पर ही ऐसा कार्यक्रम देखने को मिलता है. कार्यक्रम के दौरान मल्लखंभ देखकर सभी लोग आश्चर्यचकित हो गए. दर्शकों का उत्साह देखने लायक था. पद्मश्री उदय देशपांडे ने विश्वविद्यालय प्रबंधन से कहा कि जो भी छात्र यह सीखना चाहते हैं उन्हें निशुल्क यह अभ्यास कराया जाएगा.
मल्लखंभ योग, जिमनास्टिक और मार्शल आर्ट का एक संयोजन है. इसे कुश्ती की पकड़ और हवाई योग मुद्राओं का उपयोग करके प्रदर्शित किया जाता है. इसमें खंभा आमतौर पर शीशम से बनाया जाता है और उसे अरंडी के तेल से पॉलिश किया जाता है. मल्लखंभ का अभ्यास डंडे के साथ साथ रस्सी के ऊपर भी किया जाता है.
मल्लखंभ का इतिहास प्राचीन भारत से जुड़ा है और इसे व्यायाम व योग का अद्वितीय रूप माना जाता है. मल्लखंभ का उल्लेख मराठा साम्राज्य के दौरान मिलता है, जब यह पहलवानों की शारीरिक क्षमता और लचीलापन बढ़ाने के लिए उपयोग में लाया जाता था.
18वीं शताब्दी में, बाजीराव द्वितीय के राजदरबार में इसका औपचारिक विकास हुआ. इस में “मल्ल” का अर्थ है पहलवान और “खंब” का मतलब खंभा. यह कला पारंपरिक रूप से एक लकड़ी के खंभे या रस्सी पर योगासन और व्यायाम के माध्यम से शारीरिक और मानसिक संतुलन को सुदृढ़ करने पर केंद्रित है. मल्लखंभ न केवल भारत में बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी एक खेल के रूप में लोकप्रिय हो रहा है.