हजारीबाग: जिले के हजारीबाग रांची रोड पर मासीपीडीह के पास स्थित सनशाइन अस्पताल में शुक्रवार को ईडी ने औचक छापेमारी की. पांच अधिकारियों समेत 12 सदस्यीय टीम सुबह छह बजे दो इनोवा वाहन से सनशाइन अस्पताल पहुंची. वे दोपहर सवा तीन बजे तक छापेमारी करते रहे. इस दौरान अस्पताल संचालक डॉ. अर्जुन कुमार से लगातार नौ घंटे तक जानकारी जुटाई गई और पूछताछ की गई. मामला आयुष्मान घोटाले से जुड़ा है.
मालूम हो कि छह साल पहले उक्त अस्पताल में आयुष्मान घोटाले का काफी चर्चित मामला सामने आया था. जिसमें फर्जी रेफरल जमा कर सरकारी अस्पताल में इलाज करा सकने वाले मरीजों का भी इलाज किया गया था. इसमें इस अस्पताल के कुछ डॉक्टरों ने फर्जी रेफरल स्लिप बनाकर अस्पताल को मुहैया करा दी थी. अधिकांश रेफरल स्लिप इचाक सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र से आई थी.
मिली जानकारी के अनुसार, इस तरह से 23 मरीजों का इलाज कर आयुष्मान भारत योजना से 4.60 लाख रुपये का क्लेम लिया गया था. इस संबंध में प्राथमिकी भी दर्ज की गई थी और आयुष्मान से संबद्धता भी समाप्त कर दी गई थी. इस संबंध में ईडी के अधिकारी कुछ भी कहने से बचते रहे. उन्होंने कहा कि राज्य मुख्यालय से विज्ञप्ति जारी की जाएगी.
वहीं पूरे मामले को लेकर डॉ. अर्जुन कुमार ने बताया कि इस मामले को लेकर लंबा केस चला. 6 साल तक कोर्ट में केस लड़ने के बाद मामला खत्म हुआ.अब ईडी की जांच शुरू हो गई है. हम पर बिना रेफर किए 13 मरीजों का इलाज करने और 165000 रुपये लेने का आरोप है. हमारे पास उनके इलाज के सारे सबूत थे. ईडी ने जो जानकारी मांगी, वह सारी जानकारी मैंने उपलब्ध करा दी.
क्या है पूरा मामला
हजारीबाग के डेमोटांड़ मासीपीड़ी स्थित सनशाइन अस्पताल में 23 मरीजों का फर्जी तरीके से ऑपरेशन कर आयुष्मान भारत योजना के 4.60 लाख रुपये का घोटाला किया गया. यह घोटाला 2018-19 में किया गया. जांच में इसकी पुष्टि होने के बाद अस्पताल संचालक डॉ. अर्जुन कुमार के खिलाफ मामला दर्ज किया गया. मामले की सूचक तत्कालीन सीएस डॉ. ललिता वर्मा ने तत्कालीन एसीएमओ डॉ. मेजर पीके सिन्हा और डीटीओ डॉ. गोपाल दास को जांच के लिए अधिकृत किया था.
डॉ. अर्जुन पर 23 फर्जी रेफरल स्लिप (सदर अस्पताल से नौ, इचाक सीएचसी से छह और अन्य से आठ) बनाकर मरीजों को भर्ती करने और उनका ऑपरेशन करने का आरोप है. जिसमें कहा गया था कि इस अस्पताल में ऐसी बीमारियों के मरीजों का इलाज किया जाता था, जिसका इलाज सिर्फ सरकारी स्वास्थ्य संस्थानों में ही हो सकता है. ऐसी बीमारियों का इलाज निजी संस्थानों में तभी करने का प्रावधान है, जब उसे सरकारी संस्थान से किसी उपयुक्त संस्थान में रेफर किया गया हो, इसलिए संचालक ने रेफरल स्लिप में फर्जीवाड़ा कर मरीजों का इलाज किया था.