सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि, राज्य और केंद्र शासित प्रदेश वन भूमि का कब्जा वन विभाग को सौंपे
नई दिल्ली: सुप्रीम ने गुरुवार को बहुमूल्य वन भूमि को कमर्शियल उद्देश्यों के लिए परिवर्तित करने में शामिल राजनेताओं, नौकरशाहों और बिल्डरों के बीच सांठगांठ की निंदा की. सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस बीआर गवई की अध्यक्षता वाली बेंच जिसमें न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह और न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन शामिल थे, ने पुणे में आरक्षित वन भूमि से संबंधित मामले में दिए गए फैसले में निर्देश पारित किया.
साथ ही इस बात पर जोर दिया कि सार्वजनिक विश्वास के सिद्धांत के तहत कार्य करने वाली कार्यपालिका प्राकृतिक संसाधनों का परित्याग नहीं कर सकती है और उन्हें निजी स्वामित्व या व्यावसायिक उपयोग के लिए परिवर्तित नहीं कर सकती है.
सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों (यूटी) को निर्देश दिया कि वे उन भूमियों का कब्जा वन विभाग को सौंप दें जो वन भूमि के रूप में दर्ज हैं और जो राजस्व विभाग के कब्जे में हैं. अदालत ने मुख्य सचिवों को यह सुनिश्चित करने के लिए विशेष टीमें गठित करने का भी निर्देश दिया कि ऐसे सभी हस्तांतरण आज से एक वर्ष की अवधि के भीतर हो जाएं.
अपने फैसले में सुप्रीम कोर्च ने कहा कि, प्राकृतिक संसाधनों, पर्यावरण और भारत के पारिस्थितिकी तंत्र के सौंदर्यपूर्ण उपयोग और प्राचीन गौरव को निजी, वाणिज्यिक या किसी अन्य उपयोग के लिए नष्ट करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है. जब तक कि अदालतें सद्भावनापूर्वक, सार्वजनिक भलाई और सार्वजनिक हित में उक्त संसाधनों पर अतिक्रमण करना आवश्यक न समझें.
बेंच की ओर से 88 पन्नों का फैसला लिखने वाले सीजेआई ने शुरू में कहा कि, मौजूदा मामला इस बात का एक बेहतरीन उदाहरण है कि कैसे राजनेताओं, नौकरशाहों और बिल्डरों के बीच सांठगांठ के कारण पिछड़े वर्ग के लोगों के पुनर्वास की आड़ में कीमती वन भूमि को व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए बदला जा सकता है, जिनके पूर्वजों से सार्वजनिक उद्देश्य के लिए कृषि भूमि अधिग्रहित की गई थी.
सीजेआई ने कहा, “ऐसा प्रतीत होता है कि तत्कालीन राजस्व मंत्री और तत्कालीन संभागीय आयुक्त ने सार्वजनिक विश्वास के सिद्धांत को पूरी तरह से दरकिनार कर दिया था. रिकॉर्ड पर मौजूद तथ्य स्पष्ट हैं.” उन्होंने कहा कि, राजस्व विभाग के पास मौजूद आरक्षित वन भूमि को आज से तीन महीने के भीतर वन विभाग को सौंप दिया जाना चाहिए.
इस मामले की पृष्ठभूमि में, सीजेआई ने कहा, “इसलिए, हम पाते हैं कि यह आवश्यक है कि सभी राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों को निर्देश दिया जाए कि वे उन भूमियों का कब्जा वन विभाग को सौंप दें, जिन्हें ‘वन भूमि’ के रूप में दर्ज किया गया है और जो राजस्व विभाग के कब्जे में हैं.”
बेंच ने सभी राज्यों के मुख्य सचिवों और सभी केंद्र शासित प्रदेशों के प्रशासकों को विशेष जांच दल (एसआईटी) गठित करने का निर्देश दिया, ताकि यह जांच की जा सके कि राजस्व विभाग के कब्जे में मौजूद आरक्षित वन भूमि को वानिकी उद्देश्य के अलावा किसी अन्य उद्देश्य के लिए किसी निजी व्यक्ति या फिर संस्था को आवंटित किया गया है या नहीं.
बेंच ने कहा कि राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को ऐसी भूमि पर कब्जा करने वाले व्यक्तियों, संस्थाओं से भूमि का कब्जा वापस लेने और उसे वन विभाग को सौंपने के लिए कदम उठाने का निर्देश दिया जाता है.
सीजेआई ने कहा, “यदि यह पाया जाता है कि भूमि का कब्ज़ा वापस लेना व्यापक जनहित में नहीं होगा, तो राज्य सरकारों, केंद्र शासित प्रदेशों को उक्त भूमि की कीमत उन व्यक्तियों, संस्थाओं से वसूल करनी चाहिए, जिन्हें यह भूमि आवंटित की गई थी और उक्त राशि का उपयोग वनों के विकास के उद्देश्य से करना चाहिए.”
सीजेआई ने कहा, “हम सभी राज्यों के मुख्य सचिवों और सभी केंद्र शासित प्रदेशों के प्रशासकों को विशेष टीमों का गठन करने का निर्देश देते हैं, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि इस तरह के सभी हस्तांतरण आज से एक वर्ष की अवधि के भीतर हो जाएं.
सीजेआई ने कहा, यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि इसके बाद ऐसी भूमि का उपयोग केवल वनरोपण के उद्देश्य से किया जाना चाहिए.”
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस अदालत ने स्पष्ट शब्दों में माना है कि सार्वजनिक विश्वास के सिद्धांत के तहत कार्य करने वाली कार्यपालिका प्राकृतिक संसाधनों का त्याग नहीं कर सकती है और उन्हें निजी स्वामित्व में या वाणिज्यिक उपयोग के लिए परिवर्तित नहीं कर सकती है.
सुप्रीम कोर्च ने कहा कि केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति (सीईसी) की रिपोर्ट से यह भी पता चलेगा कि यह दिखाने के लिए सामग्री मौजूद है कि कई वन भूमि गैर-वानिकी उद्देश्यों के लिए निजी व्यक्तियों, संस्थाओं को आवंटित की गई है.
बेंच ने कहा, “12 दिसंबर 1996 के बाद ऐसा कोई भी आवंटन, यानी जिस तारीख को इस अदालत ने वर्तमान कार्यवाही में निर्देश दिए थे, कानून में टिकने लायक नहीं होगा.” पीठ ने कहा कि इसलिए यह जरूरी होगा कि जहां भी ऐसी भूमि का कब्जा वापस लेना संभव हो, राज्य या केंद्र शासित प्रदेश ऐसा करें और वानिकी उद्देश्यों के लिए वन विभाग को कब्जा सौंप दें.