Wednesday, February 26, 2025

 सरकारी भवनों में संताली भाषा में नाम लिखने की मांग

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आदिवासी सुरक्षा परिषद ने सरकारी भवनों में संताली भाषा की ओलचिकी लिपि में नाम लिखने की मांग की है. इस संबंध में परिषद ने पूर्वी सिंहभूम के उपायुक्त को एक मांग पत्र सौंपा है. पत्र में झारखंड सरकार के कार्मिक, प्रशासनिक सुधार एवं राजभाषा विभाग के निर्देश का हवाला दिया गया है

आदिवासी सुरक्षा परिषद ने सरकारी भवनों में संताली भाषा की ओलचिकी लिपि में नाम लिखने की मांग की है. इस संबंध में परिषद ने पूर्वी सिंहभूम के उपायुक्त को एक मांग पत्र सौंपा है. पत्र में झारखंड सरकार के कार्मिक, प्रशासनिक सुधार एवं राजभाषा विभाग के निर्देश का हवाला दिया गया है, जिसमें कहा गया है कि संताल बहुल क्षेत्रों में सरकारी भवनों के नाम संताली भाषा में लिखे जाने चाहिए. परिषद ने इस निर्देश को शीघ्र लागू करने की अपील की, जिससे जनजातीय समुदाय को उनकी भाषा और संस्कृति का सम्मान मिल सके.

संताली भाषा को बढ़ावा देने की आवश्यकता

संताली भाषा झारखंड, पश्चिम बंगाल, ओडिशा और असम सहित कई राज्यों में बोली जाती है. यह संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल एक मान्यता प्राप्त भाषा है, लेकिन इसके प्रचार-प्रसार को लेकर प्रशासनिक स्तर पर गंभीर प्रयास नहीं किए गए हैं. सरकारी भवनों और कार्यालयों के नाम संताली भाषा की ओलचिकी लिपि में लिखने से न केवल भाषा का प्रचार होगा, बल्कि स्थानीय जनजातीय समुदाय को अपनी पहचान पर गर्व महसूस होगा. इस पहल से संताल समाज को शिक्षा और प्रशासनिक कार्यों में भी सहयोग मिलेगा, जिससे उनकी सहभागिता बढ़ेगी.

सरकारी आदेश का पालन न होना

परिषद के केंद्रीय अध्यक्ष रमेश हांसदा ने प्रशासन की निष्क्रियता पर नाराजगी जताई. उन्होंने बताया कि झारखंड सरकार के निर्देशानुसार संताल बहुल क्षेत्रों में संताली भाषा में सरकारी कार्यालयों और भवनों के नाम लिखे जाने चाहिए, लेकिन अब तक केवल जिला संपर्क कार्यालय में ही यह कार्य हुआ है. अन्य जिला व अनुमंडल कार्यालयों में इस आदेश का पालन नहीं किया गया है, जो संताल समुदाय के अधिकारों का हनन है. परिषद ने इस लापरवाही को दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए प्रशासन से तत्काल इस आदेश को लागू करने की मांग की.

जनजातीय संस्कृति और पहचान को सम्मान

संताली भाषा और ओलचिकी लिपि जनजातीय समुदाय की सांस्कृतिक धरोहर है. यदि सरकारी भवनों में इस लिपि में नाम अंकित किए जाते हैं, तो इससे जनजातीय समाज को उनकी भाषा के संरक्षण और संवर्धन में मदद मिलेगी. इससे सरकार और प्रशासन के प्रति उनके विश्वास में भी वृद्धि होगी. परिषद ने उपायुक्त से अनुरोध किया कि जिला एवं अनुमंडल स्तर के सभी कार्यालयों में इस नियम को सख्ती से लागू किया जाए. साथ ही, सरकार से यह अपील की गई कि जनजातीय भाषाओं और उनकी पहचान को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के लिए ठोस कदम उठाए जाएं.

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