Sunday, January 26, 2025

षटतिला एकादशी 2025: जगत के पालनहार की पूजा का दिन, जानें महत्व, व्रत-कथा, पूजा विधि और पारण समय 

Share

सनातन धर्म में एकादशी और पूर्णिमा दोनों का विशेष महत्व है. यहां बात करने जा रहे एकादशी तो बता दें, माघ महीने की एकादशी अपने आप में खास है. इस एकादशी को षटतिला एकादशी कहते हैं. इस दिन जगत के पालनहार भगवान विष्णु की पूजा का विधान है. आइये जानते हैं.

लखनऊ के ज्योतिषाचार्य डॉ. उमाशंकर मिश्र ने बताया कि सालभर में कुल 24 एकादशी आती हैं, जिनमें माघ महीने की षटतिला एकादशी अत्यंत शुभ है. षटतिला एकादशी का व्रत माघ माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी के दिन किया जाता है. कष्टों, दरिद्रता तथा दुर्भाग्य से मुक्ति पाने हेतु षटतिला एकादशी का व्रत किया जाता है, इसके अतिरिक्त षटतिला एकादशी को पूजने से व्यक्ति को स्वर्ग लोक की प्राप्ति होती है. उन्होंने कहा कि इस दिन व्रत रखकर पूजा की जाए तो जातकों की सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. इस बार षटतिला एकादशी शनिवार 25 जनवरी 2025 को मनाई जा रही है.

जानिए षटतिला एकादशी 2025 का शुभ मुहूर्त
ज्योतिषाचार्य ने बताया कि षटतिला एकादशी की शुरुआत शुक्रवार 24 जनवरी 2025 को हो रही है, लेकिन हिंदू धर्म में उदयातिथि को माना जाता है, इसलिए व्रत आज शनिवार को रखा जाएगा. वहीं, व्रत का पारण अगले दिन रविवार 26 जनवरी को किया जाएगा.

षटतिला एकादशी की पूजा-विधि
डॉ. उमाशंकर मिश्र के मुताबिक इस दिन सबसे पहले पूजा का संकल्प लेना चाहिए. उसके बाद स्नान करने के पश्चात जल में तिल मिलाकर सूर्य को अर्घ्य दें. फिर भगवान विष्णु की विधि-विधान से पूजा करें. इसमें पीले फूल, अक्षत धूप अर्पित करें. संभव हो तो विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें.

षटतिला एकादशी का व्रत करने से कष्टों, दरिद्रता तथा दुर्भाग्य से मुक्ति मिलती है, तथा मृत्युपरांत बैकुण्ठ मे वास होता है, इस दिन भगवान विष्णु जी की विशेष पूजा की जाती है, भक्ति भाव से पूजन आदि करके भोग लगाया जाता है.

षटतिला का संधिविछेदन करे तो ‘षट अर्थात छ:’ तथा ‘तिला अर्थात तिल’ तात्पर्य यह है कि इस दिन छहः प्रकार से तिलों का प्रयोग परम फलदायी है. अतः इस दिन तिल का विशेष महत्त्व है. पद्म पुराण के अनुसार इस दिन उपवास करके तिलों से ही स्नान, दान, तर्पण और पूजा की जाती है. इस दिन तिल का इस्तेमाल तिल के तेल का लेपन, स्नान, प्रसाद, भोजन, दान, तर्पण आदि सभी चीजों में किया जाता है.

षटतिला एकादशी के दिन तिल से किये जाने वाले कर्म:-

  • तिल के तेल से मालिश
  • तिल मिश्रित जल से स्नान
  • तिलो से हवन
  • तिलो वाले पानी का सेवन
  • तिलो का दान
  • तिल से बनी चीजों का सेवन तथा दान (रेवड़ी, गज्जक इत्यादि)
  • तिल के साथ तर्पण

षटतिला एकादशी व्रत विधि:-
पुरातन परंपरा के अनुसार माघ माह के कृष्ण पक्ष की दशमी को भगवान विष्णु का स्मरण करते हुए गोबर में तिल मिलाकर 108 उपले बनाने चाहिए. इसके बाद दशमी के दिन मात्र एक समय भोजन करना चाहिए और भगवान का स्मरण करना चाहिए.
षटतिला एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा का दिन है. पद्म पुराण के अनुसार चन्दन, अरगजा, कपूर, नैवेद्य आदि से भगवान विष्णु का पूजन करना चाहिए. उसके बाद श्रीकृष्ण नाम का उच्चारण करते हुए कुम्हड़ा, नारियल अथवा बिजौरे के फल से विधि विधान से पूजन कर अर्घ्य देना चाहिए.
एकादशी की रात को भगवान का भजन-कीर्तन करना चाहिए. एकादशी की रात्रि को 108 बार ‘ऊं नमो भगवते वासुदेवाय’ मंत्र द्वारा तिल निर्मित उपलों से हवन में आहुति देनी चाहिए.
इसके बाद ब्राह्मण की पूजा कर उसे घड़ा, छाता, जूता, तिल से भरा बर्तन व वस्त्र दान देना चाहिए.

एकादशी व्रत का पारण

  1. एकादशी के व्रत को सम्पूर्ण करने को पारण कहते हैं. एकादशी व्रत के अगले दिन सूर्योदय के बाद पारण किया जाता है.
  2. एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि समाप्त होने से पहले करना अति आवश्यक है. यदि द्वादशी तिथि सूर्योदय से पहले समाप्त हो गयी हो तो एकादशी व्रत का पारण सूर्योदय के बाद ही होता है. द्वादशी तिथि के भीतर पारण न करना पाप करने के समान होता है.
  3. एकादशी व्रत का पारण हरि वासर के दौरान भी नहीं करना चाहिए. जो श्रद्धालु व्रत कर रहे हैं उन्हें व्रत खोलने से पहले हरि वासर समाप्त होने की प्रतिक्षा करनी चाहिए। (हरि वासर द्वादशी तिथि की पहली एक चौथाई अवधि है.)
  4. व्रत खोलने के लिए सबसे उपयुक्त समय प्रातःकाल होता है. व्रत करने वाले श्रद्धालुओं को मध्यान्ह के दौरान व्रत तोड़ने से बचना चाहिए. किसी कारण से अगर कोई प्रातःकाल पारण करने में सक्षम नहीं है तो उसे मध्यान्ह के बाद पारण करना चाहिए.
  5. कभी कभी एकादशी व्रत लगातार दो दिनों के लिए हो जाता है. जब एकादशी व्रत दो दिन होता है तब स्मार्तो को पहले दिन एकादशी व्रत करना चाहिए. दूसरे दिन वाली एकादशी को दूजी एकादशी कहते हैं. सन्यासियों, विधवाओं और मोक्ष प्राप्ति के इच्छुक श्रद्धालुओं को दूजी एकादशी के दिन व्रत करना चाहिए. जब-जब एकादशी व्रत दो दिन होता है तब-तब दूजी एकादशी और वैष्णव एकादशी एक ही दिन होती हैं.

षटतिला एकादशी मे निषिद्ध भोज्य पदार्थ तथा कर्म

  • षटतिला एकादशी के व्रती तथा सामान्यजनों को भी कुछ ऐसे खाद्य पदार्थ हैं जो सभी को एकदशी के दिन नहीं खाना चाहिए जैसे:- अनाज, चावल और दालें.
  • इसके अतिरिक्त किसी भी प्रकार का राजसिक तथा तामसिक कार्य व्रत के दौरान नही करना चाहिए.
  • मनुष्य को अपनी इंद्रियों को काबू में रखते हुए काम, क्रोध,लोभ, मोह, अहंकार, व चुगली-बुराई तथा अपशब्दो आदि का परित्याग करना चाहिए, तथा व्रती को केवल भगवत भक्ति, दान और पुण्य की ओर ही मन लगाना चाहिए.

षटतिला एकादशी मे दानादि शुभ कर्मो का फल

  1. इस दिन काली गाय का दान सुयोग्य ब्राहमण को करना अत्यंत शुभ फलदायी है.
  2. ‘षटतिला एकादशी’ के व्रत से जहां शारीरिक शुद्धि और आरोग्यता प्राप्त होती है, वहीं अन्न, तिल आदि दान करने से धन-धान्य में वृद्धि होती है.
  3. षटतिला एकादशी का व्रत करने से जीवन के तमाम कष्टों, दरिद्रता तथा दुर्भाग्य से मुक्ति मिलती है, तथा मृत्युपरांत बैकुण्ठ मे वास होता है.
  4. इससे यह भी ज्ञात होता है कि प्राणी जो-जो और जैसा दान करता है, शरीर त्यागने के बाद उसे वैसा ही प्राप्त होता है. अतः धार्मिक कृत्यों के साथ-साथ दान आदि अवश्य करना चाहिए. शास्त्रों में वर्णन है कि बिना दान आदि के कोई भी धार्मिक कार्य सम्पन्न नहीं माना जाता.

षटतिला एकादशी व्रत की पौराणिक कथा
प्राचीन काल में एक बार देवर्षि नारद, भगवान विष्णु के दरबार में जा पंहुचे और बोले भगवन माघ मास की कृष्ण एकादशी का क्या महत्व है, इसकी कहानी क्या हैं, मार्गदर्शन करें. भगवान श्री हरि, नारद के अनुरोध पर कहने लगे हे देवर्षि इस एकादशी का नाम षटतिला एकादशी है. पृथ्वीलोक पर एक निर्धन ब्राह्मणी मुझे बहुत मानती थी. दान पुण्य करने के लिये उसके पास कुछ नहीं था, लेकिन मेरी पूजा, व्रत आदि वह श्रद्धापूर्वक करती थी. एक बार मैं स्वंय उसके भिक्षा के लिये जा पंहुचा ताकि उसका उद्धार हो सके अब उसके पास कुछ देने के लिये कुछ था नहीं तो क्या करती है कि मुझे मिट्टी का एक पिंड दे दिया.

कुछ समय पश्चात जब उसकी मृत्यु हुई तो अपने को एक मिट्टी के खाली झोपड़े में पाती है जहां केवल एक आम का पेड़ ही उसके साथ था. वह मुझसे पूछती है कि हे भगवन मैनें तो हमेशा आपकी पूजा की है फिर मेरे साथ यहां स्वर्ग में भी ऐसा क्यों हो रहा है.तब मैंने उसे भिक्षा वाला वाकया सुना दिया, ब्राह्मणी पश्चाताप करते हुए विलाप करने लगी. अब मैने उससे कहा कि जब देव कन्याएं आपके पास आयें तो दरवाजा तब तक न खोलना जब तक कि वह आपको षटतिला एकादशी की व्रत विधि न बता दें. उसने वैसा ही किया. फिर व्रत का पारण करते ही उसकी कुटिया अन्न धन से भरपूर हो गई और वह बैकुंठ में अपना जीवन हंसी खुशी बिताने लगी. इसलिये हे नारद जो कोई भी इस दिन तिलों से स्नान दान करता है. उसके भंडार अन्न-धन से भर जाते हैं. इस दिन जितने प्रकार से तिलों का व्यवहार व्रती करते हैं उतने हजार साल तक बैकुंठ में उनका स्थान सुनिश्चित हो जाता है.

Read more

Local News