Monday, March 31, 2025

विदेशों में बढ़ी ढेंकनाल जिले के हरे पपीते की मांग, आदिवासी महिलाएं बनीं आत्मनिर्भर

Share

माझीसाही गांव की आदिवासी महिलाएं ग्रीन पपीते की खेती कर आत्मनिर्भर बन रही हैं. इंग्लैंड और आयरलैंड में पपीते की डिमांड बढ़ गई है.

ढेंकनाल: ओडिशा के ढेंकनाल जिले के हरे पपीते की मांग अब अंतरराष्ट्रीय बाजार में काफी बढ़ गई है. इस ग्रीन पपीते का निर्यात अब लंदन और आयरलैंड में किया जा रहा है. फरवरी में आयरलैंड को एक टन पपीता निर्यात किया गया था, जबकि 1 मार्च को लंदन को एक टन से अधिक पपीता निर्यात किया गया था. ओडिशा के ढेंकनाल की किस्मत में आए इस बड़े बदलाव के पीछे आदिवासी गांवों की महिलाएं हैं.

ढेंकनाल जिले के सदर ब्लॉक के सप्तसज्य पंचायत के अंतर्गत माझीसाही, संसेल, भरनाली और खुरापीरी गांवों की महिलाएं बिना खाद का इस्तेमाल किए जैविक तरीकों से पपीते की खेती कर रही हैं. यहां की महिलाएं इस पपीते को बेचकर अपनी आजीविका चला रही हैं.

ढेंकनाल जिले के हरे पपीते की मांग,आदिवासी महिलाएं बनीं आत्मनिर्भर

मदन मोहन एग्रो प्रोड्यूसर और सप्तसज्य एग्रो जैसी कंपनियों ने इस प्रोसेसड देसी फल को अंतरराष्ट्रीय बाजारों में निर्यात करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. एपीडा (कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण) और भारत सरकार के सहयोग से एक टन हरा पपीता आयरलैंड भेजा गया और एक टन लंदन को निर्यात किया गया.

विदेशों में बढ़ी ढेंकनाल जिले के हरे पपीते की मांग

माझीसाही गांव की आदिवासी महिलाएं अपनी जमीन पर पपीते की खेती कर रही हैं. यह पेड़ बिना किसी खाद के साल में दो से तीन बार फल देता है. प्रत्येक पपीते का वजन कम से कम 3 से 4 किलोग्राम होता है. एक पेड़ से एक बार में कम से कम 30 से 50 किलोग्राम पपीता निकलता है. इन ग्रीन पपीतों को 10 से 17 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से बेच जाता है. एक पेड़ से पपीता बेचकर तकरीबन 3 हजार रुपये की कमाई हो जाती है. कुल मिलाकर देखा जाए तो माझीसाही गांव का प्रत्येक परिवार पपीता बेचकर 10 से 15 हजार रुपये कमाता है.

विदेशों में बढ़ी ढेंकनाल जिले के हरे पपीते की मांग

इन पैसों से आदिवासी महिलाएं अपने घर के खर्च और दूसरी जरूरतों को पूरा करती हैं. इस सफल पहल ने लक्ष्मी हेम्ब्रम और बिनोदिनी नायक जैसी आदिवासी महिलाओं के जीवन में बड़ा बदलाव लाया है. वे अब इस छोटी सी खेती से आत्मनिर्भर बन गई हैं. महिला किसानों की लगन ने गांव को “मेक इन ओडिशा” पहल के तहत सशक्तिकरण के प्रतीक में बदल दिया है.

विदेशों में बढ़ी ढेंकनाल जिले के हरे पपीते की मांग

ढेंकनाल जिला बागवानी उपनिदेशक गीताश्री पाढ़ी ने कहा कि, यहां की महिलाएं उच्च गुणवत्ता वाले पपीते का उत्पादन कर रही हैं, जिसे विदेशों में निर्यात किया जा रहा है. इस क्षेत्र के मदन मोहन और सप्तसज्य एग्रो प्रोड्यूसर कंपनी नामक दो एफपीओ इन महिला किसानों से पपीता एकत्र कर रहे हैं. बाद में, इसे भारत सरकार के एपीडा (कृषि एवं खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण) और पैलेडियम की मदद से विदेशों में निर्यात किया जा रहा है.

विदेशों में बढ़ी ढेंकनाल जिले के हरे पपीते की मांग

उन्होंने कहा कि, पहली बार आयरलैंड को 1 टन पपीता भेजा गया है. इसी तरह, दूसरे चरण में, 1 टन और पपीता को इंग्लैंड भेजा जाएगा. वहीं, महिला किसान बिनोदिनी नायक ने कहा कि, पपीता की खेती से उन्हें काफी फायदा हुआ है. यहां पपीते से कुल 70 से 80 हजार रुपये की कमाई होती है. इसके हिसाब से प्रत्येक व्यक्ति ने 17 से 18 हजार पपीता बेचकर कमाई कर सकते हैं.

विदेशों में बढ़ी ढेंकनाल जिले के हरे पपीते की मांग

उन्होंने यह भी कहा कि, अगर यहां के किसानों को सरकार से प्रोत्साहन मिले और सिंचाई की समस्या हल हो जाए, तो पपीते का उत्पादन में बढोतरी हो सकती है. एक अन्य महिला किसान लक्ष्मी हेम्ब्रम ने कहा कि, उनकी मेहनत के कारण यहां के देसी पपीते को विदेश में बैठ लोग स्वाद चख रहे हैं जो उनके लिए वाकई खुशी की बात है. वहीं, ओडिशा के मुख्यमंत्री मोहन चरण माझी ने भी उनकी मेहनत और लगन की प्रशंसा की है. उन्होंने कहा कि, कुछ प्रयास करके यहां के किसान अच्छी कमाई कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि, सप्तसज्य एफपीओ ने यहां के किसानों को पपीते की खेती के लिए प्रोत्साहित किया है.

Read more

Local News