Friday, May 30, 2025

‘राज्य में कथित फर्जी मुठभेड़ों की जांच करें’, सुप्रीम कोर्ट ने असम मानवाधिकार आयोग से कहा

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सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता आरिफ मोहम्मद यासीन जवादर की याचिका का निपटारा करते हुए ये निर्देश पारित किए.

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को असम मानवाधिकार आयोग (AHRC) से राज्य में फर्जी पुलिस मुठभेड़ों के आरोपों की स्वतंत्र जांच करने को कहा. न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति एन के सिंह की पीठ ने याचिकाकर्ता द्वारा अदालत के समक्ष लाए गए आंकड़ों की बारीकी से जांच करने के बाद कहा कि प्रथम दृष्टया ऐसा लगता है कि कुछ मामलों को छोड़कर यह अनुमान लगाना मुश्किल है कि प्रक्रियागत विफलता हुई है या PUCL के दिशा-निर्देशों का घोर उल्लंघन किया गया है.

सुप्रीम कोर्ट ने कमजोर समूहों की सुरक्षा, जवाबदेही सुनिश्चित करने और मानवाधिकारों को लागू करने के लिए संस्थागत तंत्र को मजबूत करने में मानवाधिकार आयोगों के महत्व पर जोर दिया. भारत जैसे विशाल और विविधतापूर्ण देश में जटिल सामाजिक-राजनीतिक गतिशीलता और प्रणालीगत असमानताओं की पृष्ठभूमि में पीठ ने कहा कि ये आयोग जवाबदेही, पारदर्शिता और मानवाधिकार उल्लंघन के खिलाफ उपाय का एक आवश्यक रूप प्रदान करते हैं.

पीठ ने कहा कि राज्य द्वारा प्रस्तुत किए गए रिकॉर्ड से संकेत मिलता है कि कुछ मामलों में आगे के मूल्यांकन की आवश्यकता हो सकती है, ताकि यह पता लगाया जा सके कि PUCL में निर्धारित दिशा-निर्देशों का भावना से अनुपालन किया गया है या नहीं. पीठ ने कहा, “हम इस मामले को स्वतंत्र और शीघ्रता से आवश्यक जांच के लिए एएचआरसी को सौंपते हैं और यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि पीड़ितों और परिवार के सदस्यों को उचित अवसर दिया जाए.”

पीठ ने एक सेवानिवृत्त उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाले आयोग को गोपनीयता सुनिश्चित करते हुए पीड़ितों के दावों को आमंत्रित करने के लिए एक सार्वजनिक नोटिस जारी करने का निर्देश दिया.

पीठ ने याचिकाकर्ता आरिफ मोहम्मद यासीन जवादर की याचिका का निपटारा करते हुए ये निर्देश पारित किए, जिसमें असम पुलिस द्वारा फर्जी मुठभेड़ों का आरोप लगाया गया था. याचिका में मई 2021 और अगस्त 2022 के बीच असम में 171 से अधिक पुलिस मुठभेड़ों की स्वतंत्र जांच की मांग की गई थी.

पीठ ने कहा कि इनमें से कुछ घटनाओं में फर्जी मुठभेड़ों के आरोप गंभीर हैं और अगर साबित हो जाते हैं तो यह संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार का गंभीर उल्लंघन होगा. पीठ ने कहा, “यह भी संभव है कि निष्पक्ष और स्वतंत्र जांच के बाद इनमें से कुछ मामले आवश्यक और कानूनी रूप से न्यायोचित साबित हो सकते हैं…।”

बैंच ने यह स्पष्ट किया कि हालांकि, कुछ स्पेसिफिक उदाहरणों में आगे के मूल्यांकन की आवश्यकता हो सकती है, लेकिन केवल मामलों के संकलन के आधार पर एक व्यापक निर्देश उचित नहीं होगा. पीठ ने इस मुद्दे का निपटारा करने वाले एएचआरसी की पूर्ण पीठ द्वारा 12 जनवरी, 2022 को पारित आदेश को रद्द करने का फैसला किया.

साथ ही कोर्ट ने निर्देश दिया कि मामले को कानून के अनुसार स्वतंत्र रूप से और शीघ्रता से आरोपों की आवश्यक जांच के लिए आयोग के बोर्ड में बहाल किया जाए. पीठ ने कहा कि यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि कथित घटनाओं के पीड़ितों या उनके परिवार के सदस्यों को कार्यवाही में भाग लेने का निष्पक्ष और सार्थक अवसर दिया जाना चाहिए.

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