रांची में निजी अस्पतालों द्वारा मरीजों के शव को रोकने की शिकायतों के बाद स्वास्थ्य मंत्री ने सख्त निर्देश दिए हैं। अब अस्पताल शव को नहीं रोक सकते अन्यथा क्लीनिकल प्रोटेक्शन एक्ट के तहत पांच लाख रुपये तक का जुर्माना लगाया जाएगा। स्वास्थ्य मंत्री ने कहा कि यह फैसला आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों को राहत देगा जो अपनों का अंतिम संस्कार करने में असमर्थ हैं।
रांची। मरीज की मौत हो जाने की स्थिति में निजी अस्पतालों द्वारा शव नहीं लौटाने संबंधी शिकायतों के बाद विभागीय मंत्री डॉ. इरफान अंसारी ने इस मामले में सख्त आदेश दिए हैं। इसके बाद जिला मुख्यालय की ओर से सभी निजी अस्पतालों को निर्देश दिया गया है कि वे इलाज के दौरान मरीज की मौत होने पर शव नहीं रोकेंगे।
क्लीनिकल प्रोटेक्शन एक्ट के तहत एक्शन
अगर शव रोका जाता है तो क्लीनिकल प्रोटेक्शन एक्ट के तहत उन पर कड़ी कार्रवाई की जाएगी और पांच लाख रुपये तक जुर्माना लगाया जा सकता है।
सिविल सर्जन डा. प्रभात कुमार ने बताया कि स्वास्थ्य मंत्री से निर्देश मिलने के बाद उन्होंने इसे गंभीरता से लिया है और जो भी अस्पताल निर्देशों का पालन नहीं करता है तो वो एक्शन के लिए तैयार रहें।
पैसे बकाया होने पर किया जाता है शव देने से इनकार
उन्होंने बताया कि लगातार दर्जनों इस तरह के मामले सामने आए हैं, जिसमें इलाज के दौरान मौत होने पर बकाए के कारण अस्पताल प्रबंधन ने शव देने से इनकार कर दिया।
इसके बाद खुद स्वास्थ्य मंत्री ने कार्रवाई करते हुए शव को छुड़वाया और पूरा बकाया माफ किया गया। यह मरीजों के अधिकार के अंतर्गत आता है, जिससे इनकार नहीं किया जा सकता।
स्वास्थ्य मंत्री ने जारी किए निर्देश
इससे पहले स्वास्थ्य मंत्री डॉ. इरफान अंसारी ने स्पष्ट और सख्त निर्देश जारी कर कहा था कि किसी भी परिस्थिति में मृतक का शव निजी अस्पतालों में रोककर नहीं रखा जाएगा।
हर हाल में शव परिजनों को सौंपना अनिवार्य होगा। इस फैसले ने राज्य के हजारों परिवारों को राहत पहुंचाई है। असमय अपनों को खोने वाले परिजनों के लिए यह निर्णय एक बड़ी संबल और सहारा बनकर सामने आया।
राज्यभर से लगातार लोगों ने मंत्री के इस संवेदनशील और मानवीय निर्णय का आभार व्यक्त किया है। मंत्री ने बताया कि वे पहले एक डॉक्टर हैं। एक डॉक्टर होने के नाते वे मरीजों और उनके स्वजनों के दुख, दर्द और पीड़ा को भलीभांति समझ सकते हैं।
किस तरह अस्पताल शव को पैसे के अभाव में रोक लेते थे और परिवार लाचार, बेबस होकर अस्पतालों के दरवाजे पर बिलखते रहते थे। तभी उन्होंने मन में ठान लिया था कि अगर मुझे भविष्य में कभी ऐसी जवाबदेही मिलेगी तो सबसे पहले उन परिवारों को राहत दूंगा जो आर्थिक तंगी के कारण अपनों का अंतिम संस्कार तक नहीं कर पाते।