सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास हाई कोर्ट के एक आदेश के खिलाफ दायर एक की याचिका को खारिज कर दिया
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि कोर्ट के लिए इससे अधिक महत्वपूर्ण और कुछ नहीं है कि वे अपनी कार्यवाही को गलत तरीके से प्रस्तुत होने से बचाएं और अदालत के फर्जी आदेश बनाना न्यायालय की अवमानना के सबसे भयानक कृत्यों में से एक है.
न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और प्रशांत कुमार मिश्रा की पीठ ने कहा, “अदालतों के फर्जी आदेश बनाना कोर्ट की अवमानना के सबसे भयानक कृत्यों में से एक है. यह न केवल न्याय प्रशासन को विफल करता है, बल्कि रिकॉर्ड की जालसाजी करके इसके पीछे अंतर्निहित इरादा भी होता है.”
मद्रास हाई कोर्ट के एक आदेश के खिलाफ टिप्पणियां
सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास हाई कोर्ट के एक आदेश के खिलाफ षणमुगम उर्फ लक्ष्मीनारायणन, एम मुरुगनंदम और एस अमल राज की याचिका को खारिज करते हुए ये टिप्पणियां कीं. हाई कोर्ट ने एक संपत्ति के संबंध में फर्जी और नकली आदेश बनाने के लिए उन्हें अदालत की अवमानना का दोषी ठहराया था.
पीठ ने 2 मई को अपने फैसले में कहा, “हमारा मानना है कि वर्तमान मामला ऐसा है, जिसमें सभी उचित संदेहों से परे यह स्थापित हो चुका है कि वर्तमान अपीलकर्ताओं/अवमाननाकर्ताओं ने या तो फर्जी उच्च न्यायालय के अंतरिम आदेशों का इस्तेमाल किया है या उन्हें बनाया है. यह केवल अपराध होने की संभावना का मामला नहीं है, बल्कि यह अपराध होने का सिद्ध मामला है.”
‘कार्यवाही को गलत तरीके से प्रस्तुत होने से बचाएं’
पीठ की ओर से फैसला लिखने वाले जस्टिस मिश्रा ने कहा कि अवमानना के लिए दंडित करने की अपनी शक्ति का इस्तेमाल करने वाले न्यायालय का एकमात्र उद्देश्य हमेशा न्याय प्रशासन की शुद्धता बनाए रखना है. जस्टिस मिश्रा ने कहा, “न्यायालय के लिए इससे अधिक कोई दायित्व नहीं है कि वे अपनी कार्यवाही को गलत तरीके से प्रस्तुत होने से बचाएं, और न ही इससे अधिक हानिकारक कुछ हो सकता है जब न्यायालय के आदेश को जाली बनाया जाए और अनुचित लाभ प्राप्त करने के लिए प्रस्तुत किया जाए.”
पीठ ने कहा कि कार्यवाही में शामिल किसी पक्ष द्वारा जानबूझकर और स्वेच्छा से अनुकूल आदेश प्राप्त करने के लिए दिया गया भ्रामक या गलत बयान निस्संदेह न्यायिक कार्यवाही के उचित क्रम में हस्तक्षेप के समान होगा. पीठ ने कहा, “जब कोई व्यक्ति न्यायालय के किसी ऐसे आदेश का उपयोग करता हुआ पाया जाता है, जिसके बारे में वह जानता है कि वह गलत है, तो उसने ऐसे लोगों को लाभ पहुंचाया है जो इसके हकदार नहीं हैं, तो संबंधित व्यक्ति द्वारा मनगढ़ंत आदेश का उपयोग ही उसे अवमानना का दोषी ठहराने के लिए पर्याप्त होगा, भले ही वह स्वयं मनगढ़ंत आदेश का लेखक हो या नहीं.”
पीठ ने अपीलकर्ताओं की इस दलील को स्वीकार करने से इनकार कर दिया कि उन्हें अपना बचाव करने का उचित अवसर नहीं दिया गया और अवमानना की कार्यवाही समय-सीमा के कारण रोक दी गई.