लातेहारः होली के मौके पर प्रकृति भी रंगों से सराबोर हो गई है. पलाश के लाल लाल फूलों से पूरा वातावरण रंगीन हो गया है. ऐसा प्रतीत हो रहा है जैसे प्रकृति भी होली के रंगों में रंग कर लोगों को होली की बधाई दे रही है.
दरअसल लातेहार जिले में बड़े पैमाने पर पलाश के पेड़ पाए जाते हैं, आप तस्वीरों में देख सकते हैं. पलाश के पेड़ों में मार्च के प्रथम सप्ताह में फूल लगते हैं. पलाश के फूल जब एक साथ पेड़ों पर आते हैं तो पूरा वातावरण रंगीन हो जाता है. लातेहार के जंगली इलाकों के अलावे गांव के आसपास के इलाकों में भी पलाश की लालिमा से प्रकृति की तस्वीर निराली हो जाती है. वर्तमान में चारों ओर पलाश के पेड़ों में फूल आ गए हैं, जिससे जंगल से लेकर गांव तक पलाश की लालिमा से गुलजार है.
पलाश के फूलों से बनता है हर्बल रंग
इधर स्थानीय बुजुर्ग व्यक्ति रामप्रसाद सिंह ने बताया कि पलाश के फूलों से कई लोग रंग भी बनाते हैं. उन्होंने बताया कि पहले तो लोग पलाश के फूलों के रंग का ही उपयोग होली में करते थे और एक दूसरे पर पलाश के फूलों का रंग ही डालते थे. उन्होंने बताया कि पलाश के फूलों का रंग शरीर के त्वचा को बिल्कुल भी नुकसान नहीं पहुंचाचा था और नहाने के बाद रंग चला जाता था.
इसी कारण होली के एक सप्ताह पहले ही लोग पलाश के फूल तोड़कर घर में लाते थे और उसे पानी में भीगने के लिए छोड़ देते थे. बाद में इन फूलों से रंग बनाया जाता था. परंतु अब पलाश के फूलों से रंग बनाने की प्रथा धीरे-धीरे समाप्त होती जा रही है और लोग केमिकल रंगों का उपयोग करने लगे हैं.
केमिकल रंगों का उपयोग हो सकता है खतरनाक
इधर इस संबंध में चिकित्सकों का भी कहना है कि अत्यधिक केमिकल वाले रंग त्वचा के साथ-साथ स्वास्थ्य के लिए भी खतरनाक हो सकते हैं. वरिष्ठ चिकित्सक डॉक्टर सुनील ने बताया कि केमिकल युक्त रंग लगाने से त्वचा में जलन और इन्फेक्शन की शिकायत हो सकती है. इसलिए लोगों को प्रयास करना चाहिए कि होली में हर्बल रंगों का उपयोग करें. उन्होंने कहा कि पलाश के फूलों से बनाया गया रंग केमिकल युक्त रंगों की अपेक्षा काफी बेहतर होता है. पलाश के फूलों का रंग त्वचा को नुकसान भी नहीं पहुंचाता है.