Thursday, January 23, 2025

नेताजी की मौत एक अनसुलझी पहली? वो सवाल जिनके जवाब आज भी रहस्य

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नई दिल्ली: नेताजी सुभाष चंद्र बोस की मौत को कई साल हो चुके हैं. इतना ही नहीं उनसे जुड़े दस्तावेजों को सार्वजनिक किए हुए करीब 10 साल बीत चुके हैं. फिर भी रहस्य बरकरार है. मिशन नेताजी के संस्थापक सदस्य और लेखक चंद्रचूड़ घोष ने ईटीवी भारत से कहा कि, मौजूदा सरकार के लिए सही समय है कि वह भारत और विदेश में मौजूद उन खुफिया एजेंसियों से जुड़ी फाइलें जारी करे जो उन पर नजर रख रही थीं और उनसे जुड़ी अलग-अलग थ्योरीज का पालन कर रही थीं.

उन्होंने यह भी कहा कि, सरकार को नेताजी पर मुखर्जी आयोग की रिपोर्ट को स्वीकार करना चाहिए, जिसे यूपीए सरकार के सामने पेश किया गया था. हालांकि, झूठे तथ्यों के आधार पर उसे खारिज कर दिया गया था. साथ ही, उन्होंने मांग की कि सरकार को इस मामले की नए सिरे से जांच शुरू करनी चाहिए और इसे निर्णायक नतीजे तक पहुंचाना चाहिए.

चंद्रचूड़ घोष ने अपनी नई पुस्तक द बोस डिसेप्शन: डिक्लासिफाइड में लिखा है कि, सितंबर 2005 में मुखर्जी आयोग की रिपोर्ट तत्कालीन गृह मंत्री शिवराज पाटिल को सौंपी गई थी. गृह मंत्री को रिपोर्ट सौंपे जाने के समय से ही टॉप सीक्रेट से निपटने के नियम लागू कर दिए गए थे. मार्च 2006 में संयुक्त सचिवों के साथ एक बैठक में गृह सचिव वी के दुग्गल ने इस बात पर जोर दिया था कि जस्टिस मुखर्जी आयोग की रिपोर्ट के छपने से लेकर संसद में रखे जाने तक गोपनीयता बनाए रखने के लिए सावधानी बरती जानी चाहिए.

रिपोर्ट की छपाई की गोपनीयता
नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा सार्वजनिक की गई फाइलें इस बात की पेचीदगियों को उजागर करती हैं कि उस गोपनीयता को कैसे बनाए रखा गया था. ओखला, नई दिल्ली में तीन प्रिंटिंग प्रेस को रिपोर्ट छापने के लिए चुना गया था क्योंकि इसे इन-हाउस करना कोई विकल्प नहीं था. गृह मंत्रालय के सुरक्षा प्रभाग के अधिकारियों ने पाया कि, जिस पहली प्रेस का उन्होंने दौरा किया वह पूरी तरह से ऑटोमेटिक थी. ज्ञापन में कहा गया है कि, यहां सुरक्षा व्यवस्था करना काफी संभव होगा क्योंकि यहां सभी सुविधाएं एक ही छत के नीचे उपलब्ध हैं.

दूसरा प्रेस ठीक-ठाक लग रहा था, लेकिन उनकी इकाइयां अलग-अलग इमारतों में हैं और वहां सुरक्षा व्यवस्था करना थोड़ा बोझिल हो सकता है. अधिकारी ने तीसरे प्रेस के लिए समझौता किया. उन्हें सबसे अधिक यह बात पसंद आई कि प्रेस के मालिक ने अपनी टेबल पर एक सीसीटीवी लगाया हुआ था ताकि वह उन कर्मचारियों पर नजर रख सके जो गुप्त प्रकृति का मुद्रण कार्य कर रहे थे. किताब में प्रिंटिंग प्रेस के मालिक के बारे में जिक्र किया गया है. क्योंकि टॉप सीक्रेट को बाहर आने से रोकने के लिए बेहद सावधानी की जरुरत थी.

मुखर्जी रिपोर्ट के निष्कर्ष
चंद्रचूड़ घोष ने कहा कि 1946 से 2006 तक सरकारों ने सच को दबाने की कोशिश की और यह बात अलग-अलग सरकारी दस्तावेजों से साबित हो चुकी है, जिसका पूरा ब्यौरा किताब में दिया गया है. उन्होंने यह भी कहा कि तत्कालीन गृह मंत्री ने यूपीए कैबिनेट को गुमराह किया था. मुखर्जी आयोग की रिपोर्ट को खारिज करने के संबंध में कैबिनेट नोट तैयार किया गया था और इस नोट में गलत तथ्य भरे गए थे. हमने कैबिनेट नोट को पढ़ा है और इस बात की सच्चाई उजागर की है कि रिपोर्ट का वास्तव में क्या हुआ और तत्कालीन सरकार ने कैसे झूठ बोला.

मुखर्जी आयोग को नेताजी की मृत्यु से संबंधित सवालों के जवाब देने का काम सौंपा गया था, जैसे कि क्या वे जीवित थे, क्या रेंकोजी मंदिर में रखी अस्थियां उनकी हैं, क्या उनकी मृत्यु विमान दुर्घटना में हुई थी, और यदि वे विमान दुर्घटना में नहीं मरे थे, तो उनके साथ क्या हुआ था. जस्टिस मुखर्जी की आयोग की रिपोर्ट में पाया गया कि सामान्य जैविक अर्थों में नेताजी के जीवित होने की संभावना बहुत कम थी. उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि नेताजी की मृत्यु विमान दुर्घटना में नहीं हुई थी, और टोक्यो के रेंकोजी मंदिर में रखी अस्थियां उनकी नहीं हैं. अंतिम प्रश्न के लिए, वे सरकार के सहयोग की कमी और प्रासंगिक दस्तावेजों की अनुपलब्धता के कारण इसका उत्तर नहीं दे सके. घोष ने कहा कि तत्कालीन सरकार ने रिपोर्ट को गलत तरीके से खारिज कर दिया और सही तौर पर, जस्टिस मुखर्जी को और समय दिया जाना चाहिए था.

फाइलों का गोपनीयता हटाना
भारतीय राष्ट्रीय अभिलेखागार की आधिकारिक वेबसाइट से पता चलता है कि 14 अक्टूबर 2015 को भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नई दिल्ली में अपने आवास पर नेताजी परिवार के सदस्यों के एक प्रतिनिधिमंडल से मुलाकात की थी. 33 फाइलों का पहला बैच जिसे गोपनीयता हटाया गया था, उसे प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) ने 4 दिसंबर 2015 को भारतीय राष्ट्रीय अभिलेखागार को सौंप दिया था. प्रधानमंत्री मोदी ने 14 अक्टूबर 2015 को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर विदेशी सरकारों से नेताजी से जुड़ी उनके पास मौजूद फाइलों को गोपनीयता हटाने का अनुरोध भी किया था. हालांकि, सिवाय मुखर्जी आयोग की रिपोर्ट के बारे में एक छोटा सा खुलासा होने के अलावा कवायद से कुछ खास हासिल नहीं हुआ.

नेताजी पर एनडीए का रुख
यूपीए सरकार द्वारा यह घोषित किए जाने के एक दशक बाद कि, आधिकारिक रुख बदलकर 1945 में ताइपे में बोस की मृत्यु को स्वीकार कर लिया गया है. गृह राज्य मंत्री किरेन रिजिजू ने लोकसभा में चर्चा के दौरान टिप्पणी की कि हम यह कहने की स्थिति में नहीं हैं कि वास्तव में नेताजी के साथ क्या हुआ था. इस बयान ने एक अजीब स्थिति पैदा कर दी. जबकि वर्तमान सरकार पिछली सरकार के समान ही रुख अपनाए हुए है, लेकिन इसके मंत्री अलग-अलग स्वर में बोलते हैं.

घोष ने अपनी पुस्तक में लिखा है कि, सरकार के इस बयान पर सार्वजनिक हंगामे के बाद कि वह मानती है कि बोस की मृत्यु 1945 में विमान दुर्घटना में हुई थी. गृह मंत्री के प्रवक्ता द्वारा स्पष्टीकरण दिया गया, जिन्होंने 2 जून, 2017 को एक्स पर पोस्ट किया कि आधिकारिक रुख मई 2016 के कैबिनेट निर्णय पर आधारित था और किसी भी अन्य महत्वपूर्ण इनपुट की जांच की जाएगी. इस प्रकार हम ऐसी स्थिति में हैं जहां सरकार किसी चीज को तथ्य के रूप में स्वीकार करती है लेकिन दावा करती है कि अगर नई जानकारी सामने आती है तो वह अपने रुख पर फिर से विचार करने के लिए तैयार है.

नेताजी के रहस्य को सुलझाने का रास्ता
उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि मौजूदा सरकार को पहले मुखर्जी आयोग की रिपोर्ट को स्वीकार करके मामले को फिर से खोलना चाहिए. पूरे मामले की फिर से जांच की जानी चाहिए, खासकर उन कई नए इनपुट के साथ जो सामने आए हैं, जिनमें अनकैटिगराइज्ड दस्तावेज भी शामिल हैं. सरकार को केंद्रीय और राज्य खुफिया आयोग की रिपोर्ट को भी अनकैटिगराइज्ड करना चाहिए.

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