पलामू में अफीम की खेती पर पुलिस कार्रवाई कर रही है. पलामू में अफीम की खेती राजस्थान से आए तस्करों ने शुरू की थी.
पलामू: झारखंड के कई इलाके अफीम की खेती की चपेट में हैं. दिसंबर से मार्च तक अफीम की खेती को नष्ट करने के लिए पूरी पुलिस फोर्स लगा दी जाती है. इस दौरान कई करोड़ रुपए भी खर्च किए जाते हैं. एक समय था जब झारखंड के कई इलाकों में नक्सली संगठनों का राज हुआ करता था.
नक्सली संगठनों को अफीम की खेती से करोड़ों की लेवी भी मिलती थी. लेकिन नक्सली संगठनों के कमजोर होने के बाद कई आपराधिक गिरोह और तस्करों ने अफीम की खेती पर कब्जा कर लिया है. कुछ इलाकों में अफीम की खेती से नक्सली संगठन टीएसपीसी का भी नाता है. टीएसपीसी से मिलकर छोटे-छोटे आपराधिक गिरोह अफीम की खेती को संरक्षण दे रहे हैं. इस गिरोह में बिहार, हरियाणा, राजस्थान, पंजाब के तस्कर शामिल हैं.
राजस्थान के तस्करों ने शुरू कराई थी अफीम की खेती
झारखंड में अफीम की खेती 2006-07 में पलामू चतरा सीमावर्ती इलाके में शुरू हुई थी. उस दौरान पलामू चतरा इलाके में लोगों ने राजस्थान के ट्रैक्टरों से बड़े पैमाने पर अपनी जमीन समतल करवाई थी. इस दौरान राजस्थान से ऊंट भी पलामू इलाके में दाखिल हुए थे. अफीम तस्करों ने जमीन समतलीकरण करने वालों का इस्तेमाल किया था. राजस्थान के तस्करों ने अफीम (पोस्ता) के बीज उपलब्ध कराये थे. बाद में राजस्थान के तस्करों ने शुरुआत में अफीम भी खरीदी थी.
“राजस्थान के कुछ लोगों ने इलाके के लोगों से संपर्क किया था. राजस्थान के लोगों ने खेती के तरीके बताये थे और जमीन समतल करने वाले लोगों के माध्यम से बीज दिये थे. शुरुआत में 400 से 500 रुपये प्रति किलो की दर से बीज उपलब्ध कराया गया था. मुझे मिली जानकारी के अनुसार वर्तमान में तस्कर एक हजार से दो हजार रुपये प्रति किलो की दर से बीज उपलब्ध करा रहे हैं.” – राजेंद्र यादव, पोस्ता की खेती छोड़ चुके किसान
नक्सल इलाके को किया गया था टारगेट
अफीम तस्करों ने सबसे पहले नक्सल क्षेत्र को निशाना बनाया था. इसके पीछे मुख्य कारण यह था कि पुलिस नक्सल क्षेत्रों में सिर्फ अभियान के लिए जाती थी और वहां खेती करना आसान था. तस्करों ने पहले स्थानीय ग्रामीणों और प्रभावशाली नक्सल कमांडरों को अपने जाल में फंसाया था. 2006-07 में जिस क्षेत्र में अफीम की खेती शुरू हुई थी, वह माओवादियों और टीएसपीसी कमांडरों के प्रभाव वाला था. शुरुआत में माओवादी कमांडरों और टीएसपीसी कमांडरों को खेती में हिस्सा दिया जाता था. कुल अफीम कारोबार का 10 से 20 फीसदी हिस्सा नक्सली संगठनों के कमांडरों को दिया जाता था.
शुरुआत में नक्सली संगठन अफीम की खेती को लेकर उत्साहित नहीं थे, लेकिन पैसे का लालच देकर कमांडरों ने रुचि दिखाई और खेती शुरू कर दी. कई मौके ऐसे भी आए हैं, जब नक्सली संगठनों ने अफीम की खेती को नष्ट भी किया है. कुछ कमांडरों ने अफीम की खेती को बढ़ावा दिया और इससे मोटी रकम कमाई भी की.” – सुरेंद्र यादव, पूर्व माओवादी
दो दशक में कई गुना बढ़ा अफीम की खेती का दायरा
पूरे झारखंड में अफीम की खेती सबसे पहले पलामू के पांकी और चतरा के लावालौंग में शुरू हुई थी. आज इसका दायरा पलामू, लातेहार, गुमला, रांची, लोहरदगा और खूंटी तक बढ़ गया है. अफीम की खेती का दायरा बढ़ता जा रहा है. पुलिस लगातार अभियान चलाकर खेती को नष्ट कर रही है. 2006-07 से अब तक अकेले पलामू में दो हजार एकड़ से ज्यादा अफीम की फसल नष्ट की जा चुकी है. 1700 से ज्यादा लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है. 265 से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार भी किया गया है.
“2023-24 में कार्रवाई के दौरान अफीम की खेती में नक्सली संगठन टीएसपीसी की भूमिका देखी गई थी. पुलिस लगातार अफीम की खेती के खिलाफ कार्रवाई कर रही है. पुलिस ग्रामीणों से अफीम की खेती छोड़ने की अपील भी कर रही है.” – रीष्मा रमेशन, एसपी, पलामू
राजस्थान, हरियाणा और पंजाब के तस्कर हो चुके हैं गिरफ्तार
पुलिस कार्रवाई में राजस्थान, हरियाणा और पंजाब के कई तस्कर गिरफ्तार हो चुके हैं. पलामू पुलिस के आंकड़ों के अनुसार 2015 से 2024 तक 75 करोड़ रुपये से अधिक की अफीम बरामद की जा चुकी है. इस दौरान राजस्थान, हरियाणा और पंजाब से तस्करों को गिरफ्तार किया गया है. जबकि पुलिस कार्रवाई के लिए राजस्थान, हरियाणा और पंजाब भी गई है. 2020 में पलामू पुलिस ने राजस्थान से तस्कर भंवर लाल को गिरफ्तार किया था. भंवर लाल ने पलामू पुलिस को कई जानकारियां दी थीं.
भंवर लाल ने पलामू पुलिस को बताया था कि राजस्थान, हरियाणा और पंजाब के तस्करों का नेटवर्क है. स्थानीय लोगों से अफीम खरीदकर बाद में कई राज्यों में ऊंचे दामों पर बेचा जाता है. स्थानीय ग्रामीणों से 60 से 65 हजार रुपये प्रति किलो की दर से अफीम खरीदा जाता है. जबकि उत्तर भारत के राज्यों में तीन से चार लाख रुपये प्रति किलो बिकता है. अफीम के पौधे से निकाला गया डोडा भी उत्तर भारत के राज्यों में जाता है. उत्तर प्रदेश और राजस्थान में डोडा की सबसे अधिक मांग है.