हाल ही में अर्ली चाइल्डहुड एसोसिएशन (ECA-APER) और पोद्दार इंस्टीट्यूट ऑफ एजुकेशन द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार, यह स्थापित हुआ है कि लगभग 45 प्रतिशत भारतीय बच्चे अधिक वजन वाले या मोटे हैं. मुंबई, पुणे, दिल्ली और कोलकाता में तीन महीनों में 10,000 से अधिक अभिभावकों के बीच किए गए इस सर्वेक्षण में एक बड़ा खुलासा हुआ है, जो काफी चौंकाने वाला है. इस सर्वेक्षण से पता चलता है कि भारत की युवा पीढ़ी का स्वास्थ्य बहुत खतरे में है.
सैफी अस्पताल मुंबई की कंसल्टेंट बैरिएट्रिक और लैप्रोस्कोपिक सर्जन, डॉ. अपर्णा गोविल भास्कर का कहना है कि पिछले दशकों की तुलना में इस बार किए गए सर्वेक्षण में संख्याए बहुत अधिक हैं. दरअसल, 1998 में, दिल्ली के केवल 7.4 फीसदी और चेन्नई के 6.2 फीसदी बच्चे अधिक वजन वाले थे. 2010 में दक्षिण कर्नाटक में किए गए सर्वेक्षण से पता चला कि 9.9 फीसदी किशोर अधिक वजन वाले थे और 4.8 फीसदी मोटापे से ग्रस्त थे. लेकिन इस बार हाल में किए गए सर्वेक्षण में आकड़ें में अचानक से भारी बढ़ोतरी के साथ 45 फीसदी किशोर अधिक वजन वाले पाए गए, जो एक चौंकाने देने वाला और चिंताजनक टर्न है.

आज, दुनिया की सबसे बड़ी और सबसे युवा आबादी वाले भारत के सामने सार्वजनिक स्वास्थ्य से निपटने की एक बड़ी चुनौती है. यह केवल लोगों के स्वास्थ्य का सवाल नहीं है. इसका नेशनल हेल्थ सर्विस स्पेंड, इकोनॉमिक प्रोडक्टिविटी, लाइफ एक्सपेक्टेंसी और लंबी अवधि में गुणवत्ता-समायोजित जीवन वर्ष (QALY) पर भी प्रभाव पड़ता है.
इस उछाल के पीछे क्या है?
शोधकर्ताओं ने शहरीकरण, जीवनशैली में बदलाव और खराब आहार के संयोजन को प्राथमिक कारणों के रूप में जिम्मेदार ठहराया है. जैसे कि…
गतिहीन जीवनशैली: सर्वेक्षण ने संकेत दिया कि 28 फीसदी बच्चे बिल्कुल भी शारीरिक गतिविधि नहीं करते हैं और 67 फीसदी को हर दिन एक घंटे से भी कम समय के लिए बाहर खेलने का मौका मिलता है. बढ़ता शैक्षणिक दबाव और अतिरिक्त ट्यूशन और कई अन्य कक्षाओं में जाने की बढ़ती प्रवृत्ति के कारण आमतौर पर बच्चों के पास खेलने के लिए समय नहीं बचता.
जंक फूड और प्रोसेस्ड डाइट: चिप्स, मीठे पेय पदार्थ, फास्ट फूड और प्रोसेस्ड स्नैक्स जैसे उच्च कैलोरी, कम पोषक तत्वों वाले खाद्य पदार्थों की ओर लोगों का रुझान बढ़ रहा है. ताजे फल, सब्जियां और दूध कम लोकप्रिय हैं.
एग्रेसिव मार्केटिंग स्ट्रेटजी: बड़े खाद्य निगम सेलिब्रिटी एंडोर्समेंट, सोशल मीडिया अभियान, कार्टून चरित्रों और रंगीन पैकेजिंग के माध्यम से सीधे बच्चों को लक्षित करते हैं. खिलौनों के प्रचार, भ्रामक स्वास्थ्य दावे और काल्पनिक विज्ञापन जैसी रणनीतियां छोटे बच्चों के कमजोर दिमाग के लिए अस्वास्थ्यकर भोजन को एक अनूठा आकर्षण बनाती हैं.
जेनेटिक्स से ज्यादा एनवायरमेंटल- कुछ बच्चों में उनके पारिवारिक इतिहास के कारण वजन बढ़ने की संभावना अधिक होती है. आनुवंशिक प्रवृत्ति वजन बढ़ने में अहम भूमिका निभाती है. लेकिन यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि यह पर्यावरण ही है जो इस टेंडेंसी को एक्टिव करता है. जैसा कि पुरानी कहावत है, “आनुवंशिकी बंदूक लोड करती है, लेकिन पर्यावरण ट्रिगर खींचता है.” बच्चों के स्वास्थ्य के पीछे माता-पिता की भी महत्वपूर्ण भूमिका होती है. जब एक्टिव लाइफस्टाइल और हेल्दी भोजन अपनाने की बात आती है, तो उन्हें बच्चों के लिए एक अच्छा उदाहरण स्थापित करना चाहिए. माता-पिता पहले शिक्षक होते हैं और बच्चे स्वाभाविक रूप से अपने माता-पिता के नक्शेकदम पर चलते हैं.

मोटापा सिर्फ एक फेज नहीं है
हमारे देश में, मोटा होना अच्छे स्वास्थ्य या समृद्धि का संकेत माना जाता है. हालंकि, यह स्वीकार करने का समय आ गया है कि बचपन में मोटापे के संभावित रूप से गंभीर चिकित्सीय परिणाम हो सकते हैं और इससे निम्न की संभावना बढ़ जाती है:

• टाइप 2 डायबिटीज
• हाई ब्लड प्रेशर
• हाई कोलेस्ट्रॉल
• स्लीप एपनिया
• नॉन-अल्कोहलिक फैटी लिवर डिजीज
• हार्ट डिजीज का हाई रिस्क
जब ये स्वास्थ्य समस्याएं बचपन में शुरू होती हैं, तो बच्चों को अपने जीवन में बहुत लंबे समय तक पीड़ित रहना पड़ता है और कम उम्र में ही कॉम्प्लिकेशन भी विकसित हो जाती हैं.

क्या बदलने की जरूरत है?
बच्चों में मोटापे की बढ़ती समस्या के लिए सभी संबंधित पक्षों से तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता है
माता-पिता और परिवारों को परिवार में स्वस्थ आदतों को प्रोत्साहित करने में सक्रिय भूमिका निभाने की आवश्यकता है.
स्कूलों को शारीरिक शिक्षा, स्वस्थ भोजन और स्वास्थ्य और कल्याण शिक्षा को प्राथमिकता देनी चाहिए.
सरकारी नेताओं को ऐसी नीतियां बनाने की जरूरत है. जिसमें बच्चों के लिए अनहेल्दी फूड आइटम्स के प्रचार को नियंत्रित करना, सुरक्षित खेल के मैदानों तक पहुंच बढ़ाना और सार्वजनिक स्वास्थ्य पहलों को बढ़ावा देना शामिल है.