Wednesday, April 2, 2025

झारखंड में सरहुल को लेकर आदिवासी समाज उत्साह है. सोमवार को इसकी दो बड़ी रस्म की निभाई गयी..

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रांचीः झारखंड में प्रकति पर्व सरहुल को धूमधाम से मनाया जा रहा है. आज सोमवार शाम को जल रखाई पूजा होगी. अगले दिन 1 अप्रैल को देवी-देवताओं, प्रकृति और पूर्वजों की पूजा के बाद शोभा यात्रा निकालने की कवायद शुरु होगी. आदिवासी समाज के लोग सरहुल को नववर्ष के आगमन के रुप में मनाते हैं. इस दिन से तमाम शुभ कार्य शुरु हो जाते हैं.

सरहुल में केकड़ा का महत्व

हतमा सरना समिति के पुजारी जगलाल पाहन ने बताया कि केकड़ा से जुड़ी कुछ किंवदंती है. माना जाता है कि केकड़ा ने पूर्वजों को शरण देने में मदद की थी. इसलिए सरहुल के दिन पूर्वजों के साथ-साथ केकड़ा की भी पूजा की जाती है. केकड़ा को अरवा धागा में बांधकर घर में रखा जाता है. सरहुल संपन्न होने के बाद केकड़ा को घर में ऐसे सुरक्षित जगह पर रखा जाता है जहां अच्छी तरह से सूख जाए. फिर बारिश के समय उसी सूखे केकड़े का चूर्ण बनाया जाता है. चूर्ण को धान और गोबर में मिलाकर बुआई शुरु की जाती है. माना जाता है कि केकड़ा एक साथ बड़ी संख्या में अंडे देता है लिहाजा, धान की बाली भी अनगिनत की संख्या में फूटे.

जल भराई पूजा का खास महत्व

पुजारी जगलाल पाहन ने कहा कि ग्रामीणों के सहयोग से नदी, तालाब या चुंआ सा पानी लाया जाता है. फिर दो घड़ा में जल को भरा जाता है. सरना स्थल पर दोनों घड़ा की पूजा पारंपरिक विधि विधान के साथ की जाएगी. अगले दिन पाहन देखते हैं कि घड़ा पानी कम हुआ है या नहीं घटा है. अगर पानी नहीं घटता है तो माना जाता है कि इस साल अच्छी बारिश होगी. 1 अप्रैल को सुबह 10 से 11 बजे तक पूजा अनुष्ठान पूरा होने के बाद प्रसाद ग्रहण किया जाता है. इसके बाद शोभा जुलूस निकाली जाती है.

सरहुल की शोभा यात्रा के अगले दिन फूलखोसी विधि की जाती है. ग्रामीणों के घर में सरई के फूल अर्पित किया जाता है. सभी के सुख समृद्धि की कामना की जाती है. इसी के साथ सरहुल पर्व का समापन हो जाता है.

Know what importance of crab catching and water keeping ritual in nature festival Sarhul 2025

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