रांची: प्रकृति की गोद में बसा झारखंड वन संपदा की दृष्टि से खास है. राज्य गठन के बाद से वन और पेड़ों के आवरण में लगातार वृद्धि हो रही है, जो पर्यावरण संरक्षण के लिए सकारात्मक सोच का परिचायक है. सामाजिक प्रयास के साथ-साथ सरकारी स्तर पर वन संरक्षण को लेकर समय-समय पर कदम उठाए जाते रहे हैं. यही वजह है कि राज्य गठन के बाद साल 2001 में 23605 वर्ग किलोमीटर में वन क्षेत्र था, जो बढ़कर 2023 में 25118 वर्ग किलोमीटर हो गया, जो राज्य के भौगोलिक क्षेत्र का लगभग 31.51 प्रतिशत है.
खास बात यह है कि पुराने वन क्षेत्र में समय के साथ कमी आने के बावजूद नए वन क्षेत्र में हुई वृद्धि के कारण कुछ जिलों में 50% से अधिक वन आवरण देखा जा रहा है. हालांकि चतरा, सिमडेगा और कोडरमा जैसे जिलों में 2021 से 2023 के बीच वन आवरण में नकारात्मक परिवर्तन देखे गए हैं. झारखंड आर्थिक सर्वेक्षण की ताजा रिपोर्ट 2024-25 के अनुसार लातेहार और पश्चिम सिंहभूम में सबसे अधिक वन आवरण है, जो क्रमशः उनके भौगोलिक क्षेत्र का 55.54 प्रतिशत और 46.76 प्रतिशत है. वहीं जामताड़ा में सबसे कम 5.94 और देवघर में 8.3 प्रतिशत वन क्षेत्र है.
संरक्षित वन क्षेत्र में कमी, लेकिन खुले वन क्षेत्र में वृद्धि
आकलन के अनुसार राष्ट्रीय स्तर पर कुल वन और वृक्ष आवरण 8 लाख 27 हजार 357 वर्ग किमी है, जो देश के भौगोलिक क्षेत्र का 25.17 प्रतिशत है. वहीं दुनियां के करीब 2 प्रतिशत वनों को समेटे हुए है. झारखंड में वन संपदा को लेकर जारी रिपोर्ट के अनुसार आरक्षित वनों में मामूली वृद्धि जरूर है, लेकिन संरक्षित वनों में गिरावट आई है. घने जंगलों की श्रेणी यानी वीडीएफ और मध्यम घने जंगल में मामूली उतार-चढ़ाव देखा गया है.
2011 में एमडीएफ का क्षेत्रफल 9917 वर्ग किलोमीटर से घटकर 2023 में 9640 वर्ग किलोमीटर हो गया है. जबकि वीडीएफ 2600 वर्ग किलोमीटर के आसपास है. वहीं खुले वन की बात करें तो 2001 में 10850 वर्ग किलोमीटर से बढ़कर 2023 में 11489 वर्ग किलोमीटर हो गया है. आंकड़ों के मुताबिक वृक्ष आवरण ने भी राज्य में मजबूती दिखाई है. 2001 में 2694 वर्ग किलोमीटर से बढ़कर 2023 में यह 3637 वर्ग किलोमीटर हो गया है.
झारखंड सरकार की पेड़ लगाने के लिए अनोखी योजना
राज्य में वृक्षारोपण अभियान को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने अनोखी योजना की शुरुआत कर रखी है. जिसके तहत शहरी क्षेत्र में पौधारोपण के लिए प्रति वृक्ष पांच यूनिट मुफ्त बिजली सरकार देने का काम कर रही है. इस योजना के तहत पेड़ों को अपने आवासीय परिसर के अलावे शहरी क्षेत्र के खाली पड़े रैयती जमीन पर लगाया जा सकता है. सरकार ने इस योजना के तहत पेड़ों की गोलाई कम से कम 20 सेंटीमीटर से ज्यादा होने का मापदंड निर्धारित कर रखा है. इसके अलावे सरकारी कार्यक्रमों में महंगे फूलों का गुलदस्ता के स्थान पर पौधा देने की परंपरा शुरू की गई. जिससे पौधारोपण के प्रति लोगों में जागरूकता आए.