Tuesday, March 18, 2025

झारखंड जनाधिकार महासभा ने जेपीआरए में संशोधन किए बगैर पेसा के लिए नियमावली नहीं बनाने की मांग की है.

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रांची: झारखंड में पेसा कानून पहेली बनकर रह गया है. जब कभी भी इसे लागू करने की कवायद की जाती है तो यह विवाद की भेंट चढ़ जाता है. हालत यह है कि झारखंड विधानसभा ने 2001 में झारखंड पंचायती राज अधिनियम 2001 पारित किया था. जिसके तहत राज्य के सभी गैर अनुसूचित और अनुसूचित क्षेत्रों में पंचायती व्यवस्था को सुदृढ़ करना था, मगर इसे आज तक पूर्ण रूप से लागू नहीं किया जा सका है.

समय-समय पर पेसा एक्ट लागू करने को लेकर मांगें तेज होती रही और इस संदर्भ में न्यायालय के भी आदेश आते रहे हैं. राज्य सरकार ने 2023 में एक ड्राफ्ट नियमावली बनाई और लोगों से इस पर सुझाव मांगा गया. करीब 2 साल बीतने के बाद पंचायती राज विभाग तैयार ड्राफ्ट पर आए 154 सुझावों पर काम करने में जुटा है. इन सबके बीच फाइनल ड्राफ्ट पब्लिकेशन से पहले इस पर विरोध के स्वर तेज हो गए हैं.

झारखंड जनाधिकार महासभा की दलील

झारखंड जनाधिकार महासभा ने वर्तमान नियमावली में पेसा और अबुआ राज के मूल भावना के अनुरूप अनेक खामियां बताते हुए जेपीआरए में आवश्यक संशोधन किए बगैर नियमावली नहीं बनाने की मांग की है. जनाधिकार महासभा का मानना है कि इसके जरिए ग्राम सभा मजबूत नहीं होगा, बल्कि कमजोर होगा.

नियमावली में संशोधन पर जोर

झारखंड आंदोलनकारी डेमका सोय कहते हैं कि पेसा के अनुसार ग्राम सभा आदिवासी भूमि का गलत तरीके के हस्तांतरण को रोकने और ऐसी भूमि वापस करवाने के लिए सक्षम है, लेकिन नियमावली में इस प्रक्रिया में निर्णायक उपायुक्त को बनाया गया है. इसे संशोधित कर ग्राम सभा को निर्णायक बनाया जाए और उपायुक्त को केवल कार्यान्वयन की जिम्मेदारी दी जानी चाहिए. इसके अलावा नियमावली में ग्राम सभा के लिए कुल सदस्यों के महज 1/3 की उपस्थिति का कोरम रखा गया है. यह सामूहिक निर्णय प्रक्रिया को कमजोर करता है. प्रस्तावित संशोधन में इसे कम से कम 50% किया जाए. उन्होंने कहा कि विधानसभा बजट सत्र के दौरान 19 मार्च को सभी विधायकों से पेसा की मूल भावना को लागू करने का आग्रह किया जाएगा.

नियमावली में खानापूर्ति न होः जोर्ज मोनिपल्ली

वहीं सामाजिक आंदोलन से जुड़े जोर्ज मोनिपल्ली कहते हैं कि पेसा के तहत जो अधिकार ग्राम सभा को मिले हैं वह सही तरीके से लोगों को मिले, ना कि खानापूर्ति कर जैसे-तैसे दे दिया जाए. उन्होंने कहा कि बिना जेपीआरए में प्रावधान किए नियमावली बनाना कानूनी रूप से उचित नहीं होगा. क्योंकि इसके बाद जो कोई भी कोर्ट जाएगा तो न्यायालय इसे अमान्य कर देगा. महासभा का मानना है कि पेसा के अनुसार ग्राम सभा सर्वोपरि है. अगर किसी भी सरकारी अथवा गैर सरकारी इकाई द्वारा सामुदायिक स्वायतत्ता, सामुदायिक प्रबंधन, संस्कृति आदि का उल्लंघन होता है तो ग्राम सभा कार्रवाई के लिए सक्षम है, लेकिन यह बिंदु पूरी नियमावली में गौण है. नियमावली में वर्णित दो प्रकार की ग्राम सभा यथा ग्राम सभा और पारंपरिक ग्राम सभा का उल्लेख होने पर एतराज जताते हुए नियमावली में केवल ग्राम सभा शब्द का प्रयोग करने की मांग की है.

इन राज्यों में लागू है पेसा एक्ट

पेसा देश के अनुसूचित जनजाति बहुल क्षेत्रों में लागू है. पेसा एक्ट पांचवीं अनुसूची के तहत अनुसूचित क्षेत्रों यानी जिन इलाकों में आदिवासियों की संख्या ज्यादा है वहां लागू होता है. वर्तमान में देश के 10 राज्यों में यह व्यवस्था लागू है. जिसमें झारखंड और ओडिशा को छोड़कर शेष 8 राज्यों ने अपनी नियमावली बना ली है.पंचायती राज मंत्रालय के अनुसार आठ राज्‍यों में आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, राजस्थान और तेलंगाना ने अपने संबंधित पंचायती राज कानूनों के तहत अपने राज्य पेसा नियमों को अधिसूचित किया है. झारखंड और ओडिशा में अंतर-विभागीय परामर्श की प्रक्रिया अभी भी जारी है.

Controversy Over PESA

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