आज से 66 साल पहले 31 मार्च 1959 को तिब्ती धर्म गुरु दलाई लामा ने भारत में शरण लिया था.
खेंजमाने (अरुणाचल प्रदेश): तारीख 31 मार्च 1959, जब चीन के कब्जे के बाद 14वें दलाई लामा अपने परिवार और करीब 80 अनुयायियों के साथ तिब्बत से भागकर भारत पहुंचे थे. अरुणाचल प्रदेश के खेंजिमन गांव में उन्होंने पहली बार भारतीय धरती पर कदम रखा. यहीं अपनी पवित्र छड़ी रखी थी. आज, 66 साल बाद media की टीम उसी ऐतिहासिक स्थान पर पहुंची है, जहां से दलाई लामा का भारत में शरण का सफर शुरू हुआ था. उस स्थल की वर्तमान स्थिति और वहां के लोगों की भावनाओं को जानते हैं.
जेमीथांग घाटी अरुणाचल प्रदेश के तवांग जिले के पश्चिमी भाग में स्थित एक छोटा पहाड़ी क्षेत्र है. तवांग से जेमीथांग की दूरी लगभग 70 किमी है और जेमीथांग से खेंजमाने की दूरी 12 किमी है. यह असम के तेजपुर से लगभग 500 किमी दूर है. 31 मार्च, 1959 को यह ऐतिहासिक महत्व का स्थल बन गया, जहां 14वें दलाई लामा ने तिब्बत से भागने के बाद शरण ली थी. 14 वें दलाई लामा ने पहली बार पश्चिमी अरुणाचल प्रदेश के तवांग जिले में पांगचेन घाटी के खेंजिमानी में अपनी होली की छड़ी रखी थी.

दलाई लामा को भारत में प्रवेश किए 66 साल हो चुके हैं. खेंजमाने स्थित पवित्र स्थल पर एक पेड़ लगाया गया था. दलाई लामा के प्रतीक के रूप में बौद्धों द्वारा प्रतिदिन इसकी पूजा की जाती है. खेंजमाने तवांग जिले के जेमीथांग सर्कल में जेमीथांग गांव के अंत में स्थित है. इस पेड़ को 14वें दलाई लामा ने स्वयं न्यामग्यांग-चू नदी के किनारे लगाया था, जो चीन के शैनन प्रांत से आती है. बौद्ध इस पवित्र स्थान पर आते हैं और दलाई लामा की लंबी उम्र की कामना के लिए पेड़ की शाखाओं पर “बौद्ध खादा” बांधते हैं.

खेंजिमान से लगभग 12 किमी दूर, नामग्यांग-चू नदी पर ज़ेमिथांग से खेंजमाने तक एक झूला पुल है. नदी पर बने झूला पुल को पार करने के बाद लगभग आधा किलोमीटर पैदल चलकर खेंजमाने के पवित्र स्थान में प्रवेश किया जाता है. न्यामग्यांग-चू नदी पर बने सस्पेंशन ब्रिज से खेंजिमाने के पवित्र स्थान तक पहुंचने में करीब 10 मिनट लगता है. इस जगह का जीर्णोद्धार 2023-24 में भारतीय सेना की मराठलाई कंपनी द्वारा किया गया है. इस पवित्र स्थान को पार करने के बाद आप भारत-तिब्बत सीमा पुलिस चौकी पर पहुंचेंगे. इस स्थान से भारत-चीन सीमा की दूरी मात्र डेढ़ किलोमीटर है.

मोनपा जनजाति के लोबसंग त्सेरिंग बौद्ध धर्मगुरु दलाई लामा की सेवा करते हैं और उनके पवित्र वृक्ष पर धार्मिक खादा बांधकर प्रार्थना करते हैं.बात करते हुए उन्होंने कहा, “यह स्थान बहुत पवित्र स्थान माना जाता है क्योंकि दलाई लामा ने सबसे पहले यहीं विश्राम किया था. हम यहां परम पावन के दीर्घायु और अच्छे स्वास्थ्य के लिए प्रार्थना करने आए हैं. 1959 में दलाई लामा के भारत में इस स्थान पर आने के 66 साल हो गए हैं, बहुत से लोग इस स्थान पर आते हैं और शांति महसूस करते हैं.” उन्होंने कहा, “चीन ने तिब्बती लोगों पर अत्याचार किया और परिणामस्वरूप दलाई लामा को भागकर भारत में शरण लेनी पड़ी.”