संविधान सभा के सदस्य के रूप में जयपाल सिंह मुंडा के अलावा भी कई सदस्य थे. जिनके बारे में बहुत कम लोगों को पता है. आज हम उन सभी के बारे में आपको इस आलेख में बतायेंगे.
रांची : संविधान बनाने में यूं तो झारखंड से कई लोग शामिल थे. इनमें सबसे प्रमुख नाम जयपाल सिंह मुंडा का था. जिन्होंने अलग झारखंड के निर्माण में भी बड़ी भूमिका निभायी थी. लेकिन कई सदस्य ऐसे भी थे जिनका संविधान के निर्माण में अहम भूमिका थी, जो आज गुमनाम हैं. गुमनाम का मतलब यह है कि इनके बारे में आज भी बहुत कम लोगों को पता है. क्योंकि इसका जिक्र न ही बहुत अधिक किसी किताब में मिलता है न ही बहुत ज्यादा इनके बारे में मीडिया रिपोर्ट्स में खबरें छपी हैं. आज हम तीन ऐसे शख्स के बारे में आपको बताएंगे जो संविधान सभा के सदस्य तो थे लेकिन उनका जिक्र बहुत कम होता है. इसमें सबसे पहला नाम बोनीफास लकड़ा का है.
कौन थे बोनीफास लकड़ा
बोनीफास लकड़ा लोहरदगा के रहने वाले थे. उन्होंने छोटानागपुर और संताल परगना के आदिवासियों के लिए सुरक्षा प्रावधानों के निर्माण में बड़ी भूमिका निभायी थी. पेशे से वकील रहे बोनीफास लकड़ा ने अलग झारखंड के निर्माण भी बड़ी भूमिका निभाई थी. उन्होंने संविधान सभा में छोटानागपुर प्रमंडल और संथाल परगना को मिला कर स्वायत्त क्षेत्र बनाने और इसे केंद्र शासित राज्य का दर्जा देने के साथ साथ आदिवासी कल्याण मंत्री की नियुक्ति, जनजातीय परामर्शदातृ परिषद (टीएसी) के गठन करने के साथ साथ इसकी समय सीमा तय करने करने की वकालत की थी.
यदुवंश सहाय की भी थी बड़ी भूमिका
पलामू के रहने वाले यदुवंश सहाय भी संविधान सभा के सदस्य थे. वे स्वतंत्रता आंदोलन में भी शामिल थे. नौ अगस्त 1942 को जब महत्मा गांधी ने जब असहयोग आंदोलन की घोषणा की थी तो यदुवंश सहाय को पलामू में इस आंदोलन का नेतृत्व करने का जिम्मा मिला. लेकिन अंग्रेजों ने इस आंदोलन को दबाने के लिए उन्हें पहले ही गिरफ्तार कर लिया. उनके सुझाव के कारण ही पेसा कानून लागू हुआ था.
अमिय कुमार घोष भी थे संविधान सभा के सदस्य
यदुवंश सहाय के साथ अमिय कुमार घोष ने संविधान के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी. वे भी पलामू के ही रहने वाले थे. वे भी उन्हीं की तरह स्वतंत्रता सेनानी थे. हालांकि उनका झुकाव सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व वाली गरम दल के तरफ अधिक था. जब नेताजी सुभाषचंद्र बोस को आजादी की लड़ाई के दौरान पलामू आना पड़ा तो वे नवाहाता स्थित उनके ही आवास पर रूके थे. फिलहाल वह आवास वर्तमान में प्रकाश चंद्र जैन का सेवा सदन है. उन्हें लोग गोपा बाबू के नाम से भी जानते थे.
जयपाल सिंह मुंडा की क्या भूमिका थी
जयपाल सिंह मुंडा झारखंड आंदोलनकारी के साथ साथ संविधान सभा के सदस्य भी थे. संविधान सभा के सदस्य के रूप में उन्होंने आदिवासियों की पहचान और अस्मिता को संविधान निर्माताओं के समक्ष वृहद रूप से रखा. उन्होंने ही सबसे पहले अलग झारखंड राज्य की परिकल्पना की थी. संविधान सभा में उनके द्वारा दिया गया भाषण हमेशा याद किया जाता है. उन्होंने कहा था कि पिछले छह हजार साल से अगर इस देश में किसी का सबसे अधिक शोषण हुआ, तो वे आदिवासी ही हैं. अब भारत अपने इतिहास में एक नया अध्याय शुरू कर रहा है, तो हमें भी समान अवसर मिलना चाहिए. उन्होंने संविधान सभा में देश की आदिवासियों के बारे में सकारात्मक ढंग से अपनी बात रखी थी.
देवेंद्र नाथ सामंत भी थे संविधान सभा के सदस्य
पद्मश्री देवेंद्र नाथ सामंत पश्चिमी सिंहभूम के दोपाई गांव के रहने वाले थे. वे मुंडा जनजाति से थे. संविधान सभा में उन्होंने आदिवासी हितों की बात मजबूती से रखी. 25 सितंबर 1925 को जब उनकी मुलाकात चाईबासा में महात्मा गांधी से हुई तो उनके जीवन में बड़ा बदलाव आया. 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लेने के दौरान वे गिरफ्तार हुए. साल 1944 तक वे हजारीबाग जेल में रहे.
बाबू राम नारायण सिंह भी थे स्वतंत्रता सेनानी
बाबू राम नारायण सिंह हजारीबाग के रहने वाले थे. वे 1921 से लेकर 1944 तक अलग-अलग समय में जेल में रहे. वे संविधान सभा के सदस्य भी थे. संविधान सभा में उन्होंने बतौर सदस्य पंचायती राज, शक्तियों का विकेंद्रीकरण, मंत्री और सदस्यों का अधिकतम वेतन 500 करने की वकालत की थी. हजारीबाग के वे पहले सांसद भी थे.
विनोदनंद झा स्वतंत्रता आंदोलन के समय कई बार गये जेल
देवघर के रहने वाले विनोदनंद झा भी स्वतंत्रता सेनानी के साथ साथ संविधान सभा के सदस्य थे. स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान वे कई बार जेल गये. एक मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो जेल में बंद रहने के दौरान उन्हें ग्रेनाइट के चट्टानों को तोड़कर गिट्टी बनाने का काम दिया गया. जिस पर उन्होंने आंखों पर लगाने के लिए एक खास तरह के गोगल्स मांगे. इसके पीछे उन्होंने अफ्रीका के असभ्य क्षेत्रों में रहने वालों लोगों का हवाला दिया. उनके इस मांग पर अंग्रेज अधिकारी झल्ला उठा था. इसके बाद उन्हें स्थानांतरित कर देवघर जेल भेज देने की योजना बनी थी.