पुरी: श्री जगन्नाथ मंदिर प्रशासन (SJTA) को रथ निर्माण के लिए लकड़ी की कमी का सामना करना पड़ सकता है. दरअसल, इस समस्या से निपटने के लिए एक परियोजना अधर में लटकी हुई है. जंगल में लकड़ी की कमी के कारण मंदिर प्रशासन इसे भक्तों से इकट्ठा कर रहा है. इस मुद्दे पर पुरी गजपति दिव्यसिंह देब, एसजेटीए, वन विभाग और राज्य सरकार के अधिकारियों के बीच एक व्यापक योजना तैयार करने के लिए चर्चा हुई.
प्रशासन का मानना है कि इस तरह की समस्याओं से निपटने के लिए जगन्नाथ वन परियोजना का उचित प्रबंधन करना आवश्यक है. आमतौर पर तीनों रथों के निर्माण के लिए 100 साल से अधिक पुराने पेड़ों का उपयोग किया जाता है. वर्तमान में जगन्नाथ वन परियोजना के हिस्से के रूप में उगाए गए पेड़ इस उद्देश्य के लिए उपयुक्त नहीं हैं.
रथ निर्माण के लिए लकड़ी की उपलब्धता में बाधा
सबसे बुरी बात यह है कि परियोजना के तहत उगाए गए कई पेड़ सूख चुके हैं और कई अन्य पेड़ उम्मीद के मुताबिक नहीं उग पाए हैं. इससे भविष्य में रथ निर्माण के लिए लकड़ी की उपलब्धता में बाधा आ सकती है. चूंकि नयागढ़ के जंगलों में अब उपयुक्त लकड़ी नहीं मिल पाती, इसलिए बौध और घुमुसर से लकड़ी मंगाने की कोशिश की जा रही है.

इस संबंध में जगन्नाथ संस्कृति के विशेषज्ञों का कहना है कि मंदिर प्रशासन और वन विभाग को जन जागरूकता अभियान चलाना चाहिए. इससे लोगों को रथ निर्माण के लिए पेड़ लगाने के लिए प्रोत्साहित किया जा सकेगा. इस अप्रोच से लकड़ी के संकट को दूर करने और पर्यावरण की रक्षा करने में मदद मिल सकती है. इसके अलावा नयागढ़ में पेड़ लगाने और उनकी देखभाल सुनिश्चित करने के प्रयास किए जाने चाहिए. उन्होंने कहा कि सरकार को लकड़ी की बिक्री पर भी प्रतिबंध लगाना चाहिए.
रथ के निर्माण में ‘फशी’ लकड़ी का उपयोग
भगवान जगन्नाथ के रथ के निर्माण में ‘फशी’ लकड़ी का उपयोग किया जाता है. तीन रथ के पहियों के निर्माण के लिए लकड़ी के 72 लट्ठों की आवश्यकता होती है. फशी लकड़ी आम तौर पर छह फीट व्यास और 14 फीट लंबी होती है, जो इसे रथ के पहिये के निर्माण के लिए उपयुक्त बनाती है.
रथ के पहियों के निर्माण के लिए 70 साल से अधिक पुराने फशी पेड़ों की लकड़ी का उपयोग किया जाता है और इसे नयागढ़, घुमुसर, दासपल्ला और बौध से प्राप्त किया जाता है. लकड़ी महानदी नदी के किनारे के जंगलों से प्राप्त की जाती है.

जगन्नाथ वन परियोजना
जगन्नाथ वन परियोजना की शुरुआत 2000 में मंदिर प्रशासन और पुरी गजपति की पहल पर हुई थी, ताकि रथ निर्माण के लिए लकड़ी की कमी से बचा जा सके. इस परियोजना में पुरी, खुर्दा, नयागढ़, बौध के साथ-साथ ढेंकनाल, अंगुल, अथागढ़, अथमलिक और सतकोसिया के वन क्षेत्र शामिल हैं.
परियोजना के लिए 26.34 हेक्टेयर में फैली कुल 23 यूनिट आवंटित की गई हैं, जिसके तहत आसन, धौरा, फशी, अर्जुन, गम्भारी, सिमिली, महालिम्बा, चकुंडा, शिशु और लिम्ब जैसे पेड़ जंगलों में लगाए गए हैं.
हालांकि, 2015 में जब मंदिर प्रशासन की टीम ने अध्ययन किया तो पाया कि कई पेड़ मर चुके थे और कुछ उम्मीद के मुताबिक नहीं बढ़े थे. परियोजना की सफलता सुनिश्चित करने के लिए टीम ने सुझाव दिया कि वन विभाग को पेड़ों की उचित देखभाल करनी चाहिए. दुर्भाग्य से विभाग ने अभी तक कोई प्रभावी उपाय नहीं किए हैं.
रथ यात्रा के लिए 865 लकड़ी के टुकड़ों से तीन रथ बनाए जाते हैं. इसमें आसन, धौरा, फशी, सिमिली, माई, चकुंडा, शिशु, लिंब, महालिंबा, गंभारी और अन्य पेड़ों की लकड़ियां शामिल हैं. कुल 865 लकड़ियों में से 274 आसन, 274 धौरा और 72 फशी की लकड़ियां हैं. हर रथ यात्रा के बाद तीनों रथों की लकड़ियों की नीलामी की जाती है.
जन जागरूकता अभियान शुरू किया जाए
मंदिर प्रबंधन समिति के पूर्व सदस्य माधव महापात्रा ने रथ यात्रा को यूनेस्को मान्यता देने की तैयारियों के दौरान लकड़ियों की उपलब्धता पर चिंता जताई. उन्होंने सरकार से आग्रह किया कि वह एक सर् कराए और अगले कई वर्षों के लिए उपलब्ध लकड़ी पर एक रिपोर्ट प्रकाशित करे.
उन्होंने कहा कि फशी की लकड़ी नयागढ़ से मंगाई जाती थी, लेकिन जिले के जंगलों में अब पेड़ नहीं हैं. उन्होंने कहा, “फशी के पेड़ों को बढ़ावा देने के लिए एक जन जागरूकता अभियान शुरू किया जाना चाहिए.”
‘लकड़ी की कमी की धारणा सही नहीं’
श्रीमंदिर के पुजारी शरत मोहंती ने कहा कि त्रिदेवों की रथ यात्रा के लिए लकड़ी की कमी की धारणा सही नहीं है. रथ सदियों से चलते आ रहे हैं. रथों के निर्माण में इस्तेमाल की गई लकड़ी का दोबारा इस्तेमाल नहीं किया जा सकता. इसलिए, स्थायी रथ निर्माण के बारे में चर्चा समाप्त कर देनी चाहिए.
हालांकि, जंगलों में फशी के पेड़ों की संख्या में कमी आई है, लेकिन अगर उन्हें पहचाना और संरक्षित किया जाए, तो लकड़ी की समस्या का समाधान हो सकता है. जगन्नाथ वन परियोजना को नए दृष्टिकोण और उचित पर्यवेक्षण की आवश्यकता है.
एसजेटीए के मुख्य प्रशासक अरबिंद पाधी ने कहा कि रथ निर्माण के लिए लकड़ी दान करने वाले भक्तों को पुरी गजपति द्वारा सम्मानित किया जाता है. 2023 और 2024 में हमने 80 व्यक्तियों को सम्मानित किया, जिन्होंने रथों के लिए फशी की लकड़ी दान की थी.
उन्होंने कहा, “वे (दानकर्ता) महाप्रभु की सेवा करने का अवसर पाकर खुद को धन्य महसूस करते हैं. जगन्नाथ वन परियोजना का उद्देश्य लकड़ी की समस्या का समाधान करना है. हमें उम्मीद है कि महाप्रभु की रथ यात्रा के लिए लकड़ी की कमी नहीं होगी.” पाढी ने फशी लकड़ी की सप्लाई को लेकर समस्याओं को स्वीकार किया. पाढी ने कहा, “हम उन भक्तों की सूची बना रहे हैं जो फशी लकड़ी की आपूर्ति कर सकते हैं. रथ निर्माण के लिए आवश्यक लकड़ी का संग्रह शुरू हो गया है.”