Friday, April 18, 2025

चतरा में कोयला वाहनों के परिचालन के कारण लगातार सड़क दुर्घटनाएं हो रही हैं. इसे लेकर कई बार लोग आंदोलन भी कर चुके हैं.

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चतरा: एशिया के सबसे बड़े कोल परियोजनाओं में शुमार मगध, आम्रपाली, अशोका और पीपवार से कोयले की ढुलाई में लगे भारी-भरकम वाहन अब लोगों के लिए खतरा बना रहा है. बीते आठ-नौ वर्षों में करीब एक हजार लोग इन दुर्घटनाओं की भेंट चढ़ चुके हैं. इसके बावजूद न जिला प्रशासन का ध्यान इस ओर जा रहा है, न ही सरकार की.

चतरा जिले के टंडवा प्रखंड में संचालित मगध और आम्रपाली कोल परियोजनाएं देश को ऊर्जा प्रदान करने में अहम भूमिका निभाती हैं, लेकिन यही परियोजनाएं स्थानीय लोगों के लिए खतरा बन गई हैं. सेंट्रल कोल्फील्ड्स लिमिटेड (सीसीएल) द्वारा संचालित इन परियोजनाओं से कोयले की ढुलाई के लिए कोई समर्पित व्यावसायिक सड़क नहीं बनाई गई है. जिसके चलते कोयला लदे भारी वाहन राष्ट्रीय राजमार्ग (एनएच-100 और 99) और पीडब्ल्यूडी की सड़कों से होकर गुजरते हैं. ये सड़कें सिमरिया, बगरा, जबड़ा, धनगड्डा, मिश्रौल, डाड़ी, बिरहू, तलसा और चतरा जैसे भीड़-भाड़ वाले इलाकों से होकर गुजरती हैं. जहां हर पल हादसों का खतरा मंडराता रहता है.

स्थानीय बुटारी भुईयां की पीड़ा उनकी बातों में साफ झलकती है. वे कहते हैं कि शाम सात बजे नो-एंट्री खुलते ही सड़कों पर कोल वाहनों का परिचालन शुरू हो जाता है. लोग सड़कों पर चलने से डरते हैं. मेरे पुत्र 26 वर्ष सुरभिल कुमार की भी कोल वाहन की चपेट में आने से मौत हो गई थी. कई लोग इन हादसों में अपाहिज होकर जिंदगी जीने को मजबूर हैं.

पिछले नौ वर्षों में कोल वाहनों की वजह से कई हादसे हो चुके हैं. आंकड़ों की बात करें तो लगभग एक हजार लोग इन हादसों में अपनी जान गंवा चुके हैं. सिमरिया-टंडवा और रांची-हजारीबाग मार्ग पर हर दिन कोई न कोई हादसा हो रहा है. फिर भी इन हादसों को रोकने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया जा रहा. वहीं, स्थानीय निवासी रिंकी देवी बताती हैं कि मेरे पति टंडवा मिश्रोल बाइक से घर लौटे रहे थे. तभी एक कोल कोल वाहन ने उन्हें कुचल दिया.

कोल परियोजनाओं से होने वाली आय का बड़ा हिस्सा केंद्र और राज्य सरकार के खजाने में जाता है, लेकिन स्थानीय लोगों को इससे नुकसान हो रहा है. सीसीएल ने पिछले नौ वर्षों में न तो कोई समर्पित ट्रांसपोर्टिंग सड़क बनवाई और न ही बाईपास का निर्माण कराया. जिसके चलते कोयला ढुलाई के लिए सार्वजनिक सड़कों का इस्तेमाल हो रहा है, जो पहले से ही तंग और जर्जर हैं. भारी वाहनों के लगातार आवागमन से सड़कें और खराब हो रही हैं, जिससे हादसों की संख्या बढ़ रही है.

स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता आलोक रंजन कहते हैं कि सीसीएल को सिर्फ मुनाफे से मतलब है. वे निजी सड़क बनाकर इन हादसों को कम कर सकते हैं. हर हादसे के बाद पीड़ित परिवारों को चंद रुपये देकर मामला रफा-दफा कर दिया जाता है.

कोल वाहनों के आतंक से तंग आकर स्थानीय लोग लंबे समय से आंदोलन कर रहे हैं. सिमरिया-टंडवा मार्ग पर कई बार लोग सड़कों पर उतर चुके हैं, लेकिन उनकी मांगें अब तक पूरी नहीं हुईं. लोग समर्पित ट्रांसपोर्टिंग सड़क, बाईपास और कोल वाहनों की गति पर नियंत्रण की मांग कर रहे हैं, लेकिन न तो प्रशासन और न ही सीसीएल ने इन मांगों पर गंभीरता दिखाई.

आंदोलनकारियों का कहना है कि जब तक उनकी मांगें पूरी नहीं होंगी, वे चुप नहीं बैठेंगे. एक आंदोलनकारी रमेश यादव कहते हैं कि हमारी सड़कों पर कोल वाहन नहीं, मौत दौड़ रही है. हम सिर्फ अपनी और अपने बच्चों की जिंदगी की सुरक्षा चाहते हैं. क्या ये मांग इतनी बड़ी है कि सरकार और सीसीएल इसे पूरा नहीं कर सकते?

प्रशासन की सुस्ती, स्पीड ब्रेकर भी नहीं

सिमरिया-टंडवा और रांची-हजारीबाग मार्ग पर न तो पर्याप्त स्पीड ब्रेकर हैं और न ही ट्रैफिक नियंत्रण के लिए कोई ठोस व्यवस्था. कोल वाहन बिना किसी डर के तेज रफ्तार में दौड़ते हैं और हादसे होने पर जिम्मेदारी कोई नहीं लेता.

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स्थानीय लोग बताते हैं कि कई जगहों पर स्पीड ब्रेकर बनाए गए थे, लेकिन भारी वाहनों के आवागमन से वे भी टूट चुके हैं. टंडवा के सर्कल ऑफिसर (सीओ) गौरव कुमार ने दावा किया कि कोल वाहनों की गति पर नियंत्रण के लिए कदम उठाए जा रहे हैं. वे कहते हैं कि स्पीड ब्रेकर लगाने और ट्रैफिक नियमों का सख्ती से पालन कराने की दिशा में काम कर रहे हैं ताकि हादसों पर लगाम लगाया जा सकें, लेकिन स्थानीय लोगों का कहना है कि ये दावे सिर्फ कागजों तक सीमित हैं.

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