छोटे बच्चों में डायबिटीज के बढ़ते मामलों को देखते हुए सीबीएसई ने स्कूलों में “शुगर बोर्ड” लगाने का निर्णय लिया है, जानें कैसा होगा यह?
भारत में डायबिटीज के मरीज लगातार बढ़ रहे हैं, खासकर छोटे बच्चों में यह बीमारी अधिक बढ़ रही है. ऐसे में अब स्कूली जीवन से ही जागरूकता पैदा करना जरूरी हो गया है, इसलिए सीबीएसई स्कूलों में शुगर बोर्ड बनाया जाएगा. यह बोर्ड इस बात की जानकारी देगा कि चीनी का अत्यधिक सेवन कितना खतरनाक हो सकता है. यह प्रयास आने वाली पीढ़ी को सशक्त और स्वस्थ बनाने के लिए किया जा रहा है. ग्लोबल स्कूल की प्रिंसिपल डॉ. गायकवाड़ ने बताया कि शिक्षा विभाग ने सभी स्कूलों को 15 जुलाई तक इसे लागू करने का निर्देश दिया है.
स्कूलों में डायबिटीज के प्रति जागरूकता क्यों जरूरी
भारत दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था और सबसे ज्यादा युवाओं वाला देश बनकर उभर रहा है. हालांकि, भारत की तुलना अब उन देशों में से भी किया जा रहा है जहां डायबिटीज के साथ-साथ अन्य बीमारियां भी काफी फेमस हैं. इसलिए स्कूल एज से ही बच्चों में बीमारियों से बचाव के लिए जागरूकता पैदा करने की कोशिश की जा रही है. बता दें, डायबिटीज पहले बुजुर्गों में ज्यादातर होने वाली बीमारी थी. हालांकि आज के समय में चॉकलेट, कैडबरी और फास्ट फूड का अधिक सेवन और बाहर कम खेलने-कूदने के कारण छोटे बच्चों में भी यह बीमारी काफी बढ़ रही है. इस कारण अब स्कूल एज से ही इस बीमारी को नियंत्रित करने का प्रयास किया जाएगा. इसलिए सीबीएसई परीक्षा बोर्ड ने सभी स्कूलों को शुगर बोर्ड लगाने का निर्देश दिया है.
कैसा होगा शुगर बोर्ड
बच्चे देश का भविष्य है, इसलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस भविष्य को रोग मुक्त बनाने के लिए इस नए कान्सेप्ट को सामने रखे हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्वस्थ भारत के दृष्टिकोण को उजागर करते हुए, इस पहल का उद्देश्य बच्चों को कम उम्र से ही स्वस्थ आदतें अपनाने के लिए प्रेरित करना और एक रोग मुक्त राष्ट्र सुनिश्चित करना है. ‘शुगर बोर्ड’ में अत्यधिक चीनी के खतरों के बारे में जानकारी होगी, जिसमें न केवल डायबिटीज बल्कि कैंसर जैसी अन्य गंभीर स्थितियां भी शामिल हैं. हर स्कूल में 15 जुलाई तक ऐसे बोर्ड लगाना अनिवार्य कर दिया गया है.
सीबीएसई बोर्ड ने यह अहम कदम इसलिए उठाया है क्योंकि छोटे बच्चों में खुद के स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता पैदा करना जरूरी है. इससे न केवल उनकी शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाया जा सकता है, बल्कि उन्हें जीवन भर स्वस्थ रहने की आदतें भी लग सकती हैं. साथ ही स्कूलों में भी कुछ सकारात्मक बदलाव किए जा रहे हैं. गायकवाड़ ग्लोबल स्कूल ने अब जन्मदिन या त्योहारों पर चॉकलेट बांटने पर रोक लगा दी गई है. इसकी जगह छात्रों को हेल्दी बिस्किट और ड्राई फ्रूट्स बांटने को कहा जाएगा. इसके अलावा स्कूल की प्रिंसिपल डॉ. ने बताया कि बच्चों को लंच बॉक्स में अनाज और पौष्टिक खाद्य पदार्थ लाने को कहा गया है.
बच्चों को कैसे हो जाता है डायबिटीज
बच्चों में टाइप 1 डायबिटीज यह एक ऑटोइम्यून बीमारी है जिसमें शरीर इंसुलिन बनाने वाली कोशिकाओं पर हमला करता है. इसे बच्चों में होने वाला सबसे आम प्रकार का डायबिटीज माना जाता है. टाइप 1 डायबिटीज तब होता है, जब अग्नाशय इंसुलिन का बहुत कम या बिल्कुल उत्पादन नहीं करता. वहीं, टाइप 2 डायबिटीज तब होता है जब शरीर इंसुलिन का ठीक से उपयोग नहीं कर पाता है. टाइप 2 डायबिटीज के लिए मोटापा, शारीरिक निष्क्रियता और खराब आहार जैसे कारक जिम्मेदार होते हैं
- बच्चों में हाई ब्लड शुगर, जिसे हाइपरग्लाइसेमिया भी कहा जाता है, कई कारणों से हो सकता है, जिनमें शामिल हैं…
- यदि परिवार में किसी को डायबिटीज है, तो बच्चे में भी बीमारी होने का खतरा बढ़ जाता है.
- बच्चे के आहार में बहुत अधिक कार्बोहाइड्रेट, रेड मीट, प्रोसेस्ड मीट या मीठे खाद्य पदार्थ और कैलोरी युक्त स्नैक्स शामिल होते हैं. ये आहार बच्चों का वजन बढ़ा सकते हैं और उन्हें टाइप 2 डायबिटीज हो सकता है.
- बच्चों में शारीरिक गतिविधि की कमी, पर्याप्त व्यायाम न करना भी डायबिटीज का कारण बन सकता है.
लक्षण
टाइप 2 डायबिटीज अक्सर धीरे-धीरे शुरू होती है. इस वजह से लक्षणों का पता लगाना मुश्किल हो सकता है. आपको बता दें, कुछ बच्चों में कोई लक्षण नहीं हो सकते हैं. लेकिन कुछ छोटे बच्चों, किशोरों और युवाओं में एक जैसे लक्षण होते हैं.
टाइप 2 डायबिटीज वाले बच्चों में ये लक्षण दिख सकते हैं जिनमें सोने या जागने में कठिनाई, चिड़चिड़ापन या गुस्सा, चीखना-चिल्लाना, वज़न कम होना, बहुत ज्यादा भूख लगना शामिल हैं…
बार-बार पेशाब आना: टाइप 2 डायबिटीज़ वाले बच्चे को पहले से ज्यादा बार पेशाब आ सकता है. जब रक्त में शुगर की मात्रा ज्यादा हो जाती है, तो शरीर उसमें से कुछ मात्रा को पेशाब के जरिए बाहर निकाल देता है.
बहुत ज्यादा प्यास लगना: टाइप 2 डायबिटीज वाले बच्चे सामान्य से ज्यादा पानी पीना शुरू कर देते हैं. ऐसा इसलिए होता है क्योंकि बार-बार पेशाब आने से डिहाइड्रेशन हो सकता है, जिससे प्यास लगती है.
थकान: जब शरीर ब्लड शुगर का सही तरीके से इस्तेमाल नहीं करता है, तो बच्चे को थकान महसूस हो सकती है.
धुंधली दृष्टि: हाई ब्लड शुगर लेवल के कारण आंखों की नमी कम हो सकती है, जिससे आंखों के लेंस से तरल पदार्थ निकल सकता है, जिससे धुंधली दृष्टि हो सकती है.
त्वचा का काला पड़ना: इंसुलिन प्रतिरोध के कारण एकैन्थोसिस निग्रिकन्स नामक त्वचा की स्थिति विकसित हो सकती है, जिससे त्वचा के कुछ हिस्से काले पड़ सकते हैं. यह अक्सर गालों, गर्दन और गर्दन के पिछले हिस्से को प्रभावित करता है.
घाव भरने में देरी: हाई ब्लड शुगर लेवल के कारण घाव और त्वचा के संक्रमण को ठीक होने में अधिक समय लग सकता है.