हीमोफीलिया एक जेनेटिक बीमारी है. इसे लेकर जागरुकता बहुत जरूरी है. बीमारी को लेकर अब तक कोई सटीक इलाज उपलब्ध नहीं है.
रांची: हीमोफीलिया ब्लड से जुड़ी एक जेनेटिक बीमारी है. जिसमें रक्त का थक्का नहीं बनता है. इस वजह से कई बार मामूली चोट भी जानलेवा बन जाती है. ऐसे में हीमोफीलिया को लेकर लोगों में जागरूकता फैलाना बेहद जरूरी है.
रांची के सदर अस्पताल के सभागार में रांची हीमोफीलिया सोसाइटी के सिल्वर जुबली पूरा होने पर हीमोफीलिया जागरूकता कार्यक्रम का आयोजन किया गया. इस कार्यक्रम में हीमोफीलिया के मरीज, उनके माता पिता के साथ साथ कई ख्याति प्राप्त चिकित्सकों ने भाग लिया और बताया कि कैसे हीमोफीलिया जैसी बीमारी को लेकर समाज में जागरूकता लाने की जरूरत है.
कार्यक्रम में राज्य के स्वास्थ्य निदेशक प्रमुख डॉ सीके शाही, रांची सिविल सर्जन डॉ प्रभात कुमार, रिम्स के शिशु रोग विभाग के हेड डॉ राजीव मिश्रा, रिम्स की डीन डॉ शशिबाला सिंह, रांची हीमोफीलिया सोसाईटी के संस्थापक अध्यक्ष डॉ एच पी नारायण, हीमोफीलिया सोसाइटी के अध्यक्ष डॉ गोविंदजी सहाय, सोसाइटी के सचिव संतोष जायसवाल सहित कई लोगों ने बताया कि कैसे हीमोफीलिया के इलाज में समय के साथ बदलाव होते गए और आज की तारीख में ऐसी दवा भी आई हुई है जिसे महीना में सिर्फ एक बार लेना है.
आवयश्क दवाओं की सूची में रखी गयी है हीमोफीलिया की दवाईयांः स्वास्थ्य निदेशक प्रमुख
राज्य के स्वास्थ्य निदेशक प्रमुख सीके शाही ने बताया कि सरकार ने इस बार हीमोफीलिया की दवाओं और फैक्टर्स को आवश्यक( Essential) दवाओं की सूची में रखा है. अब राज्य में इन दवाओं की कोई कमी नहीं होने दी जाएगी. उन्होंने यह भी भरोसा दिलाया कि सिकल सेल एनीमिया और थैलेसीमिया की तरह हीमोफीलिया को भी आयुष्मान योजना में शामिल कराने का प्रयास करेंगे.
हीमोफीलिया एक जटिल जेनेटिक बीमारीः डॉ राजीव मिश्रा
रिम्स के शिशु रोग विभाग के हेड डॉ राजीव मिश्रा ने बताया कि हीमोफीलिया (Hemophilia) एक ऐसी दुर्लभ और जटिल बीमारी है जिसमें शरीर में खून का थक्का (blood clot) बनने की प्रक्रिया ठीक से काम नहीं करती, इस कारण मामूली चोट भी कई बार जानलेवा हो जाती है. इसे समझना और पहचानना बेहद जरूरी है, क्योंकि सही जानकारी ही बचाव की ओर बढ़ता पहला कदम है.
वहीं रिम्स की डीन डॉ शशिबाला सिंह ने कहा कि बच्चों के जन्म के समय ही थोड़ा अलर्ट रहकर जांच की जाए तो नवजात में हीमोफीलिया का पता लगाया जा सकता है. डॉ एचपी नारायण ने कहा कि समय बीतने के साथ साथ इस बीमारी के इलाज में कई नई दवाइयां आयी हैं, जिससे इस रोग से जूझ रहे लोगों का जीवन सुलभ हुआ है. रांची के सीएस ने कहा कि सदर अस्पताल में इलाज की बेहतर सुविधा है लेकिन अन्य जिलों में भी इसी तरह की सुविधा होनी चाहिए.
हीमोफीलिया ग्रसित बच्चा, शीशे के गिलास जैसा
आज के हीमोफीलिया जागरूकता कार्यक्रम में राज्य के अलग अलग जिलों से हीमोफीलिया ग्रस्त बच्चों को लेकर उसके पेरेंट्स भी सदर अस्पताल आये थे. उन्हीं में से एक हजारीबाग से आई मां ने हीमोफिलिक बच्चों के माता-पिता का दर्द साझा करते हुए कहा कि उनके बच्चे को हीमोफीलिया है, यह जानकर प्राइवेट स्कूल नामांकन नहीं लेते. वह कहती हैं कि यही मानिए कि उनका बच्चा शीशे के ग्लास जैसा है, उसे बचाकर रखना होता है.
हीमोफीलिया क्या है
मानव शरीर को जब कोई चोट लगती है, तो कई दफा खून बहना शुरू हो जाता है, लेकिन कुछ ही समय में खून का थक्का बनकर खून बहना रुक जाता है. ये थक्का बनाने में कुछ खास प्रोटीन, जिन्हें क्लॉटिंग फैक्टर्स कहा जाता है अपनी अहम भूमिका निभाते हैं. हीमोफीलिया की बीमारी उन लोगों में होती है जिनके शरीर में ये क्लॉटिंग फैक्टर्स या तो बहुत कम होते हैं या बिल्कुल नहीं होते. इससे खून बहने की प्रक्रिया रुकती नहीं और खून का बहाव जारी रहता है, यह स्थिति अगर बनी रहे तो मरीज की जान भी जा सकती है.
कितने प्रकार की होती है हीमोफीलिया
हीमोफीलिया मुख्य रूप से दो प्रकार की होती है:
- हीमोफीलिया ए (Hemophilia A) – इसमें फैक्टर VIII की कमी होती है
- हीमोफीलिया बी (Hemophilia B) – इसमें फैक्टर IX की कमी होती है
यह होती है बीमारी
हीमोफीलिया एक अनुवांशिक (genetic) बीमारी है. यह माता-पिता से बच्चों में जीन के जरिए आती है. डॉ राजीव मिश्रा बताते हैं कि यह X गुणसूत्र (chromosome) से जुड़ी बीमारी है. इसलिए अधिकतर पुरुष इससे प्रभावित होते हैं, जबकि महिलाएं इसकी वाहक (carrier) होती हैं. उन्होंने बताया कि अब जीन म्यूटेशन की वजह से भी नए मरीज मिल रहे हैं.
क्या होते हैं हीमोफीलिया के लक्षण
- हीमोफीलिया के लक्षण इसकी गंभीरता पर निर्भर करती है
- मामूली चोट पर भी अधिक समय तक खून बहना
- त्वचा के नीचे नीला या काला पड़ जाना
- जोड़ों में सूजन और दर्द (विशेषकर घुटने, कोहनी और टखने) में
- मुंह या मसूड़ों से खून बहना
- टीका लगने या सर्जरी के बाद अत्यधिक खून बहना
- पेशाब या मल में खून आना
- बिना किसी चोट के अचानक से नाक से खून बहना जैसे लक्षण होते हैं.
- मस्तिष्क में खून बहने की स्थिति (Brain hemorrhage) सबसे खतरनाक होती है, जो सिर दर्द, उल्टी, चक्कर और बेहोशी जैसे लक्षणों से पहचानी जा सकती है.
वर्तमान समय में क्या है इलाज
हीमोफीलिया का कोई स्थायी इलाज नहीं है, लेकिन इसे नियंत्रित जरूर किया जा सकता है. क्लॉटिंग फैक्टर की सप्लीमेंट थेरेपी – खून में नियमित रूप से फैक्टर VIII या IX का इंजेक्शन देना ताकि खून का थक्का बनने में मदद मिले. इसके अलावा डेस्मोप्रेसिन और हेमोस्टेटिक दवाइयां खून के बहाव को रोकने में मदद करती हैं.
चोट से बचाव हीमोफीलिया मरीजों के लिए सबसे जरूरी
डॉक्टर्स बताते हैं कि हीमोफीलिया के मरीजों के लिये सबसे ज्यादा जरूरी है चोट से बचाव. सुरक्षात्मक कपड़े पहनना, उछल कूद और चोट लगने की संभावना वाले खेल से बचना, दांत और मसूड़ों की नियमित देखभाल जरूरी होता है.
झारखंड और भारत में हीमोफीलिया की स्थिति
हीमोफीलिया सोसाइटी के संतोष जायसवाल जो खुद एक हीमोफिलिक हैं वह बताते हैं कि भारत में लगभग 1.5 लाख से ज्यादा हीमोफीलिया मरीज होने का अनुमान है, लेकिन रजिस्टर्ड मरीजों की संख्या बहुत कम है. उन्होंने बताया कि झारखंड में करीब 900 हीमोफीलिया के चिन्हित मरीज हैं. उन्होंने बताया कि एक अनुमान है कि 5000 की आबादी पर 01 हीमोफीलिया के मरीज होते हैं, ऐसे में बड़ी संख्या ऐसे मरीजों की राज्य में हो सकती है, जिसकी अभी तक पहचान नहीं हो पाई है.