Friday, January 31, 2025

भारत में डेटा सेंटर मार्केट 11.6 बिलियन US डॉलर पहुंचने की उम्मीद, जानें इकोनॉमिक सर्वे की खास बातें

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नई दिल्ली: आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25 के लिए कहा गया है कि, भारत में डेटा सेंटर बाजार 2023 में 4.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर 2032 तक 11.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है. यह 10.98 प्रतिशत की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (सीएजीआर) पर है.

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने शुक्रवार को संसद में इकोनॉमिक सर्वेक्षण रिपोर्ट पेश की. रिपोर्ट में कहा गया है कि, भारत के डेटा सेंटर बाजार में उल्लेखनीय वृद्धि देखी जा रही है, जो बुनियादी ढांचे के विस्तार और डिजिटल सेवाओं की बढ़ती मांग से प्रेरित है.

GI क्लाउड इनीशिएटिव
मेघराज के नाम से जानी जाने वाली जीआई क्लाउड पहल भारत की सूचना प्रौद्योगिकी रणनीति का एक प्रमुख घटक है. जिसका उद्देश्य केंद्र और राज्य तथा केंद्र शासित प्रदेशों के विभागों को क्लाउड कंप्यूटिंग के माध्यम से आईसीटी सेवाएं प्रदान करना है.

इकोनॉमिक सर्वे रिपोर्ट में कहा गया है कि, 30 नवंबर, 2024 तक, राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र (एनआईसी) अपने क्लाउड पर 1,917 एप्लिकेशन का समर्थन करता है. सरकार ने यूजर डिपार्टमेंट की क्लाउड आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए 23 पब्लिक और प्राइवेट क्लाउड सेवा प्रदाताओं को सूचीबद्ध किया है.

आर्थिक सर्वेक्षण में कहा गया है कि, भारत को कम निर्माण लागतों से लाभ होता है. इसकी वजह इसकी अच्छी तरह से स्थापित आईटी और डिजिटल रूप से सक्षम सेवा पारिस्थितिकी तंत्र है. साथ ही अपेक्षाकृत सस्ती अचल संपत्ति है, जिसका औसत 2023 में प्रति मेगावाट 6.8 मिलियन अमेरिकी डॉलर है. जबकि ऑस्ट्रेलिया में यह 9.17 मिलियन अमेरिकी डॉलर, जापान में 12.73 मिलियन अमेरिकी डॉलर और सिंगापुर में 11.23 मिलियन अमेरिकी डॉलर है.

आर्थिक सर्वेक्षण में आगे कहा गया है कि, नीति निर्माताओं, निजी क्षेत्र और शिक्षाविदों के बीच सहयोग को बढ़ावा देकर, भारत कृत्रिम बुद्धिमत्ता एआई-संचालित नवाचार को सामाजिक लक्ष्यों के साथ जोड़ सकता है.

रिपोर्ट में कहा गया है कि, इस संक्रमण में समावेशिता और स्थिरता सुनिश्चित करना लाभ को अधिकतम करने और व्यवधानों को कम करने की कुंजी है. मजबूत संस्थागत ढांचे और रणनीतिक योजना के साथ, एआई संकट के रूप में नहीं बल्कि न्यायसंगत आर्थिक परिवर्तन के लिए उत्प्रेरक के रूप में काम कर सकता है, जो भारत को तेजी से स्वचालित दुनिया में पनपने की स्थिति में ला सकता है.

बड़े पैमाने पर एआई अपनाने में बाधाएं
बड़े पैमाने पर एआई अपनाने में बाधाएं वर्तमान में भी बनी हुई हैं, जिसमें विश्वसनीयता, संसाधन की अक्षमता और बुनियादी ढांचे की कमी से जुड़ी चिंताएं शामिल हैं. ये चुनौतियां, एआई की एक्सपेरिमेंटल नेचर के साथ, नीति निर्माताओं के लिए कार्य करने का एक अवसर प्रदान करती हैं.

रिपोर्ट में कहा गया है कि, भारत का जनसांख्यिकीय लाभ और विविध आर्थिक परिदृश्य इसे एआई से लाभ उठाने के लिए बेहतरीन स्थिति में रखता है. हालांकि, इन लाभों को प्राप्त करने के लिए शिक्षा और कार्यबल कौशल में महत्वपूर्ण निवेश की आवश्यकता होती है, जिसे सक्षम बनाने, बीमा करने और संस्थानों की देखरेख करने से सहायता मिलती है. ये तंत्र श्रमिकों को आवश्यक सुरक्षा जाल प्रदान करते हुए बदलती मांगों के अनुकूल होने में मदद कर सकते हैं.

एआई से लेबर मार्केट को नुकसान
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) द्वारा लेबर मार्केट (श्रम बाजार) को बाधित करने के बारे में चिंताएं और आशंकाएं बढ़ गई हैं. वह इसलिए क्योंकि पिछले चार सालों में इस क्षेत्र में विकास ने लगातार तेजी से प्रगति दिखाई है. रिपोर्ट में कहा गया है कि, आज विकसित किए जा रहे मॉडलों की बढ़ती जटिलता एआई के क्षेत्र में एक प्रतिमान बदलाव का प्रतिनिधित्व करती है, जो दुनिया को दिखाती है कि कुछ सालों में, इंटेलिजेंट मशीन’ उन कार्यों को करने में सक्षम होंगी जिन्हें आज मुख्य रूप से इंसान संभालते हैं.

एआई और भारत
जबकि भारत अपनी अर्थव्यवस्था में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को एकीकृत करने पर विचार कर रहा है. पिछली तकनीकी क्रांतियों के सबक सक्रिय संस्थागत प्रतिक्रिया के महत्वपूर्ण महत्व को रेखांकित करते हैं. अब जो समय दिया गया है उसका सदुपयोग प्रतिकूल प्रभावों को कम करने के लिए किया जाना चाहिए, जिसमें हमारी सर्वोत्तम क्षमताओं के अनुसार कार्यबल को भविष्य के लिए तैयार कौशल से लैस करना शामिल है.

आर्थिक सर्वेक्षण में इस बात पर प्रकाश डाला गया कि, हमें इस समय का उपयोग सामाजिक प्रभावों को कम करने के लिए तंत्र स्थापित करने के लिए भी करना चाहिए, यह एक ऐसी चुनौती है जो इंडिया के यूनिक डेमोग्राफी और आर्थिक परिदृश्य के साथ गहराई से गुंजयमान होती है.

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