सरकार ईपीएस के तहत न्यूनतम पेंशन को बढ़ाने की योजना बना रही है
नई दिल्ली: केंद्र सरकार कर्मचारी पेंशन योजना (ईपीएस) के तहत न्यूनतम पेंशन को मौजूदा 1,000 रुपये प्रति माह से बढ़ाकर 3,000 रुपये करने पर विचार कर रही है. एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने मनीकंट्रोल को बताया कि यह फैसला अगले कुछ महीनों में लागू हो सकता है. यह पहल ऐसे समय में हो रही है जब महंगाई में लगातार बढ़ोतरी और बुजुर्गों की सामाजिक सुरक्षा को लेकर चिंता बढ़ रही है.
ईपीएस क्या है?
ईपीएस भारत में संगठित क्षेत्र के कर्मचारियों के लिए एक रिटायरमेंट स्कीम है. इसे कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) चलाता है. इसका उद्देश्य रिटायरमेंट के बाद निजी क्षेत्र के कर्मचारियों को एक निश्चित मासिक आय देना है.
इस योजना का फंड नियोक्ता यानी कंपनी के योगदान से आता है. ईपीएफ (कर्मचारी भविष्य निधि) में इसके कुल 12 फीसदी योगदान में से 8.33 फीसदी ईपीएस और शेष 3.67 फीसदी ईपीएफ में जाता है.
सरकारी अधिकारी ने कहा कि हम न्यूनतम पेंशन को बढ़ाकर 3,000 रुपये प्रति माह करने की तैयारी कर रहे हैं. यह लंबे समय से लंबित था. इससे पहले 2020 में श्रम मंत्रालय ने न्यूनतम पेंशन को बढ़ाकर 2,000 रुपये करने का प्रस्ताव वित्त मंत्रालय को भेजा था, लेकिन इसे मंजूरी नहीं मिली.
7,500 रुपये पेंशन की भी मांग
2025 में बजट पूर्व चर्चा के दौरान ईपीएस सेवानिवृत्त कर्मचारियों के एक प्रतिनिधिमंडल ने वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण से न्यूनतम पेंशन बढ़ाकर 7,500 रुपये करने की मांग की थी, लेकिन उन्हें कोई आश्वासन नहीं मिला.
फिलहाल ईपीएस का कुल फंड 8 लाख करोड़ रुपये से अधिक है. इस योजना के तहत करीब 78.5 लाख पेंशनभोगी हैं. इनमें से 36.6 लाख लोगों को सिर्फ 1,000 रुपये प्रति माह न्यूनतम पेंशन मिल रही है.
3,000 रुपये पेंशन
अधिकारी ने बताया कि श्रम मंत्रालय वर्तमान में 3,000 रुपये पेंशन लागू करने से जुड़ी अतिरिक्त लागत का मूल्यांकन कर रहा है. वित्त वर्ष 2023-24 में सरकार ने EPS पेंशनभोगियों को न्यूनतम पेंशन प्रदान करने के लिए 1,223 करोड़ रुपये खर्च किए, जो वित्त वर्ष 23 में खर्च किए गए 970 करोड़ रुपये से 26 फीसदी अधिक है.
सितंबर 2014 से सरकार 1,000 रुपये की न्यूनतम पेंशन सुनिश्चित करने के लिए अनुदान देती है, यानी अगर किसी सदस्य की पेंशन 1,000 रुपये से कम है तो सरकार अंतर की राशि अपनी जेब से भरती है.