यह अक्सर पूछा जाता है कि वट सावित्री पूजा के अवसर पर महिलाएं बरगद के पेड़ की पूजा क्यों करती हैं। इस प्रश्न का उत्तर हम यहां प्रस्तुत कर रहे हैं कि वट सावित्री व्रत के दिन महिलाएं बरगद के पेड़ की पूजा का आयोजन क्यों करती हैं, साथ ही यह भी जानें कि वट सावित्री व्रत कब मनाया जाता है और पूजा का शुभ मुहूर्त क्या है।
वट सावित्री व्रत के पावन अवसर पर बरगद वृक्ष की आराधना की जाती है. यह मान्यता है कि इस दिन वट वृक्ष की पूजा करने से महिलाओं के सुखद वैवाहिक जीवन की इच्छाएं पूरी होती हैं. इसके साथ ही, वैवाहिक जीवन में आने वाली किसी भी प्रकार की कठिनाई या रुकावट समाप्त हो जाती है. इ स दिन व्रत रखने वाली महिलाएं पूजा के बाद बरगद के पेड़ के चारों ओर सूत बांधती हैं और इस दौरान परिक्रमा करते हुए अपनी इच्छाओं की पूर्ति की कामना करती हैं. अक्सर यह प्रश्न उठता है कि वट सावित्री पूजा के दिन महिलाएं बरगद के पेड़ की पूजा क्यों करती हैं. इस प्रश्न का उत्तर आपको यहां हम दे रहे हैं कि वट सावित्री व्रत के दिन महिलाएं बरगद के पेड़ की पूजा क्यों करती हैं, साथ ही जानें वट सावित्री व्रत कब है और पूजा का शुभ मुहूर्त क्या है.
वट सावित्री व्रत कथा के अनुसार, सावित्री राजर्षि अश्वपति की संतान थीं. उन्होंने सत्यवान को अपने पति के रूप में चुना, जो वन के राजा द्युमत्सेन के पुत्र थे. नारदजी ने उन्हें बताया कि सत्यवान का जीवन अल्पकालिक है, फिर भी सावित्री ने अपने निर्णय में कोई परिवर्तन नहीं किया. उन्होंने सत्यवान से विवाह किया और अपने परिवार की सेवा हेतु वन में निवास करने लगी.
एक दिन जब सत्यवान लकड़ी काटने जंगल में गया, तो वह वहीं गिर पड़ा. यह देखकर यमराज सत्यवान की आत्मा लेने आए. सावित्री सब कुछ जानती थी क्योंकि वह तीन दिन का उपवास कर रही थी. उसने यमराज से सत्यवान की जान न लेने की प्रार्थना की, लेकिन यमराज नहीं माने. सावित्री ने उनका पीछा करना शुरू कर दिया. यमराज के कई बार मना करने के बावजूद, सावित्री पीछे हटने को तैयार नहीं हुई. सावित्री के बलिदान से प्रसन्न होकर यमराज ने कहा कि वह उनसे तीन वरदान मांग सकती हैं. सावित्री ने पहले वरदान में सत्यवान के अंधे माता-पिता के लिए दृष्टि की रोशनी मांगी. दूसरे वरदान में, उसने सत्यवान के अंधे माता-पिता का खोया हुआ राज्य मांगा.
अंतिम वरदान में, सावित्री ने यमराज से 100 पुत्रों का आशीर्वाद प्राप्त करने की प्रार्थना की. यमराज ने उसे ये तीन इच्छाएं प्रदान कीं और तुरंत ही समझ गए कि अब सत्यवान को अपने साथ ले जाना संभव नहीं है. यमराज ने सावित्री को अखंड सौभाग्यवती का आशीर्वाद दिया. उस समय सावित्री एक बरगद के पेड़ के नीचे सत्यवान के साथ बैठी हुई थी. इसलिए इस दिन महिलाएं बरगद के पेड़ के चारों ओर एक धागा लपेटकर पूजा करती हैं. बरगद के पेड़ की पूजा किए बिना यह व्रत पूरा नहीं माना जाता.