Wednesday, January 22, 2025

दो-दो चोंच वाली चिड़िया, जो इंसानों की तरह अपने बच्चों का बदलती है डायपर

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भारत में इस पक्षी को माना जाता है भाग्य का प्रतीक, इंसान की तरह अपने बच्चों का डायपर बदलती है यह चिड़िया।

बगहा : देश में पक्षियों की कई प्रजातियां पाई जाती हैं. इनमें से 300 से अधिक प्रजातियां बिहार के इकलौते वाल्मीकि टाइगर रिजर्व की शोभा बढ़ाती हैं. बड़ी संख्या में पर्यटक वन्य जीवों को देखने के अलावा पक्षियों को देखने की हसरत लेकर भी वाल्मीकि टाइगर रिजर्व में पहुंचते हैं.

धनेश पक्षी- भाग्य का प्रतीक : इन पक्षियों में एक ऐसा पक्षी है जिसे भारत में भाग्य का प्रतीक माना जाता है. आम बोलचाल की भाषा में इसे धनेश पक्षी कहते हैं. पौराणिक मान्यता है कि धनेश पक्षी के दर्शन से धन का आगमन बढ़ता है और भाग्य खुल जाते हैं.

हाइजीनिक पक्षी– इंसान की तरह डायपर बदलने वाला : इस चिड़िया की और भी कई खासियतें हैं जिसे जानकर आप भी आश्चर्यचकित हो जाएंगे. यह पक्षी इंसान की तरह अपने बच्चों का डायपर बदलती है. हां, यह सच है. नेचर एनवायरनमेंट वाइल्ड लाइफ सोसायटी के प्रोजेक्ट मैनेजर अभिषेक के अनुसार, यह पक्षी काफी हाइजीनिक तरीके से रहना पसंद करती है.

घोंसला और डायपर बदलने की प्रक्रिया : हॉर्नबिल पक्षी पेड़ों को खोदकर अपना घोंसला बनाता है और वहां अंडे देता है. जब अंडों से बच्चे निकलते हैं, तो नर हॉर्नबिल पत्ते लाकर घोंसले में रखता है. जब बच्चे मल मूत्र त्यागते हैं, तो घोंसले में रखे पत्ते गंदे हो जाते हैं. मादा उन पत्तों को निकाल कर बाहर फेंक देती है और नए पत्तों का बिस्तर बिछा देती है. इस प्रक्रिया को इंसान के द्वारा बच्चों का डायपर बदलने से मिलाकर देखा जाता है.

हॉर्नबिल की प्रजातियां

भारत में हॉर्नबिल की प्रजातियां : भारत में हॉर्नबिल की 9 प्रजातियों में से 3 प्रजातियां वाल्मीकि टाइगर रिजर्व में पाई जाती हैं. इनकी चोंच के ऊपर लंबा उभार होता है, जिस कारण इसे अंग्रेजी में ‘Hornbill’ (Horn=सींग, Bill=चोंच) कहा जाता है, जबकि हिंदी में इसे धनेश पक्षी कहा जाता है.

हॉर्नबिल की जीवनशैली और प्रजनन : हॉर्नबिल पक्षी जोड़े में रहना पसंद करते हैं और आमतौर पर यह पूरे जीवन एक ही साथी के साथ रहते हैं. मादा घोंसले में एक या दो अंडे देती है, जो लगभग 38 दिनों में अंडे से चूजे निकलते हैं. चूजों के उड़ने लायक होने तक नर घोंसले में भोजन पहुंचाता है. इस दौरान मादा पक्षी तीन महीने तक घोंसले में रहती है. यदि नर तीन महीने तक नहीं लौटे तो मादा और बच्चे घोंसले में मर सकते हैं.

धनेश पक्षी का भारतीय संस्कृति में स्थान : धनेश पक्षी का भारतीय संस्कृति में खास स्थान है और इससे कई पौराणिक मान्यताएं जुड़ी हुई हैं. विशेषकर पूर्वोत्तर भारत में, इसे सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है. वहां की लोककथाओं में कहा जाता है कि धनेश पक्षी को देखना खुशियों और समृद्धि का संकेत है. खासकर किसानों के बीच यह मान्यता प्रचलित है कि इस पक्षी का दिखना फसल की अच्छी उपज का संकेत होता है.

धनेश पक्षी और भगवान शिव : प्राचीन काल से धनेश पक्षी को भगवान शिव के वाहन नंदी के साथ जोड़ा गया है. कुछ मान्यताओं के अनुसार, इसे देखना भगवान शिव की कृपा पाने का संकेत माना जाता है. कुछ लोग मानते हैं कि इसके दर्शन मात्र से माता लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं.

धनेश महोत्सव- नागालैंड में धनेश का सम्मान : नागालैंड में हर साल दिसंबर के महीने में धनेश महोत्सव मनाया जाता है. यह नागालैंड के सभी नागा जनजातियों की संस्कृति और परंपराओं का भव्य उत्सव होता है, जिसमें धनेश पक्षी को सम्मानित किया जाता है.

धनेश पक्षी का संकट और शिकार : अंधविश्वास और प्राकृतिक कठिनाइयों के चलते धनेश पक्षी खतरे में है. कुछ लोग मानते हैं कि गठिया रोग के लिए धनेश का तेल रामबाण औषधि होता है, जिससे इसका शिकार बड़े पैमाने पर किया जाता है. इसके तेल की कीमत बहुत महंगी होती है, जिससे इस पक्षी की संख्या में गिरावट आ रही है.

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