Sunday, May 25, 2025

झारखंड में राजनीति में आ सकता है नया मोड़, इस मुद्दे ने सभी दलों को सोचने पर किया मजबूर

Share

झारखंड में सरना धर्म कोड की मांग एक राजनीतिक मुद्दा बन गई है। राज्य की 27% आदिवासी आबादी इसे अपने धर्म के रूप में मानती है। 2020 में विधानसभा ने इसे जनगणना में शामिल करने का प्रस्ताव पारित किया लेकिन केंद्र ने कोई निर्णय नहीं लिया। झामुमो और कांग्रेस इसका समर्थन कर रहे हैं जबकि भाजपा पर दोहरे रवैये का आरोप है।

रांची। झारखंड में सरना धर्म कोड की मांग एक लंबे समय से चली आ रही मांग है, जो अब राज्य की राजनीति की धुरी बनती जा रही है।

यह मुद्दा न केवल आदिवासी समुदाय की सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान से जुड़ा है, बल्कि यह एक बड़े वोट बैंक को प्रभावित करने वाला राजनीतिक हथियार भी बन गया है।

झारखंड की लगभग 27 प्रतिशत आबादी आदिवासियों की है, जो मुख्य रूप से खुद को सरना धर्म के तहत मानती है।

यह प्रकृति पूजा पर आधारित है और इसे मानने वाले संताली, मुंडा, हो, और कुरुख समेत अन्य समुदाय पेड़, पहाड़, नदियों और जंगलों की पूजा करते हैं।

वर्ष 2020 में झारखंड विधानसभा ने सर्वसम्मति से सरना आदिवासी धर्म कोड को जनगणना में शामिल करने का प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित किया था, जिसे केंद्र सरकार को मंजूरी के लिए भेजा गया।

हालांकि, केंद्र द्वारा इस पर कोई ठोस निर्णय न लेने से यह मुद्दा और गर्म हो गया है और राज्य में सत्तारूढ़ झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेतृत्व वाला गठबंधन इसे लेकर राजनीतिक तौर पर हावी है।

राजनीतिक रणनीति और दलों की भूमिका

झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) ने सरना धर्म कोड को लागू करने की मांग को अपने राजनीतिक एजेंडे का केंद्र बनाया है।

झामुमो ने केंद्र सरकार को अल्टीमेटम दिया है कि जब तक सरना आदिवासी धर्म कोड लागू नहीं होता, तब तक राज्य में जनगणना नहीं होने दी जाएगी।

पार्टी ने आगामी 27 मई को राज्यव्यापी विरोध प्रदर्शन की भी घोषणा की है, जिसमें सभी जिला मुख्यालयों पर धरना आयोजित किया जाएगा।

यह रणनीति आदिवासी समुदाय में अपनी पैठ मजबूत करने और सत्तारूढ़ गठबंधन की छवि को आदिवासी हितों के रक्षक के रूप में स्थापित करने की कोशिश है।

झामुमो महासचिव सह प्रवक्ता विनोद पांडेय ने इसे लेकर भाजपा को निशाने पर लेते हुए उसे आदिवासी विरोध करार दिया है।

कांग्रेस भी इस मुद्दे पर सक्रिय है और इसे अपने चुनावी घोषणापत्र का हिस्सा बना चुकी है। यह कदम आदिवासी वोट बैंक को लुभाने के साथ-साथ गठबंधन सहयोगी झामुमो के साथ तालमेल बनाए रखने का प्रयास है।

कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने दिल्ली में पार्टी प्रवक्ताओं और प्रमुख नेताओं की हालिया बैठक में राज्य में सरना धर्म कोड पर फोकस बढ़ाने का निर्देश दिया है।

कांग्रेस ने धरना प्रदर्शन की योजना बनाई है। प्रदेश कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राजेश ठाकुर के मुताबिक जनगणना फार्म में सरना धर्म के लिए अलग कालम न होना केंद्र की नीयत में खोट को दर्शाता है।

भाजपा भी इस मुद्दे को लेकर झेल रही आरोप 

दूसरी ओर, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) इस मुद्दे पर दोहरे रवैये का आरोप झेल रही है। भाजपा ने 2014 में यूपीए सरकार के दौरान सरना धर्म कोड की मांग को अव्यवहारिक बताकर खारिज करने का हवाला देते हुए झामुमो और कांग्रेस पर पलटवार किया है।

हालांकि, 2024 में संपन्न विधानसभा चुनाव में असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने वादा किया था कि यदि भाजपा सत्ता में आई तो सरना धर्म कोड लागू करेगी। यह बयान आदिवासी वोटों को आकर्षित करने की रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है, लेकिन पार्टी का अतीत में इस मुद्दे पर अस्पष्ट रुख ने विवाद को जन्म दिया है।

पूर्व मुख्यमंत्री चम्पाई सोरेन के मुताबिक सरना धर्म कोड के नाम पर राजनीति करने का ड्रामा कर रही कांग्रेस को कोई याद दिलाए कि अंग्रेजों के जमाने (1871) से चले आ रहे आदिवासी धर्म कोड को 1961 में कांग्रेस की सरकार ने ही हटाया था।

क्या ये लोग भूल चुके हैं कि कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए की पिछली सरकार ने सरना धर्म कोड की मांग को अव्यवहारिक बताते हुए ठुकरा दिया था? लेकिन अभी इन्हें राजनीति करनी है।

मुद्दा क्यों बन रहा हॉट केक

वोट बैंक की राजनीति- झारखंड में आदिवासी समुदाय एक बड़ा वोट बैंक है और सरना धर्म कोड का मुद्दा सभी प्रमुख दलों के लिए इसे अपने पक्ष में करने का अवसर प्रदान करता है। झामुमो और कांग्रेस की आक्रामक रणनीति से आदिवासी मतदाताओं का ध्रुवीकरण हो सकता है।

केंद्र सरकार द्वारा प्रस्ताव पर निर्णय में देरी से झारखंड में असंतोष बढ़ सकता है। यह झामुमो और कांग्रेस को केंद्र की नीतियों पर हमला करने का मौका देगा।

भाजपा के लिए यह मुद्दा एक चुनौती है, क्योंकि सरना को अलग धर्म मान्यता देना उसके हिंदुत्व की विचारधारा से टकरा सकता है। इससे भाजपा को आदिवासी समुदाय और हिंदू मतदाताओं के बीच संतुलन बनाने में कठिनाई हो सकती है।

राज्य की राजनीति में ला सकता है महत्वपूर्ण मोड़

सरना धर्म कोड का मुद्दा झारखंड की राजनीति में एक महत्वपूर्ण मोड़ ला सकता है। यह आदिवासी समुदाय की पहचान और अधिकारों की लड़ाई के साथ-साथ राजनीतिक दलों के लिए वोट बैंक की रणनीति का हिस्सा बन गया है।

झामुमो और कांग्रेस इस मुद्दे को आदिवासी अस्मिता से जोड़कर अपनी स्थिति मजबूत करने की कोशिश कर रहे हैं, जबकि भाजपा इसे लेकर सतर्क रुख अपनाए हुए है।

आने वाले दिनों में इस मुद्दे पर विरोध प्रदर्शन और राजनीतिक बयानबाजी से झारखंड की सियासत और गर्म हो सकती है। केंद्र सरकार के रुख और जनगणना में सरना कोड शामिल करने के निर्णय पर सभी की निगाहें टिकी हुई है।

Read more

Local News