बिहार में खुलने जा रहा है राज्य का पहला मशरूम मॉल। इस मॉल में मशरूम से बने विभिन्न प्रकार के उत्पाद एक ही छत के नीचे उपलब्ध होंगे। डॉ. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय पूसा द्वारा संचालित इस मॉल में मशरूम के व्यंजनों को विश्वविद्यालय के टैग और मोनोग्राम के साथ बेचा जाएगा जिससे किसानों को भी लाभ होगा। मॉल में मशरूम के 12 से अधिक उत्पाद उपलब्ध होंगे।
मशरूम से निर्मित उत्पादों के लिए अब लोगों को भटकने की जरूरत नहीं पड़ेगी। एक ही जगह एक ही छत के नीचे लोगों को सारे उत्पाद मिल जाएंगे।डॉ. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय पूसा द्वारा मशरूम मॉल बनाने की योजना पर काम चल रहा है। इसमें मशरूम के विभिन्न उत्पाद तो मिलेंगे ही, विश्वविद्यालय के अन्य उत्पादों की भी बिक्री होगी।किसानों की ओर से तैयार किए गए मशरूम के विभिन्न व्यंजन को जांच कर उसे भी विश्वविद्यालय अपना टैग एवं मोनोग्राम देकर बेचेगा। इससे किसानों को भी लाभ होगा।
12 से अधिक प्रोडक्ट तैयार हो रहे
फिलहाल मशरूम के 12 से अधिक प्रोडक्ट तैयार हो रहे हैं। इसमें गुलाब जामुन, बिस्किट, समोसा, रसगुल्ला, पनीर, लड्डू पाउडर, ठेकुआ एवं कोफ्ता शामिल हैं। यह बिहार का पहला मशरूम मॉल होगा।डॉ. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा के विज्ञानियों ने मशरूम का बिस्किट, अचार, समोसा, खोवा, पकौड़ा और रवा, पनीर और गुलाब जामुन बनाने की तकनीक विकसित की।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद दिल्ली की वर्चुअल बैठक में इस पर मुहर लग चुकी है। व्यवसायिक उत्पादन के लिए किसानों व उद्यमियों को तकनीक से अवगत कराया जा रह है। मशरूम की कई प्रजातियां हैं।सूबे में ओएस्टर व बटन का उत्पादन अधिक हो रहा है। शिटाके और हेरेशियम जैसी औषधीय प्रजाति के मशरूम के बारे में भी किसानों को जानकारी दी जा रही है।बोआई के बाद ओएस्टर मशरूम 40 से 50 दिन में तैयार हो जाता है। इसे आसानी से धूप में सुखाया जा सकता है, इसलिए सेल्फ लाइफ जैसी समस्या नहीं होती। अभी हाल में ही विश्वविद्यालय में कृषि विभाग द्वारा चयनित किसानों को यहां प्रशिक्षण दिया गया है।
मशरूम उत्पादन में पूसा की प्रमुख भूमिका
- बताया जाता है कि मशरूम उत्पादन में पूसा की प्रमुख भूमिका रही है। विश्वविद्यालय द्वारा प्रशिक्षित किसानों के सहयोग से उत्तर बिहार मशरूम उत्पादन का एक हब बनता जा रहा है।
- केवल उत्तर बिहार में सालाना चार हजार टन मशरूम होता है। समस्तीपुर, मुजफ्फरपुर, वैशाली, मधुबनी, दरभंगा, चंपारण समेत अन्य जिलों के छोटे-बड़े एक हजार से अधिक किसान इसकी खेती कर रहे हैं।
मसाला व मशरूम का उत्पादन कर किसान बनेंगे समृद्ध
भभुआ जिले के किसान अब उन्नति की राह पर चल रहे हैं। परंपरागत खेती के अलावे अन्य तरह की खेती से जु़ड़ आर्थिक रूप से मजबूत बनने का प्रयास कर रहे हैं।किसानों को इसके लिए उद्यान विभाग भरपुर सहयोग कर रहा है। इसी क्रम में जिले के किसानों को मशरूम व मसाला की खेती के लिए उद्यान विभाग प्रेरित कर रहा है। ताकि किसान आर्थिक रूप से मजबूत हो रहे हैं।मिली जानकारी के अनुसार, कैमूर जिले में दो तरह के मशरूम का उत्पादन करने के लिए किसानों को किट का वितरण किया गया है। इसमें सामान्य व झोपड़ी में मशरूम का उत्पादन किया जाएगा। सामान्य तरह से मशरूम उत्पादन के लिए 170 लोगों को किट दिया गया है। इसमें प्रति किट पर 90 प्रतिशत अनुदान है। एक किसान को कम से कम दस व अधिक से अधिक सौ किट दिया गया है।इसमें एक किट की कीमत है 60 रुपये, जबकि 90 प्रतिशत अनुदान है। ऐसे में किसानों को एक किट का मात्र छह रुपये देना है।झोपड़ी में मशरूम उत्पादन योजना के अंतर्गत जिले में 17 यूनिट झोपड़ी मशरूम का निर्माण किया गया है। प्रत्येक यूनिट की लागत खर्च 1 लाख 79 हजार पांच सौ रुपये है।इस पर लाभुकों को 50 प्रतिशत अनुदान मिलेगा। यानी किसानों को 89 हजार 750 रुपये अनुदान मिलेगा। मशरूम झोपड़ी का निर्माण 15 सौ वर्ग फीट में किया गया है। झोपड़ी में किसान पूरे वर्ष मशरूम का उत्पादन कर सकेंगे।
20 हेक्टेयर में की गई है मसाला की खेती
जिले में किसानों को सशक्त बनाने के उद्देश्य से मसाला की खेती कराई जा रही है। इसमें फिलहाल 20 हेक्टेयर में मसाला की खेती शुरू कराई गई है। दस हेक्टेयर में धनिया व दस हेक्टेयर में मेथी की खेती की गई है।25 किसानों ने धनिया की व 24 किसानों ने मेथी की खेती की है। मसाला की खेती पर लागत खर्च 30 हजार रुपये आएगा। जिस पर किसानों को 50 प्रतिशत यानी 15 हजार रुपये प्रति हेक्टेयर अनुदान मिलेगा।बता दें कि मसाला की बिक्री काफी महंगे दाम पर होती है। बाजार में बिक रहे मसाला की खरीदारी करने में लोगों को काफी राशि खर्च करनी पड़ती है। ऐसे में किसानों को मसाला का उत्पादन करने से अच्छी आमदनी होने की उम्मीद है।